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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 255

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 255

“हाईकू”

‘मोर बागवाँ !
दो छुवा आसमाँ
न और अरमाँ’ ।। स्थापना।।

तीर दें भिंटा,
अये मेरे देवता !
नीर भेंटता ।। जलं।।

द्वन्द्व दें मिटा,
अये मेरे देवता !
गन्ध भेंटता ।। चन्दनं।।

सुध्याँ दे भिंटा,
अये मेरे देवता !
सुधां भेंटता ।। अक्षतं।।

सुकूँ दें भिंटा,
अये मेरे देवता
प्रसूँ भेंटता ।। पुष्पं।।

क्षुधा दें मिंटा,
अये मेरे देवता !
सुधा भेंटता ।। नैवेद्यं ।।

छाँव दें भिंटा,
अये मेरे देवता !
दीप भेंटता ।। दीपं।।

दूब दे हटा,
अये मेरे देवता !
धूप भेंटता ।। धूपं।।

छल दें मिंटा,
अये मेरे देवता !
फल भेंटता ।। फलं।।

अघ दें मिंटा,
अये मेरे देवता !
अर्घ भेंटता ।। अर्घ्यं।।

“हाईकू”

‘पा गये हंस विवेक,
इस ओर भी तो लो देख’

जयमाला

अमृत बरसे ।
गुरु मुख से ।
आ लें लूट इसे ।।

सुनते सोया भाग जगाता ।
लगे-हाथ, जो माँगा जाता ।।
पल-छूट न जाये, हाथ से,
आ लें लूट इसे ।।

अमृत बरसे,
गुरु मुख से,
आ लें लूट इसे ।

उधड़े रिश्तों की तुरपाई ।
कर दे, भर रिश्तों की खाई ।।
फल टूट न जाये डाल से,
आ लें लूट इसे ।

अमृत बरसे,
गुरु मुख से,
आ लें लूट इसे ।

क्षण-तनाव के विघटा सारे ।
मन-मुटाव दे लगा किनारे ॥
कल रूठ न जाये आप से,
आ लें लूट इसे ।

अमृत बरसे,
गुरु मुख से,
आ लें लूट इसे ।

।। जयमाला पूर्णार्घं।।

“हाईकू”

‘चाहिए और न,
मृग सी लुभाये बस दौड़ न’

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