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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 270

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 270

==हाईकू==
कलि अंधेरा घोर,
गुरु ‘के-बल’
सबेरा भोर ।।स्थापना ।।

छू उदक,
दो थमा आसमाँ,
गुरु जी नमो नमः ।।जलं।।

छू चन्दन,
दो थमा अरमाँ,
गुरु जी नमो नमः ।।चन्दनं।।

छू धाँ,
दो भिंटा द्यु-शिव रमा,
गुरु जी नमो नमः ।।अक्षतं।।

ले फूल,
दे दो भूल की क्षमा,
गुरु जी नमो नमः ।।पुष्पं।।

छू चरु,
दो क्षुध् को राह थमा
गुरु जी नमो-नमः ।।नैवेद्यं।।

छू दीप,
मेंट दो ‘ही’ अमा,
गुरु जी नमो-नमः ।।दीपं।।

छू धूप,
मैंटो कर्म फरमाँ,
गुरु जी नमो-नमः ।।धूपं।।

छू फल,
कर लो खुद समाँ
गुरु जी नमो-नमः ।।फलं।।

रख अरघ,
दो गुमा गुमाँ,
गुरु जी नमो-नमः ।।अर्घ्यं।।

==हाईकू==
‘भार धरती था,
अपनों में भर्ती किया,
शुक्रिया’

।। जयमाला ।।
ए ! सहेली पवन ।
है पहेली सपन ।

बता क्या देगी सुलझा ।
तो गुरुकुल चली जा ।।

मानो मूरत ही सेवा ।
वहाँ होगें गुरु देवा ।

अदब के साथ जाना ।
छू चरण उनके आना ।।

पर सुनो जाते-जाते !
जन जहाँ दीप बहाते ।

कल्याणी वो वरदानी !
धवल गंगा का पानी ।।

माथे सजाना अपने ।
साथ ले आना अपने ।

गुरु जी की पा कर शरणा ।
आना पखार चरणा ।

ए ! सहेली पवन
ए ! सहेली पवन !

और जो आते आते ।
मिले थे फूल लुटाते ।

सारी दुनिया से न्यारी ।
सुगंधि वो मन हारी ।

उड़ाना धीमे धीमे ।
भक्त खो जाये जी में ।।

झूम यूँ जाये सारे ।
लगा गुरु के जय-कारे ।

जयकारा गुरुदेव का,
जय जय गुरुदेव
ए ! सहेली पवन,
ए ! सहेली पवन !
।। जयमाला पूर्णार्घ्यं।।
==हाईकू==

‘हुईं गल्तियाँ बेशक,
बनता पै माफी का हक’

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