परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 106
बनने चले निराकुल ।
रहना सीखे मिलजुल ।।
गुरु वे विद्या-सागर ।
अपना लें, करुणा कर ।।स्थापना।।
भर झारी जल लाये ।
मन चंचल पन भाये ।।
गुरुवर विद्या-सागर ।
मन गहल दो विदा कर ।। जलं।।
घिस रस मलयज लाये ।
मन पाप तरफ धाये ।।
गुरुवर विद्या-सागर ।
मन छुये न विषय जहर ।।चन्दनं।।
ले शाली धान आये ।
मन गहल श्वान भाये ।।
गुरुवर विद्या-सागर ।
मन तजे गहल वानर ।।अक्षतम्।।
ले पुष्प थाल आये ।
मन मनमानी भाये ।।
गुरुवर विद्या-सागर ।
मन कर पाऊँ चाकर ।।पुष्पं।।
ले व्यंजन घृत आये ।
अनुराग न क्षुध् जाये ।।
गुरुवर विद्या-सागर ।
मन बने न भेदी घर ।।नैवेद्यं।।
घृत दीप थाल लाये ।
मन रह-रह तलफाये ।।
गुरुवर विद्या-सागर ।
मन रहे न अब पामर ।।दीपं।।
दश गन्ध धूप लाये ।
मन गीत मृदा गाये ।।
गुरुवर विद्या-सागर ।
मन भ्रमे न इधर उधर ।।धूपं।।
ऋतु फल डल पक लाये ।
मन भग भग दिखलाये ।।
गुरुवर विद्या-सागर ।
मन रहे न अब बाहर ।।फलं।।
ले सरब दरब आये ।
मन वश में कब आये ।।
गुरुवर विद्या-सागर ।
मन उठती थमे लहर ।।अर्घं।।
==दोहा==
गुरु गरिमा तब क्या कहें,
सुर गुरु जोड़े हाथ ।
हो मन रहा उतावला,
गुरुवर देना साथ ।।
॥ जयमाला ॥
आरतिया आरतिया
विद्यागुरु की आरतिया, उतारें आओ ।
विद्यागुरु की मूरतिया, निहारें आओ ।।
चीर चीर ये निकले घर से ।
पीर पराई लख दृग् बरसे ।।
सूरज, चांद न तारे इनसे ।
लख गुणियों को परणति हरसे ।।
ज्योति जगाओ ।
विद्यागुरु की आरतिया, उतारें आओ ।
विद्यागुरु की मूरतिया, निहारें आओ ।।१।।
ज्ञान ध्यान संलीन सदा ही ।
बनने सुदृढ़ प्रतिज्ञ सुराही ।।
भाव अलस ना करें कदापि ।
कलजुग शिव राधा वर शाही ।।
दीप सजाओ ।
ज्योति जगाओ ।
विद्यागुरु की आरतिया, उतारें आओ ।
विद्यागुरु की मूरतिया, निहारें आओ ।।२।।
खुद में मगन दृष्टि रख नासा ।
आश प्रथम, अंतिम विश्वासा ।।
चल दी आशा-विषय उदासा ।
सहज-निरा-कुल सुख अभिलाषा ।।
शीष झुकाओ ।
दीप सजाओ ।
ज्योति जगाओ ।
विद्यागुरु की आरतिया, उतारें आओ ।
विद्यागुरु की मूरतिया, निहारें आओ ।।३।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
साधारण मत मानिये,
श्री गुरु-देव प्रताप ।
दर्श मात्र अपकर्ष ले,
कोटि-कोटि भव ताप ।।
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