परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 51
कुछ ना कुछ सीखे जिनसे,
पल पल दुनिया सारी ।
सन्त बहुत पर जिनकी बात,
जगत् सबसे न्यारी ॥
एक दाग भी दामन में,
जिनके ना पाओगे ।
गुरु विद्या दर उनके जो,
आये तर जाओगे ।।स्थापना।।
धुला दूध का नहीं नाथ ! मैं,
पापी मायावी |
व्यसन कौन वो सिर चढ़ मेरे,
जो ना हो हावी ।।
अहो भक्त वत्सल गुरु विद्या,
करुणा कर दीजो ।
आप भक्त का सपना मेरा,
अपना कर दीजे ।।जलं।।
मुझ सा पंचेन्द्रिय विषयों का,
रसिक कहाँ त्रिभुवन ।
कहीं ना कहीं से मल ढूँढ़,
श्वान सा लाये मन ।।
अहो भक्त वत्सल गुरु विद्या,
करुणा कर दीजो ।
आप भक्त का सपना मेरा,
अपना कर दीजे ।।चन्दनं।।
ढ़ोल दूर के मन भावन सा,
बाहिर सुन्दर हूँ ।
अन्तर् में विकराल हन्त ! बिष,
घुला समुन्दर हूँ ।।
अहो भक्त वत्सल गुरु विद्या,
करुणा कर दीजो ।
आप भक्त का सपना मेरा,
अपना कर दीजे ।।अक्षतं।।
पाँव पसारे है मनमथ कुछ,
ऐसे जेहन में |
चन्दन तरु से विषधर जैसे,
एक मेक वन में ।।
अहो भक्त वत्सल गुरु विद्या,
करुणा कर दीजो ।
आप भक्त का सपना मेरा,
अपना कर दीजे ।।पुष्पं।।
जीव वनस्पति में भी निज सा,
यूँ कब सोचूँ मैं ।
जिह्वा लोलुप बन हरि दाँतन,
बीच दबोचूँ मैं ।।
अहो भक्त वत्सल गुरु विद्या,
करुणा कर दीजो ।
आप भक्त का सपना मेरा,
अपना कर दीजे ।।नेवैद्यं।।
मेरी आदत सी हो गई,
बुराई करने की ।
सिर बोझा कन्धे रख राह,
जम्हाई भरने की ॥
अहो भक्त वत्सल गुरु विद्या,
करुणा कर दीजो ।
आप भक्त का सपना मेरा,
अपना कर दीजे ।।दीपं।।
गुणवानों का हुनर कहाँ,
आता है रास मुझे ।
पल वो कौन मति किल्विष जब,
करे ना दास मुझे ।।
अहो भक्त वत्सल गुरु विद्या,
करुणा कर दीजो ।
आप भक्त का सपना मेरा,
अपना कर दीजे ।।धूपं।।
निश्चित सब फिर भी निश्चिन्त्य,
कहाँ हो पाता हूँ ।
अनहोनी को होनी करने,
जोर लगाता हूँ ।।
अहो भक्त वत्सल गुरु विद्या,
करुणा कर दीजो ।
आप भक्त का सपना मेरा,
अपना कर दीजे ।।फलं।।
पीड़ा कहाँ आज तक भासी,
पर की अपनी सी ।
कटुक वचन से भीजीं जिह्वा,
चले कतरनी सी |।
अहो भक्त वत्सल गुरु विद्या,
करुणा कर दीजो ।
आप भक्त का सपना मेरा,
अपना कर दीजे ।।अर्घं।।
*दोहा*
निरतिचार जो पालते,
कलि आराधन चार ।
गुरु विद्या सविनय तिन्हें,
वन्दन वारम्बार ।।
==जयमाला==
विद्या-सागर दीव ।
जिसने रखा करीब ।।
उसके वारे-न्यारे ।
सद्-गुरु तारण हारे ।।
हवा बुझा न पाती ।
तेल न जिसमें बाती ।।
इक अजीबोगरीब ।
विद्या-सागर दीव ।।
जिसने रखा करीब ।।
उसके वारे-न्यारे ।
सद्-गुरु तारण हारे ।।
करे न तेरा मेरा ।
अरे! न तले अंधेरा ।।
नैन-नैन संजीव ।
विद्या-सागर दीव ।।
जिसने रखा करीब ।।
उसके वारे-न्यारे ।
सद्-गुरु तारण हारे ।।
कब उगले कालिख है ।
पलक झपाये कब है ।।
जागृत ‘सहज’ सदीव ।
विद्या-सागर दीव ।।
जिसने रखा करीब ।।
उसके वारे-न्यारे ।
सद्-गुरु तारण हारे ।।
“दोहा”
रूठी रह पाई कहो,
कब तक शिशु से मात ।
ओ माँ विद्या,बाल मैं ,
करो दया बरसात ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
Sharing is caring!