- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 507
=हाईकू=
राहत जख्म बच्चों के पा-ही जाएँ,
जो फूँके माँएँ ।।स्थापना।।
बढूँ, न लडूँ जल जैसा,
मैं भेंटूँ जल कलशा ।।जलं।।
महकूँ, जल भी चन्दन सा,
भेंटूँ चन्दन घिसा ।।चन्दनं।।
पूजा करते-करते बनूँ पूज,
भेंटूँ धाँ दूज ।।अक्षतं।।
नाम सार्थक कर सकूँ,
‘सुमन’ चरण रखूँ ।।पुष्पं।।
लगने लगे सजीव से, अजीव,
भेंटूँ प्रदीव ।।नैवेद्यं।।
रख सलीके सकूँ,
स्वर-‘व्यंजन’ चरण रखूँ ।।दीपं।।
भेंटूँ अगर खोलूँ स्व-अध्याय,
‘के कर स्वाध्याय ।।धूपं।।
पा कुछ वृक्ष सा झुक सकूँ,
फल चरण रखूँ ।।फलं।।
बन सके कि अबकि बात,
भेंटूँ अर्घ परात ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
दे डाल,
झोली में चाँद-चार,
गुरु का दरबार
।। जयमाला।।
अपना लिया, बना ‘दिया’
बना दिया काम बिगड़ा
लकीरों में भर कर
रंग तुमने गुरुवर
खुद से कुछ सटके कर लिया खड़ा
सबसे कुछ हटके कर दिया खड़ा
बना दिया काम बिगड़ा
था लाठी थामे
हा ! माटी था मैं,
था अजनबी,
मैं था अजनबी
फिर भी, तुमनें मुझे बल अपने पैरों के,
कर दिया खड़ा
दिया बना घड़ा
बना दिया काम बिगड़ा
अपना लिया, बना ‘दिया’
बना दिया काम बिगड़ा
लकीरों में भर कर
रंग तुमने गुरुवर
खुद से कुछ सटके कर लिया खड़ा
सबसे कुछ हटके कर दिया खड़ा
बना दिया काम बिगड़ा
साँच, काँच केवल था
चल रहा घुटनों के बल था
था अजनबी,
मैं था अजनबी
फिर भी, तुमनें मुझे बल अपने पैरों के,
कर दिया खड़ा
आईना दिया बना
बना दिया काम बिगड़ा
अपना लिया, बना ‘दिया’
बना दिया काम बिगड़ा
लकीरों में भर कर
रंग तुमने गुरुवर
खुद से कुछ सटके कर लिया खड़ा
सबसे कुछ हटके कर दिया खड़ा
बना दिया काम बिगड़ा
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
रत्न, हो ‘दीप’ तले अंधेरा छू
‘पा-कृपा’ श्री गुरु
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