परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 181
निराकुल तुम्हीं ।
यमी संयमी ।।
सिन्धु ज्ञान सुत ।
आठवीं दो जमीं ।। स्थापना।।
भरे जल घड़े ।
लिये दर खड़े ।।
सिन्धु ज्ञान सुत ।
मनवा न लड़े ।। जलं ।।
लिये रज मलय ।
समीप सविनय ।।
सिन्धु ज्ञान सुत ।
सदय हो हृदय ।। चंदनं ।।
आये खाली ना ।
लाये शालि धाँ ।।
सिन्धु ज्ञान सुत ।
हटे कालिमा ।। अक्षतम् ।।
हटा धूल को ।
लाये फूल को ।।
सिन्धु ज्ञान सुत ।
क्षमा भूल हो ।। पुष्पं ।।
चरु लिये सरस ।
धर हिये हरष ।।
सिन्धु ज्ञान सुत ।
दो दिखा दरश ।। नैवेद्यं ।।
घृत दीप लिये ।
‘कि समीप किये ।।
सिन्धु ज्ञान सुत ।
जग उठें दिये।। दीपं ।।
लिये धूप घट ।
दिये रख निकट ।।
सिन्धु ज्ञान सुत ।
विघटे संकट ।। धूपं ।।
फल वरण वरण ।
रख दिये चरण ।।
सिन्धु ज्ञान सुत ।
हो सहज मरण ।।फलं।।
लिये सब दरब ।
हिये धर अदब ।।
सिन्धु ज्ञान सुत ।
गले अब गरब ।। अर्घं।।
==दोहा==
गुरुवर का गुण गावना,
सुरसा-वदन समान ।
आना ही है पार न,
मान मान मन मान ।।
।। जयमाला ।।
शीर्ष चल तीर्थ संत हैं ।
गुरु विद्या भगवन्त हैं ।।
तरणि तरणा नाम इनका ।
विघन हरना काम इनका ।।
जलधि मुश्किल अन्त हैं ।
गुरु विद्या भगवन्त हैं ।।
ज्ञान झरना नाम इनका ।
मान हरना काम इनका ।।
नार उस पार कन्त हैं ।
गुरु विद्या भगवन्त हैं ।।
‘राव-करुणा’ नाम इनका ।
घाव भरना काम इनका ।।
पन्थि निराकुल पन्थ हैं ।
गुरु विद्या भगवन्त हैं ।।
ताप-हरणा नाम इनका ।
माफ करना काम इनका ।।
दुक्ख पतझड़ बसन्त हैं ।
गुरु विद्या भगवन्त हैं ।।
दरद-हरणा नाम इनका ।
मदद करना काम इनका।।
सिद्ध स्वयमेव मन्त्र हैं ।
गुरु विद्या भगवन्त हैं ।।
पीर-हरणा नाम इनका ।
तीर धरना काम इनका ।।
कवि अगम गुण अनन्त हैं ।
गुरु विद्या भगवन्त हैं ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
यही विनय अनुनय यहीं,
जग इक तारण हार ।
भँवर बीच नैय्या उसे,
कर कृपया दो पार ॥
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