परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 161
‘जि पुजारी नये नये हम ।
आ खाली हाथ गये हम ॥
सुनते, गुरु विद्या दानी ।
कर लो अपने सा ध्यानी ॥ स्थापना ॥
नहिं मिल पाई जल झारी ।
दृग् झरना बनी हमारी ।।
जो कुछ यहि गुरु स्वीकारो ।
नौ-भौ-जल पार उतारो ॥ जलं ॥
नहिं आस पास भी चन्दन ।
भावन भीगा बस वन्दन ।।
जो कुछ यहि गुरु स्वीकारो ।
नौ-भौ-जल पार उतारो ॥ चन्दनं ॥
अक्षत नहिं पास पिटारे ।
धूमिल बस भाग सितारे ।।
जो कुछ यहि गुरु स्वीकारो ।
नौ-भौ-जल पार उतारो ॥ अक्षतम् ॥
नहिं हाथ पुष्प लग पाये ।
मन, मुनि मन जैसा लाये ॥
जो कुछ यहि गुरु स्वीकारो ।
नौ-भौ-जल पार उतारो ॥ पुष्पं ॥
नैवेद्य बना नहिं पाया ।
अब तक का पुण्य कमाया ।।
जो कुछ यहि गुरु स्वीकारो ।
नौ-भौ-जल पार उतारो ॥ नैवेद्यं ॥
सँग दीप तेल नहिं बाती ।
श्वासें बस आती जाती ॥
जो कुछ यहि गुरु स्वीकारो ।
नौ-भौ-जल पार उतारो ॥ दीपं ॥
नहिं धूप, धूप घट भी ना ।
परिणति बस अलस विहीना ।।
जो कुछ यहि गुरु स्वीकारो ।
नौ-भौ-जल पार उतारो ॥ धूपं ॥
खोजा फल नहिं मिल पाया ।
श्री फल ‘कर’ जुगल बनाया ।।
जो कुछ यहि गुरु स्वीकारो ।
नौ-भौ-जल पार उतारो ॥ फलं ॥
नहिं अरघ कहीं दीखे ओ ।
व्यञ्जन स्वर माँ सीखे जो ॥
जो कुछ यहि गुरु स्वीकारो ।
नौ-भौ-जल पार उतारो ॥ अर्घं ॥
*दोहा*
मिले नैन गुण गावते,
आ गुरु इक-टक देख ।
काल काल से पूर्व भी,
आ धमका, कई लेख ॥
॥ जयमाला ॥
॥ विद्या गुरुकुल अजब अनोखा ॥
होता यहाँ परिश्रम कस से ।
होता परिषह सहना हँस के ॥
आय न मौका, जाय ‘कि टोका ।
विद्या गुरुकुल अजब अनोखा ॥
इक ना यहाँ मँजे हैं सारे,
इक से अहा सजे हैं सारे ॥
भले खाय, न खिलाय धोका ।
विद्या गुरुकुल अजग अनोखा ॥
परहित नम हैं, नयन सभी के ।
परहित निकसें वयन सभी के ॥
खे ना रहे सलंगर नौका ।
विद्या गुरुकुल अजब अनोखा ॥
कला यहाँ हल्के बनने की ।
बला कहाँ कल के बनने की ॥
पलक न ले सामायिक झोका ।
विद्या गुरुकुल अजग अनोखा ॥
पीछे कोइ न, कोइ न आगे ।
हिल मिल साथ चलें सब, जागे ॥
क्या गुण गाऊँ, देऊँ ढ़ोका ।
विद्या गुरुकुल अजब अनोखा ॥
॥ जयमाला पूर्णार्घं ॥
==दोहा==
यही विनय अनुनय यही,
देवों के भी देव ।
सिर ऊपर रखिये बना,
छाया-छतर-सदैव ॥
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