परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 170
मैं बड़भागी ।
मेरी लगन लागी ।।
गुरु चरण से ।
तन मन वचन से ।। स्थापना ।।
अपहर माया ।
सुन विरद आया ।।
दृग् जल लाया ।
हित हिरणा दांया ।। जलं ।।
अपहर माया ।
सुन विरद आया ।।
चन्दन लाया ।
हित पुन इस लाया ।। चन्दनं ।।
अपहर माया ।
सुन विरद आया ।।
अक्षत आया ।
हित अक्षर साया ।। अक्षतम् ।।
अपहर माया ।
सुन विरद आया ।।
पुष्प भिंटाया ।
हित मन निज राया ।। पुष्पं ।।
अपहर माया ।
सुन विरद आया ।।
नेवज लाया ।
हित अमरित भाया ।। नैवेद्यं ।।
अपहर माया ।
सुन विरद आया ।।
दीप जगाया ।
हित अवगम काया ।। दीपं।।
अपहर माया ।
सुन विरद आया ।।
सुगंध लाया ।
हित सुर मुनि गाया ।। धूपं ।।
अपहर माया ।
सुन विरद आया ।।
फल ले आया ।
हित शिव वधु जाया ।। फलं ।।
अपहर माया ।
सुन विरद आया ।।
अर्घ्य चढ़ाया ।
हित छत्रच्छाया ।। अर्घं।।
==दोहा==
पल भी गुरु-गुण-गान से,
होता बेड़ा पार ।
पलक सही छू आवते,
चल गुरु का दरबार ॥
॥ जयमाला ॥
दीपों की थाल सजाओ ।
विद्यागुरु की आ-रति उतारें आओ ।।
विद्यागुरु सतजुग निर्ग्रन्था ।
विद्यागुरु कलजुग अरिहन्ता ।।
भावी इक शिव राधा कन्ता ।
विद्यागुरु चल आगम ग्रन्था ।।
उर लौं गुरु नाम जगाओ ।
दीपों की थाल सजाओ ।
विद्यागुरु की आ-रति उतारें आओ ।।१।।
विद्यागुरु इक गगन सितारे ।
विद्यागुरु इक तारणहारे ।।
प्रतिभा रत संस्कृति रखवाले ।
विद्यागुरु इक शरण सहारे ।।
ला श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ।
उर लौं गुरु नाम जगाओ ।
दीपों की थाल सजाओ ।
विद्यागुरु की आ-रति उतारें आओ ।।२।।
विद्यागुरु बल बालक बाला ।
विद्यागुरु कलिकाल गुपाला ।।
नभ धरती पाताल उजाला ।
विद्यागुरु व्रति भाल विशाला ।।
मोती से आंख भिंजाओ ।
ला श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ।
उर लौं गुरु नाम जगाओ ।
दीपों की थाल सजाओ ।
विद्यागुरु की आ-रति उतारें आओ ।।३।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
दिल की तुम धड़कन तुम्हीं,
आती जाती श्वास ।
चरण पास रख लीजिये,
इतनी सी अरदास ॥
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