- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 315
==हाईकू==
सँभालों,
नूरे-आसमानी
गर्दिशों में जिन्दगानी ।।स्थापना।।
लाये जल के भरे घड़े,
दो बना काम बिगड़े ।।जलं।।
लाये चन्दन-घट भरे,
दो बना काम बिगड़े ।।चन्दनं।।
लाये परात धाँ गहरे,
दो बना काम बिगड़े ।।अक्षतं।।
लाये सुमन निरे-निरे,
दो बना काम बिगड़े ।।पुष्पं।।
लाये व्यंजन-घी विरले,
दो बना काम बिगड़े ।।नैवेद्यं।।
लाये दीपक सुनहरे,
दो बना काम बिगड़े ।।दीपं।।
लाये धूपदाँ गंध झिरे,
दो बना काम बिगड़े ।।धूपं।।
लाये श्रीफल बड़े-बड़े,
दो बना काम बिगड़े ।।फलं।।
लाये दरब-द्यु सबरे,
दो बना काम बिगड़े ।।अर्घ्यं।।
==हाईकू==
कुछ हटके हो सबसे,
माफिक तुम रब से
जयमाला
ले चलो वहाँ
जी गुरु जी ले चलो वहाँ
सहजता-सरलता जहाँ
ले चलो वहाँ,
जी गुरु जी ले चलो वहाँ
वहाँ जहाँ पाई-पाई को,
झगड़ते ना भाई-भाई दो,
इक निराकुलता जहाँ
ले चलो वहाँ,
जी गुरु जी ले चलो वहाँ ।
सहजता-सरलता जहाँ
वहाँ, जहाँ हहा ! नागिनें
कम से कम, माँ तो न बनें
इक निराकुलता जहाँ
ले चलो वहाँ,
जी गुरु जी ले चलो वहाँ
सहजता-सरलता जहाँ
वहाँ, जहाँ अपना ही खूँ
कम से कम, छीने न सुकूँ
इक निराकुलता जहाँ
ले चलो वहाँ,
जी गुरु जी ले चलो वहाँ
सहजता-सरलता जहाँ
ले चलो वहाँ,
जी गुरु जी ले चलो वहाँ
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==हाईकू==
क्या चाहूँ ?
तो मैं चाहूँ
म्हारे खुदा,
न करना जुदा
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