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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 531

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 531

=हाईकू=
ए ! मेरे राम,
डूबी पनडुबी, लो कृपया थाम ।।स्थापना।।

दे दो अपनी इक झलक,
खड़े लिये उदक ।।जलं।।

मुझे अपनी ले लो शरण,
खड़े लिये चन्दन ।।चन्दनं।।

अपने रख लो गुरुकुल,
खड़े लिये तण्डुल ।।अक्षतं।।

स्वयं सा कर लो निराकुल,
खड़े लिये द्यु-गुल ।।पुष्पं।।

रख चाहत स्वानुभवन,
खड़े लिये व्यंजन ।।नैवेद्यं।।

सहज रह सके ‘कि धिया,
खड़े लिये घी दिया ।।दीपं।।

बस उठा दो एक नजर,
खड़े लिये अगर ।।धूपं।।

कर पायें ‘कि बात दो पल,
खड़े लिये श्रीफल ।।फलं।।

बनने आप जैसे अनघ,
खड़े लिये अरघ ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
गलत राहों पे चलने से रोके,
माँ हर रो-के

।।जयमाला।।

मर हम मरहम बनें
सुमरें तेरी धड़कनें
हरदम हरदम
मर हम मरहम बनें

सबसे तू जुदा है
और का और जाने
ये सारा दौर जाने
तू मेरा तो खुदा है
सबसे तू जुदा है
तू मेरा तो खुदा है

हम अपने सर, गम दूसरों के रखने
हकीकत में, न सिर्फ सपने
सरगम बनें
सुमरें तेरी धड़कनें
मर हम मरहम बनें
सुमरें तेरी धड़कनें
हरदम हरदम
मर हम मरहम बनें

सबसे तू जुदा है
और का और जाने
ये सारा दौर जाने
तू मेरा तो खुदा है
सबसे तू जुदा है
तू मेरा तो खुदा है

रहम दिल बनें
नयन नम बनें
सरगम बनें
मरहम मरहम बनें
सुमरें तेरी धड़कनें
हरदम हरदम
मर हम मरहम बनें

सबसे तू जुदा है
और का और जाने
ये सारा दौर जाने
तू मेरा तो खुदा है
सबसे तू जुदा है
तू मेरा तो खुदा है

।।जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
सिवाय गुरु नुति,
न चाहें और ‘माँ सरसुति’

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