- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 655
हाईकू
हाँ…
शिव-गाँव भी है,
गुरु-छाँव में, क्या, क्या नहीं है ।।स्थापना।।
क्षेपते जल-धार,
हुये सँजोंये स्वप्न साकार ।।जलं।।
भेंट चन्दन, दृग्-नम,
‘कि सँजोंये स्वप्न छुये खम् ।।चन्दनं।।
भेंटते ‘कि धाँ परात,
लागे स्वप्न सँजोंये हाथ ।।अक्षतं।।
भेंटू गुल,
‘कि सँजोंये स्वप्न पास ही बिलकुल ।।पुष्पं।।
भेंटते चरु घी,
‘कि सँजोंये स्वप्न,
संपूर्ण सभी ।।नैवेद्यं।।
भेंटते घृत-दीव,
सँजोंये स्वप्न, हुये करीब।।दीपं।।
सँजोंये स्वप्न ‘कि हकीकत,
भेंटूँ सुगंध-घट।।धूपं।।
सँजोंये स्वप्न पाये बल,
भेंटते ही ऋत-फल ।।फलं।।
सँजोंये स्वप्न आज पूर्ण,
भेंटते अर्घ सम्पूर्ण ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
नभ दीखते ही दीखते,
तरु जो गुरु सींचते
जयमाला
अमृत सरीखे
गुड़, घी से नीके
बड़े ही मीठे
हैं तेरे बोल
बड़े अनमोल
झाँकतीं कोकिल बगलें
सुन पीछे तोते पग लें
और उड़ जाते है पंख खोल
बड़े अनमोल, हैं तेरे बोल
चुटकियों में जीत जग लें
पग पल-पल प्रीत मग लें
पट देते है अंतरंग खोल
बड़े अनमोल है तेरे बोल
सुन कान दिल में रख लें
चाहे फिर जब तब चख लें
हेमवत् रह लें, तन पंक खोल
बड़े अनमोल है तेरे बोल
बड़े ही मीठे
अमृत सरीखे
गुड़, घी से नीके
हैं तेरे बोल
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
कौन उसके जैसा
साथ जिसके, गुरु हमेशा
Sharing is caring!