- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 430
=हाईकू=
रब-से,
‘गुरु’
सरस्वती पुत्रों में आगे सबसे ।।स्थापना।।
पीड़ा समझ ली,
तभी तुम्हें, भेंट की, ये जल की ।।जलं।।
तपन मिटी,
तभी तुम्हें, भेंट की, ये चन्दन की ।।चन्दनं।।
मिलती खुशी,
तभी तुम्हें, भेंट की, ये अक्षत की ।।अक्षतं।।
बने जिंदगी,
तभी तुम्हें, भेंट की ये सुमन की ।।पुष्पं।।
क्षुधा ने विदा ली,
तभी तुम्हें, भेंट की ये चरु की ।।नैवेद्यं।।
पतंग उड़ी,
तभी तुम्हें, भेंट की, ये दीपक की ।।दीपं।।
फिरकी थमी,
तभी तुम्हें, भेंट की सुगंध की ।।धूपं।।
लगन लगी,
तभी तुम्हें, भेंट की, ये श्रीफल की ।।फलं।।
मंजिल मिली,
तभी तुम्हें, भेंट की, ये अरघ की ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
ग्रीष्म शीतल पौन-से,
‘गुरु’
होते मीठे-नोन से
जयमाला
शिव-नागरी डगर
छूने सा आसमान
गुरुवर
है इतना कहाँ आसान
गली साकरी सफर
खड़ा पहाड़ और चढ़ना
धार तलवार पर चलना
लो लगा पीछे
ले चलो खींचे
पीछे रह जाऊँगा वरना
पन्थ बाँसुरी इतर
गली साकरी सफर
शिव-नागरी डगर
छूने सा आसमान
गुरुवर
है इतना कहाँ आसान
गली साकरी सफर
गागर में सागर भरना
बाहुओं से सागर तरना
लो लगा पीछे
ले चलो खींचे
पीछे रह जाऊँगा वरना
पन्थ बाँसुरी इतर
गली साकरी सफर
शिव-नागरी डगर
छूने सा आसमान
गुरुवर
है इतना कहाँ आसान
गली साकरी सफर
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
उलझ रही ध्वजा,
करुणा कर-ओ !
दो सुलझा
Sharing is caring!