परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 87
=हाईकू=
दे दो ‘ना’,
कुछ रोज लगातार ही पड़गाहन ।।१।।
दे सकते हैं सुना,
सात बार भी पड़गाहन ।।२।।
और फिर,
हो जायेगी आदत जो तेरे पैरों को ।।३।।
आ जायेंगे तो इधर,
भुलाकर औ’ चेहरों को ।।४।।स्थापना।।
गा पाने, गुण तराने ।
जल लाया मैं चढ़ाने ।।
हे ! भगवन् !
हेत सुमरण, शरण तेरी पाने ।।जलं।।
धूल चरण तेरी पाने ।
चन्दन लाया मैं चढ़ाने ।।
हे ! भगवन् !
हेत सुमरण, शरण तेरी पाने ।।चन्दनं।।
एक नजर तेरी पाने ।
अक्षत लाया में चढ़ाने ।।
हे ! भगवन् !
हेत सुमरण, शरण तेरी पाने ।।अक्षतं।।
मुस्कान तेरी पाने ।
पुष्प लाया मैं चढ़ाने ।।
हे ! भगवन् !
हेत सुमरण, शरण तेरी पाने ।।पुष्पं।।
छत्र-छाँव तेरी पाने ।
नैवेद्य लाया मैं चढ़ाने ।
हे ! भगवन् !
हेत सुमरण, शरण तेरी पाने ।।नेवैद्यं।।
पीछिका तेरी पाने ।
दीप लाया मैं चढ़ाने ।।
हे ! भगवन् !
हेत सुमरण, शरण तेरी पाने ।।दीप॑।।
शिव नाव तेरी पाने ।
धूप लाया मैं चढ़ाने ।।
हे ! भगवन् !
हेत सुमरण, शरण तेरी पाने ।।धूपं।।
भक्ति नवधा तेरी पाने ।
श्री फल लाया मैं चढ़ाने ।।
हे ! भगवन् !
हेत सुमरण, शरण तेरी पाने ।।फल॑।।
तेरे भक्तों में आने ।
अर्घ लाया मैं चढ़ाने ।।
हे ! भगवन् !
हेत सुमरण, शरण तेरी पाने ।।अर्घं।।
“दोहा”
शगुण नन्त ! कलि तीर्थ जे,
कलि करुणा अवतार ।
गुरु विद्या सविनय तिन्हें,
वन्दन बारम्बार ॥
“जयमाला”
जयवन्तो गुरुदेव ।
शत शरद ।
चाँद सूरज से सदैव ।
बिच नखत ।
जयवन्तो गुरुदेव ।
शत शरद ।
अय ! मेरे गुरुवर ।
लग जाये तुम्हें मेरी भी उमर ।।
न्यार कद !
पार हद ।।
जयवन्तो गुरुदेव ।
शत शरद ।
स्व…स्थ रहें ।
आप स्वस्थ्य रहें ।।
शिव सुन्दर सत !
अय न्यार कद !
पा पार, हद ।।
जयवन्तो गुरुदेव ।
शत शरद ।
चाँद सूरज से सदैव ।
बिच नखत ।
जयवन्तो गुरुदेव ।
शत शरद ।
अय ! मेरे गुरुवर ।
लग जाये तुम्हें मेरी भी उमर ।।
न्यार कद !
पार हद ।।
जयवन्तो गुरुदेव ।
शत शरद ।
फरिश्त रहें ।
मन प्रशस्त रहें ।।
श्री मन्दर वत् !
शिव सुन्दर सत !
अय न्यार कद !
पा पार, हद ।।
जयवन्तो गुरुदेव ।
शत शरद ।
चाँद सूरज से सदैव ।
बिच नखत ।
जयवन्तो गुरुदेव ।
शत शरद ।
अय ! मेरे गुरुवर ।
लग जाये तुम्हें मेरी भी उमर ।।
न्यार कद !
पार हद ।।
जयवन्तो गुरुदेव ।
शत शरद ।।जयमाला पूर्णार्घं।।
“दोहा”
दूर पर्श गुरु दर्श भी,
बड़े पुण्य की बात ।
कहना ही क्या पुण्य का,
सिर जिसके गुरु हाथ ॥
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