- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 451
-हाईकू-
शुक्रिया,
इस शबरी का,
है रख जो मान लिया ।।स्थापना।।
स्वीकार जल ओ ! माहन्त महात्मा,
दो ‘नन्त-रमा’ ।।जलं।।
स्वीकार गंध, ओ ! भावी परमात्मा
हो ‘ही’ खातमा ।।चन्दनं।।
स्वीकार धाँ, ओ ! मूरत दया क्षमा !
दो दिखा आत्मा ।।अक्षतं।।
स्वीकार पुष्प, ओ ! सूर्य जैन आस्माँ,
दो रंग जमा ।।पुष्पं।।
स्वीकार चरु, ओ ! जोड़ पुण्य जमा !
दो गुमाँ गुमा ।।नैवेद्यं।।
स्वीकार दीप, ओ! ‘पूर्ण-माँ’,
दो हटा अज्ञान अमा ।।दीपं।।
स्वीकार धूप ओ ! रहनुमा,
भाग्य दो चमचमा ।।धूपं।।
स्वीकार फल, ओ ! परीत उपमा,
दो जीत थमा ।।फलं।।
स्वीकार अर्घ, ओ ! रट ओम् नमः
दो छुवा आसमाँ ।।अर्घ्यं।।
-हाईकू-
क्या मिरे पास था,
तुम्हीं ने तो दिया थमा आसमाँ
जयमाला
बार-बार मन आना चाहता है
तेरे करीब
आके, वापिस घर न जाना चाहता है
है कशिश
इक अजीबो-गरीब
तेरे करीब
जो ले आती है खींचे
तेरे पीछे-पीछे
जो ले आती है खींचे
जैसे पतंगे को लौं-दीव
तेरे करीब,
आके, वापिस घर न जाना चाहता है
बार-बार मन आना चाहता है
तेरे करीब
आके, वापिस घर न जाना चाहता है
है कशिश
इक अजीबो-गरीब
तेरे करीब
कोई भी न चलता जोर है
चला आता जमाना दौड़-दौड़ है
अपनी अँखिंयाँ मीचे
तेरे पीछे-पीछे
न कभी-कभी, दिन हो या रात हो सदीव
तेरे करीब,
आके, वापिस घर न जाना चाहता है
बार-बार मन आना चाहता है
तेरे करीब
आके, वापिस घर न जाना चाहता है
है कशिश
इक अजीबो-गरीब
तेरे करीब
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
-हाईकू-
न छोटी-मोटी,
जिसकी ज्योति,
‘गुरु’ वो ‘रत्न-दिया’
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