परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 271
*हाईकू*
श्रद्धा सवाली,
लौटाये ‘गुरु-द्वार’
न हाथ खाली ।।स्थापना।।
जल भेंटते चरणन,
भेंट दें हमें शरण ।।जलं।।
गन्ध भेंटते चरण में,
भेंट दें शरण हमें ।।चन्दनं।।
भेंटते शाली धान कण,
भेंट दें हमें शरण ।।अक्षतं।।
भेंटते पुष्प बागान,
मेंट दें ‘कि पुष्पों के बाण ।।पुष्पं।।
चरु भेंटते पाँवन,
मेंट दे ‘कि क्षुधा नागन ।।नैवेद्यं।।
दीप भेंटते अनबुझ,
भेंट दें अद्भुत कुछ ।।दीपं।।
धूप भेंटते पादमूल,
‘कि भेंट दें पाद-धूल ।।धूपं।।
फल भेंटते ‘जी’ गद-गद,
मेंट दें अठ मद ।।फलं।।
अर्घ भेंटते ये अलग,
भेंट दें शिव, सुरग ।।अर्घ्यं।।
*हाईकू*
‘आपको नवा-शीश,
समाँ सईस,
हुआ रईस’
।। जयमाला ।।
ए ! पवन जा,
छू चरण आ,
उनके
जवाब न जिनके, आचरण का !
ए ! पवन जा,
छू चरण आ,
जिन्हें माटी इक सोना ।
बना ली जमीं बिछोना ।।
आसमाँ ओढ़ा जिनने,
छोड़ वन निर्जन रोना ।
ए ! पवन जा,
छू चरण आ,
उनके,
जवाब न जिनके, आचरण का !
ए ! पवन जा,
छू चरण आ,
रखें पग देख भाल के |
रखें पग एक चाल के ।।
भूल से भी न भूल के,
रखें पग, रेख टाल के ।।
ए ! पवन जा,
छू चरण आ,
उनके,
जवाब न जिनके, आचरण का !
ए ! पवन जा,
छू चरण आ,
करें न ताकाँ-झाँकी ।
करें न टोका-टाँकी ।।
पल-पल जिनकी दिवाली,
दशहरा होली राखी ।
ए ! पवन जा
छू चरण आ
उनके,
जवाब न जिनके, आचरण का !
ए ! पवन जा,
छू चरण आ,
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
*हाईकू*
‘हो गये ढेरों गुनाह,
नाप रहा माफी की राह’
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