परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 428हाईकू
लाज राखना थोड़ी,
तेरे लिये ही दुनिया छोड़ी ।।स्थापना।।भेंटूँ जल, ए दयालु ! ए कृपालु !
ले अपना तू ।।जलं।।भेंटूँ खुश्बू , ए दयालु ! ए कृपालु !
दो भेंट खुश्बू ।।चन्दनं।।भेंटूँ चावल, दयालु ए कृपालु !
न उबले खूँ ।।अक्षतं।।भेंटूँ प्रसूँ , ए दयालु ! ए कृपालु !
दो भेंट सुकूँ ।।पुष्पं।।भेंटूँ चरु, ए दयालु ! ए कृपालु !
जुड़ा रहूँ भू ।।नैवेद्यं।।भेंटूँ लौ अरु, दयालु ए कृपालु !
होऊँ हूबहू ।।दीपं।।भेंटूँ अगरु, दयालु ए कृपालु !
हों कर्म धू-धू ।।धूपं।।भेंटूँ फल, ए दयालु ! ए कृपालु !
दो धरा वसु ।।फलं।।भेंटूँ अर्घ्य, ए दयालु ! ए कृपालु !
दो पोंछ आँसू ।।अर्घ्यं।।हाईकू
हूबहू ज्योति
‘गुरु-जिन्दगी’
खुली किताब होतीजयमाला
नहीं नहीं
कभी नहीं
गुरु जी देख ही नहीं सकते
रोते बिलखते
अपने बच्चों के लिये
सिसकियाँ भरते
गुरु जी देख ही नहीं सकते
रख देते सर पे हाथ जल्दी से
मान लेते बच्चों की बात जल्दी से
जा समाते दिल तभी आँखों के रस्तेलम्बी सी दे मुस्कान देते हैं
खुद से पहले रख बच्चों का ध्यान लेते हैं
यूँ ही नहीं कहाते उसके भिंजाये फरिश्ते
गुरु जी देख ही नहीं सकते
रोते बिलखते
अपने बच्चों के लिये
सिसकियाँ भरते
गुरु जी देख ही नहीं सकतेजल्दी से पढ़ने लगते दुवाएँ
सर अपने ले लेते बच्चों की बलाएँ
जोड़ कर ताउम्र निभाते रिश्ते
गुरु जी देख ही नहीं सकते
रोते बिलखते
अपने बच्चों के लिये
सिसकियाँ भरते
गुरु जी देख ही नहीं सकते।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
न सिर्फ लोच वाली सोच
है पास आपके लोच
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