परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 149
जिनका पा समवशरण ।
करता दुख दर्द गमन ।।
श्री गुरु विद्या भगवन् ।
तिन चरणन नम्र नमन।। स्थापना ।।
दो ऐसा आशीर्वाद ।
फिर याद न करूँ फरियाद ।।
लाया हूँ जल निर्मल ।
पाने समकित उज्ज्वल ।। जलं ।।
दो ऐसा अशीर्वाद ।
हो प्रात, विघट अघ रात ।।
मलयज रस लिये खड़ा ।
दो कंचन बना खरा ।। चन्दनं ।।
दो ऐसा आशीर्वाद ।
नहीं करूँ हाथ तर हाथ ।।
अक्षत लाये द्वारे ।
खिर जायें मद सारे ।। अक्षतम् ।।
दो ऐसा आशीर्वाद ।
करूँ मरण न कदली घात ।।
आया ले पुष्प परात ।
दो रख मेरे सर हाथ ।। पुष्पं ।।
दो ऐसा आशीर्वाद ।
करूँ कभी न वाद-विवाद ।।
आया ले चरु थाली ।
हो इक निंदा-गाली ।। नैवेद्यं ।।
दो ऐसा आशीर्वाद ।
छूटे न आपका साथ ।।
आया ले माला दीप ।
निवसा लो चरण समीप ।। दीपं ।।
दो ऐसा आशीर्वाद ।
ले सकूँ आत्म का स्वाद ।।
दर खड़ा धूप कर कर ।
लो थाम हाथ, हित घर ।। धूपं ।।
दो ऐसा आशीर्वाद ।
इत की उत करूँ न बात ।।
लाया फल रस भरपूर ।
करना न स्वयं से दूर ।। फलं ।।
दो ऐसा आशीर्वाद ।
हो करुणा की बरसात ।।
आया ले दरब सभी ।
घर आ दो दर्श कभी ।। अर्घं ।।
==दोहा==
श्री गुरु के आशीष से,
लगे विजय श्री हाथ ।
आ पल ले आते चलो,
गुरु का आशीर्वाद ॥
॥ जयमाला ॥
गुरुवर परम ।
चाहते छत्रछाया हम ।।
अँधेरा आज हा ! गहरा,
हवा पश्चिम ने आ घेरा ।
ओट दे दीप भर दो दम ।
गुरुवर परम, चाहते छत्रछाया हम ।।
पकड़ नस ली विदेशी ने ।
अकड़ नश दी स्वदेशी ने ।।
युग दिखा दो वही स्वर्णिम ।
गुरुवर परम, चाहते छत्रछाया हम ।।
यदपि हैं उम्र के कच्चे ।
दिवाने ड्रग्स के बच्चे ।।
नव जन्म दो, सिखा धर्म ।
गुरुवर परम, चाहते छत्रछाया हम।।
चढ़ा बच्चों पे गोरा रँग ।
लसे चैंटिंग, फँसे डेंटिंग ।।
गहना पहना दो आ शरम ।
गुरुवर परम,चाहते छत्रछाया हम ।।
हा ! पलायन करें बच्चे ।
‘जल-लायनन’ डरें बच्चे ।।
दो बता, हो शेर से न कम ।
गुरुवर परम, चाहते छत्रछाया हम ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
यही प्रार्थना आपसे,
सुदूर आलस भाव ।
राह गई खो, दो-बता,
कहाँ मुक्ति पुर गाँव ॥
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