परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 102
थिर साध रहे संधान ।
हित संस्कार वरदान ।।
ओंकार दूसरे नाम ।
गुरु विद्या सिन्धु प्रणाम ।।स्थापना।।
लाये भर प्रासुक नीर ।
हो सुमरण वक्त अखीर ।।
गुरु विद्या सिन्धु ऋषीश ।
दे कृपया दो आशीष।।जलं।।
लाये चन्दन घिस द्वार ।
दो धरा धरा सिर भार ।।
गुरु विद्या सिन्धु ऋषीश ।
दे कृपया दो आशीष ।।चंदन।।
लाये भर अछत परात ।
दो निभा शिव-तलक साथ ।।
गुरु विद्या सिन्धु ऋषीश ।
दे कृपया दो आशीष ।।अक्षतम्।।
लाये चुन सुरभित फूल ।
नहिं करूँ भूल भी भूल ।।
गुरु विद्या सिन्धु ऋषीश ।
दे कृपया दो आशीष ।।पुष्पं।।
लाये रच घृत पकवान ।
हो एक मशान मकान ।।
गुरु विद्या सिन्धु ऋषीश ।
दे कृपया दो आशीष ।।नैवेद्यं।।
लाये मणिमय घृत दीप ।
लो निवसा चरण समीप ।।
गुरु विद्या सिन्धु ऋषीश ।
दे कृपया दो आशीष ।।दीपं।।
आये ले धूप अनूप ।
धारूँ नहिं अब बहु-रूप ।।
गुरु विद्या सिन्धु ऋषीश ।
दे कृपया दो आशीष ।।धूपं।।
लाये फल नेक अनेक ।
साधा सब साधूँ एक ।।
गुरु विद्या सिन्धु ऋषीश ।
दे कृपया दो आशीष।।फलं।।
लाये वसु द्रव्यन थाल ।
अब बुनूँ न मकड़ी जाल ।।
गुरु विद्या सिन्धु ऋषीश ।
दे कृपया दो आशीष ।।अर्घं।।
==दोहा==
आओ मिल के हम सभी,
करते गुरु गुणगान ।
गुरु ही तो कलि काल में,
भक्तों के भगवान् ॥
॥ जयमाला ॥
हवा पश्चिमी जाओ अबकी लौट ।
दे गुरु विद्या सिन्धु रहे ‘कि ओट ।।
भले पास इनके नहिं अम्बर आडम्बर ।
भृकुटी क्या लें तान, धरा डाले अम्बर ।।
इनकी पड़े वज्र पे भारी चोट ।
हवा पश्चिमी जाओ अबकी लौट ।।
दे गुरु विद्या सिन्धु रहे कि ओट ।
हवा पश्चिमी जाओ अबकी लौट ।।
भले रहे मुस्कान होंठ पे आठ पहर ।
पर फीका आगे इनके नीहार कहर ।।
देख, न मिस-मिसाने लागें होंठ ।
हवा पश्चिमी जाओ अबकी लौट ।।
दे गुरु विद्या सिन्धु रहे कि ओट |
हवा पश्चिमी जाओ अबकी लौट ।।
भले अहिंसा धर्म बाग डोरी थामें ।
ईषत् हिंसक का द्योतक जो ‘अ’ जा में ।।
पड़ने तेरी लगे न उल्टी गोट ।
हवा पश्चिमी जाओ अबकी लौट ।।
दे गुरु विद्या सिन्धु रहे कि ओट ।
हवा पश्चिमी जाओ अबकी लौट ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
नहीं मुलक पल-पलक भी,
छूते ही गुरु द्वार ।
रहा अछूता कब कहो,
प्रभु-वर का दीदार ॥
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