परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 198
आय हैं हम तेरे द्वारे ।
हमारे ओ, पालन हारे ।।
उलझ कुछ काम गये ऐसे ।
बना दो, बन जाये जैसे ।। स्थापना ।।
आय हैं हम तेरे द्वारे ।
लाय भर जल कलशे न्यारे ।।
क्रोध रह-रह के तलफाता ।
दीजिये भिंटा बोध त्राता ।। जलं ।।
आय हैं हम तेरे द्वारे ।
लाय भर चन्दन घट न्यारे ।।
मान जा-जा के आ जाता ।
दीजिये भिंटा ज्ञान त्राता ।। चंदनं ।।
आय हैं हम तेरे द्वारे ।
थाल-अक्षत लाये न्यारे ।।
लोभ कब गया, न जो आता ।
दीजिये भिंटा ओम् त्राता ।। अक्षतम् ।।
आय हैं हम तेरे द्वारे ।
सुगंधित लिये पुष्प सारे ।।
काम के मन गाने गाता ।
दीजिये भिंटा राम त्राता ।। पुष्पं ।।
आय हैं हम तेरे द्वारे ।
लिये पकवान घृत-पिटारे ।।
होश चाहे-जब खो जाता ।
दीजिये भिंटा ऽतोष त्राता।। नैवेद्यं ।।
आय हैं हम तेरे द्वारे ।
दीप ले सम जग मग तारे ।।
भरम रह आस पास-जाता ।
दीजिये भिंटा ऽवगम त्राता ।। दीपं।।
आय हैं हम तेरे द्वारे ।
धूप,घट-धूप लिये न्यारे ।।
शोक से जुड़ा अमिट नाता ।
दीजिये भिंटा ऽऽलोक त्राता ।। धूपं ।।
आय हैं हम तेरे द्वारे ।
लिये फल विगलित ‘पन-खारे’ ।।
गहल ले जाय छीन साता ।
दीजिये भिंटा अकल त्राता ।। फलं ।।
आय हैं हम तेरे द्वारे ।
लाय वसु द्रव्य मिला सारे ।।
टूट ना रहा कुमत ताँता ।
दीजिये भिंटा सुमत त्राता ।। अर्घं।।
==दोहा==
जादू गुरु तस्वीर में,
करते ही दीदार ।
दुख हो जाता चित्त है,
खुद ही खाने चार ।।
।। जयमाला ।।
सुबह-सुबहो ।
ले नाम गुरु का लो ।।
शुभ हो-शुभ हो ।
ले नाम गुरु का लो ।।
फिर नहिं ले पायेंगे,
रहते काम ढ़ेर सारे ।
पता चले न आ निंदिया,
हो जाय खड़ी द्वारे ।।
सँभलो, देखो भालो ।
ले नाम गुरु का लो ।
शुभ हो-शुभ हो ।
ले नाम गुरु का लो ।।
भ्रमर कमल के बैठा अन्दर,
सोच रहा नादाँ ।
हुआ विभोर, भोर होने में ,
समय न अब ज्यादा ।।
‘कि गजराज आ गया लो ।
ले नाम गुरु का लो ।।
शुभ हो-शुभ हो ।
ले नाम गुरु का लो ।।
कली पिराये, थी बैठी ।
सुन्दर-सुन्दर सपने ।।
क्यों सपने अपने होने से,
पूर्व लगी कँपने ।।
हवा का झोका, आ गया जो ।
ले नाम गुरु का लो ।।
शुभ हो-शुभ हो ।
ले नाम गुरु का लो |।
सुबह-सुबहो ।
ले नाम गुरु का लो ।।
शुभ हो-शुभ हो ।
ले नाम गुरु का लो ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
रोम-रोम निवसा लिया,
जिसने गुरु का नाम ।
दूर-देर कब रह सकें,
उससे उसके राम ।।
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