परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 420“हाईकू”
सिर्फेक सन्त,
अविरोध सभी को आते पसन्द ।।स्थापना।।बाला चन्दन, भाव-भर मैं,
भेंटूँ दृग् जल तुम्हें ।।जलं।।ग्वाला कोण्डेश, भाव-भर मैं,
भेंटूँ चन्दन तुम्हें ।।चन्दनं।।अधिप शत, भाव-भर मैं,
भेंटूँ अक्षत तुम्हें ।।अक्षतं।।अंकवाँ शून, भाव-भर मैं,
भेंटूँ प्रसून तुम्हें ।।पुष्पं।।सुधी अंजन, भाव-भर मैं,
भेंटूँ व्यञ्जन तुम्हें ।।नैवेद्य।।भक्त मेढ़क, भाव-भर मैं,
भेंटूँ दीपक तुम्हें ।।दीपं।।इन्द्र मानिन्द, भाव-भर मैं,
भेंटूँ सुगन्ध तुम्हें ।।धूपं।।नैन सजल, भाव-भर मैं,
भेंटूँ श्रीफल तुम्हें ।।फलं ।।हंस-सजग, भाव-भर मैं,
भेंटूँ अरघ तुम्हें ।।अर्घ्यं।।“हाईकू”
करें कोशिश गुरुवर,
दिलाने की सौ नम्बर।। जयमाला।।
चाहता मैं
उतना तुम्हें
पून चन्द्र जितना चकोरा
मकरन्द को जितना भौंरा
उतना तुम्हें चाहता मैंये कह रहा हूँ न, किसी मुख से सुन के
मैं खोल रहा हूँ , आज राज मन के
थे छुपे जाके जो गहराई में
सपने से कुछ अपने से बन केचाहता मैं
उतना तुम्हें
पून चन्द्र जितना चकोरा
मकरन्द को जितना भौंरा
उतना तुम्हें चाहता मैंतुमसे मैं झूठ गुरु जी, कहता नहीं
तुमसे छुपा वैसे कुछ भी, रहता नहीं
चेहरा ही क्या, तुम्हें आता है पढ़ना हिवरा
सिर्फ मैं क्या कह रहा हूँ, कौन ऐसा कहता नहींचाहता मैं
उतना तुम्हें
पून चन्द्र जितना चकोरा
मकरन्द को जितना भौंरा
उतना तुम्हें चाहता मैं
।।जयमाला पूर्णार्घं।।“हाईकू”
मोटी ‘भी’ बात,
हो जाना गुरु जी से छोटी न बात
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