परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 204
उठकर इनका सम्मान करें ।
गो इन्हें देख मुस्कान भरें ।।
मानो ! दूजे ही गो पाला ।
गो शाला अहो-भाग ! ग्वाला ।। स्थापना ।।
गो से गहरा इनका नाता ।
गो वत्स सनेह इन्हें भाता ।।
मानो दूजे ही गो पाला ।
गो शाला अहो-भाग ग्वाला ।। जलं ।।
अचरज है सारी दुनिया को ।
दी बदल इन्होंने दुनिया गो ।।
मानो दूजे ही गो पाला ।
गो शाला अहो-भाग ग्वाला।। चंदनं ।।
अजि कम ये कहाँ करिश्मा है ।
छू गायें रही आसमाँ है ।।
मानो दूजे ही गो पाला ।
गो शाला अहो-भाग ग्वाला ।। अक्षतम् ।।
जादू सा किया ‘कि इन्होंने ।
ली साँस चेन की गायों ने ।।
मानो दूजे ही गो पाला ।
गो शाला अहो-भाग ग्वाला ।। पुष्पं ।।
की इनकी संध्यावन विनती ।
‘कि न रोती गो निर्जन मिलती ।।
मानो दूजे ही गो पाला ।
गो शाला अहो-भाग ग्वाला ।। नैवेद्यं ।।
रोकी जो हिंसा आँधी है ।
गायों की चाँदी चाँदी है ।।
मानो दूजे ही गो पाला ।
गो शाला अहो-भाग ग्वाला ।। दीपं ।।
इन्हीं की आशीषी छाया ।
जो सावन गो जीवन आया ।।
मानो दूजे ही गो पाला ।
गो शाला अहो-भाग ग्वाला ।। धूपं ।।
नहीं और, हाथ इनका ई-में ।
गो अँगुली आज सभी घी में ।।
मानो दूजे ही गो पाला ।
गो शाला अहो-भाग ग्वाला ।। फलं ।।
इनका ही रहा हाथ सिर पे ।
झुक झूम-झूम जो गो थिरके ।।
मानो दूजे ही गो पाला ।
गो शाला अहो-भाग ग्वाला ।। अर्घं ।।
==दोहा==
सिद्ध कर दिया मेंट के,
गायों का सन्ताप ।
है जिसका कोई नहीं,
साथी उसके आप ।।
।।जयमाला ।।
मुझको मालूम और ना,
मैं तो बस जानूँ इतना ।।
वि-विशेष दया-सागर,
यानी विद्यासागर सागर ।।
वो देखो, मुस्कुरा रही गो, गो-शाला में ।
वो देखो, पग थिरका रही गो, गो-शाला में ।।
मुझको मालूम और न ,
मैं तो बस जानूँ इतना ।
वि-विशेष दया-सागर यानी विद्यासागर ।
वो देखो सँग निंदिया चेन गो, गो-शाला में ।
वो देखो सजग दिन औ रैन गो, गो-शाला में ।।
मुझको मालूम और न ,
मैं तो बस जानूँ इतना ।
वि- विशेष दया-सागर यानी विद्यासागर ।
वो देखो छुवा आसमाँ गो, गो-शाला में ।
वो देखो, बछुवा पास माँ गो, गो-शाला में ।।
मुझको मालूम और न,
मैं तो बस जानूँ इतना ।
वि-विशेष दया-सागर, यानी विद्यासागर ।
।। जयमाला पूर्णार्घ्य ।।
==दोहा==
अरजी यही अखीर में,
इन गायों के संग ।
आसमान से दो छुवा,
जीवन रूप पतंग ।।
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