- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 445
हाईकू
पीपल हर जगह,
‘लागे’ ‘गुरु जी’ बेवजह ।।स्थापना।।
अक्षर स्वानु-भव बनाने,
जल लाया चढ़ाने ।।जलं।।
तेरे रँग में रँग पाने,
चन्दन लाये चढ़ाने ।।चन्दनं।।
तेरे चरणों में शरण पाने,
धाँ लाये चढ़ाने ।।अक्षतं।।
मद-मदन चूरा बनाने,
पुष्प लाये चढ़ाने ।।पुष्पं।।
मनमानी क्षुध् विनशाने,
नैवेद्य लाये चढ़ाने ।।नैवेद्यं।।
अंधेरा तेरा-मेरा मिटाने,
दीप लाये चढ़ाने ।।दीपं।।
मजा कर्मों को चखाने,
दश गंध लाये चढ़ाने ।।धूपं।।
घर-अपने तुझे पाने,
श्री फल लाये चढ़ाने ।।फलं।।
द्यु-शिव-पुर राधा रिझाने,
अर्घ लाये चढ़ाने ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
श्री गुरु-तरु टूट-
‘पात’,
सनेह न लूट पात
जयमाला
तुमने जो मुझे, अपना नाम दिया
मेरा बिगड़ा जो बना काम दिया
तुमने जो मुझे ‘अपना’, थाम लिया
बड़ा एहसान किया
जो नजर तोहफा ए मुस्कान किया
बड़ा एहसान किया
मैं तो था ही नहीं इसके काबिल
जो दिया तुमने ये थमा साहिल
मन मृग की खोज पे लगा विराम दिया
तुमने जो मुझे अपना, थाम लिया
बड़ा एहसान किया
तुमने जो मुझे, अपना नाम दिया
मेरा बिगड़ा जो बना काम दिया
तुमने जो मुझे ‘अपना’, थाम लिया
बड़ा एहसान किया
जो नजर तोहफा ए मुस्कान किया
बड़ा एहसान किया
मैं तो था ही नहीं इसके काबिल
जो चुना तुमने, रहने के लिये मेरा दिल
पहुँचा घर मुझे अपने शाम-शाम दिया
तुमने जो मुझे अपना, थाम लिया
बड़ा एहसान किया
तुमने जो मुझे, अपना नाम दिया
मेरा बिगड़ा जो बना काम दिया
तुमने जो मुझे ‘अपना’, थाम लिया
बड़ा एहसान किया
जो नजर तोहफा ए मुस्कान किया
बड़ा एहसान किया
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
छिद्र दर्शन न करें कभी,
बड़े मँजे गुरु जी
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