- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 476
हाईकू
छूने चरण-सरोज,
‘आप’
झूमे हैं ‘सर’-रोज ।।स्थापना।।
पाने मुस्कान तिरी,
लाया चढ़ाने जल गगरी ।।जलं।।
पाने किरपा तिरी,
लाया चढ़ाने सुगंध घुरी ।।चन्दनं।।
पाने संगत तिरी,
लाया चढ़ाने धान गठरी ।।अक्षतं।।
पाने सन्निधि तिरी,
लाया चढ़ाने पुष्प पाँखुड़ी ।।पुष्पं।।
पाने करुणा तिरी,
लाया चढ़ाने श्रीफल गिरी ।।नैवेद्यं।।
पाने शरणा तिरी,
लाया चढ़ाने प्रदीपावली ।।दीपं।।
पाने नजर तिरी,
लाया चढ़ाने अगर निरी ।।धूपं।।
पाने पीछिका तिरी,
लाया चढ़ाने फल मिसरी ।।फलं।।
पाने भक्ति-नौ तिरी,
लाया चढ़ाने द्रव्य-सबरी ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
आँसु माँओं के आते छलक,
न पा बच्चे-पलक
जयमाला
पहले खुदा से
तेरा नाम
अय ! मेरे राम
आता मेरी जुबाँ पे
पहले खुदा से
और है लाजमी भी
तेरे इतने मुझ पे एहसान हैं क्योंकि
हूँ सिर्फ मैं जिस्म, तू मेरी जान है क्योंकि
और है लाजमी भी
क्योंकि तुम हो ही जुदा से
मेरे लिये हो बढ़ के खुदा से
जी गुरुजी
और है लाजमी भी
पहले खुदा से
तेरा नाम
अय ! मेरे राम
आता मेरी जुबाँ पे
पहले खुदा से
जी गुरुजी
और है लाजमी भी
मेरा गुमान, तू मेरा स्वाभिमान है क्योंकि
अधूरा बिन तेरे, मेरा ज़िन्दगी गान है क्योंकि
हूँ सिर्फ मैं जिस्म, तू मेरी जान है क्योंकि
तेरे इतने मुझपे एहसान हैं क्योंकि
और है लाजमी भी
छेड़ी भीतरी शुकूने ए तान है क्योंकि
गम के पलों में, तू मेरी मुस्कान हैं क्योंकि
हूँ सिर्फ मैं जिस्म, तू मेरी जान है क्योंकि
तेरे इतने मुझपे एहसान हैं क्योंकि
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
चाँद सूरज आते,
पंक्ति उसी, ‘श्री ऋषि’ बताते
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