परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 180
निराकुलता से नेह इन्हें ।
निराकुल रहना गेह इन्हें ।।
सिन्धु विद्या छोटे बाबा ।
हरो छल-छिद्र वा छलावा ।। स्थापना।।
नीर से भर लाये झारी ।
तुम्हीं से बनने अविकारी ।।
सिन्धु विद्या छोटे बाबा ।
हरो छल-छिद्र वा छलावा ।। जलं ।।
मलय-रस भर लाये गगरी ।
तुम्हीं से बनने शिव शहरी ।।
सिन्धु विद्या छोटे बाबा ।
हरो छल-छिद्र वा छलावा ।। चंदनं।।
अछत सित भर लाये थाली ।
तुम्हीं से होने मद खाली ।।
सिन्धु विद्या छोटे बाबा ।
हरो छल-छिद्र वा छलावा ।। अक्षतम् ।।
पुष्प ले आये मनहारी ।
तुम्हीं से बनने ‘दृग्-धारी’ ।।
सिन्धु विद्या छोटे बाबा ।
हरो छल-छिद्र वा छलावा ।। पुष्पं ।।
लिये व्यंजन आये घी के ।
तुम्हीं से बनने धनि धी के ।।
सिन्धु विद्या छोटे बाबा ।
हरो छल छिद्र वा छलावा ।। नैवेद्यं ।।
दीप की ले आये माला ।
तुम्हीं से बनने गोपाला ।।
सिन्धु विद्या छोटे बाबा ।
हरो छल छिद्र वा छलावा ।। दीपं ।।
शोध लाये सुगंध कर में ।
तुम्हीं से रहने अब घर में ।।
सिन्धु विद्या छोटे बाबा ।
हरो छल छिद्र वा छलावा ।। धूपं ।।
सरस ऋतु फल लाये न्यारे ।
तुम्हीं से गुण पाने सारे ।।
सिन्धु विद्या छोटे बाबा ।
हरो छल-छिद्र वा छलावा ।। फलं ।।
थाल द्रव्यों से भर लाये ।
तुम्हीं सी चर्या है भाये ।।
सिन्धु विद्या छोटे बाबा ।
हरो छल-छिद्र वा छलावा ।। अर्घं ।।
==दोहा==
गुरुवर का गुण गावना,
कारज कठिन अतीव ।
आखिर कर मैं क्या करूँ,
माने तब न जीभ ।।
॥ जयमाला ॥
घाट-घाट का पी पानी ।
बात यही जानी मानी ।।
और नहीं गुरु सी शरणा ।
और नहीं गुरु की करुणा ।।
घाट घाट का पी पानी ।
बात यही जानी मानी ।
और नहीं गुरु सी छैय्या ।
और नहीं गुरु ही नैय्या ।।
घाट घाट का पी पानी ।
बात यही जानी मानी ।।
और नहीं गुरु दीवाली,
और नहीं गुरु ‘धी’ प्याली ।।
घाट घाट का पी पानी ।
बात यही जानी मानी ।।
और नहीं गुरु सा शिक्षक ।
और नहीं गुरु संरक्षक ।।
घाट-घाट का पी पानी ।
बात यही जानी मानी ।।
और नहीं गुरु की भाँती ।
और नहीं गुरु ही साथी ।।
घाट घाट का पी पानी ।
बात यही जानी मानी ।।
और नहीं गुरु जी दाता ।
और नहीं गुरु ही त्राता ।।
घाट घाट का पी पानी ।
बात यही जानी मानी ।।
और नहीं गुरु ही तरणि ।
और नहीं गुरु ही जननी ।।
घाट घाट का पी पानी ।
बात यही जानी मानी ।।
और नहीं गुरु नव जीवन ।
और नहीं गुरु संजीवन ।।
घाट घाट का पी पानी,
बात यही जानी मानी ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
पहले ही था कह रहा,
सरल न गुरु गुण गान ।
कृपया अब देवें नहीं,
भूल चूक पे ध्यान ॥
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