वर्धमान मंत्र
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*पूजन*
एक सहारा हमें तिहारा ।
जय जय ऋषि, मुनि, यति, अनगारा ॥
साँचा इक निर्ग्रन्थ दुवारा ।
जय जय कारा, जय जय कारा ॥
ॐ ह्रीं श्री ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो: नम:
अत्र अवतर अवतर संवौषट् इति आह्वानम् ।
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनम् ।
अत्र मम सन्निहतो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्
कलशी लाकर ।
जल की सादर ॥
भेंट हेत रत्नत्रय धारा ।
एक सहारा ।
हमें तिहारा ।
जय जय ऋषि, मुनि, यति, अनगारा ॥
ॐ ह्रीं श्री ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो: नम:
जन्म जरा मृत्यु विनाशनाथ
जलं निर्वाणमीति स्वाहा ।
चन्दन गागर ।
चन्द न ‘भा’ कर ॥
भेंट हेत भव जलधि किनारा ।
एक सहारा ।
हमें तिहारा ।
जय जय ऋषि, मुनि, यति, अनगारा ॥
ॐ ह्रीं श्री ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो: नम:
संसार ताप विनाशनाथ
चंदनम् निर्वाणमीति स्वाहा ।
अक्षत पातर ।
अपर क्षपाकर ॥
भेंट हेत सिध रिध परिवारा ।
एक सहारा ।
हमें तिहारा ।
जय जय ऋषि, मुनि, यति, अनगारा ॥
ॐ ह्रीं श्री ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो: नम:
अक्षयपद प्राप्ताय
अक्षतान् निर्वाणमीति स्वाहा।
भा रतनारी ।
पुष्प पिटारी ॥
भेंट हेत दिव कुंज विहारा ।
एक सहारा ।
हमें तिहारा ।
जय जय ऋषि, मुनि, यति, अनगारा ॥
ॐ ह्रीं श्री ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो: नम:
कामबाण विध्वंशनाय
पुष्पम् निर्वाणमीति स्वाहा ।
अमृत, निराली ।
चरु घृत वाली ॥
भेंट हेत क्षुद-बाध निवारा ।
एक सहारा ।
हमें तिहारा ।
जय जय ऋषि, मुनि, यति, अनगारा ॥
ॐ ह्रीं श्री ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो: नम:
क्षुधा रोग विनाशनाथ
नैवेद्यम् निर्वाणमीति स्वाहा ।
गो घी वाली ।
नव दीवाली ॥
भेंट हेत भीतर उजियारा ।
एक सहारा ।
हमें तिहारा ।
जय जय ऋषि, मुनि, यति, अनगारा ॥
ॐ ह्रीं श्री ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो: नम:
मोहान्धकार विनाशनाय
दीपम् निर्वाणमीति स्वाहा ।
दश विध गन्धा ।
स्वर्ण सुगन्धा ॥
भेंट हेत निरसन भव-कारा ।
एक सहारा ।
हमें तिहारा ।
जय जय ऋषि, मुनि, यति, अनगारा ॥
ॐ ह्रीं श्री ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो: नम:
अष्टकर्म दहनाय
धूपम् निर्वाणमीति स्वाहा ।
दिव्य नवेले ।
श्रीफल भेले ॥
भेंट हेत दिव-शिव अवतारा ।
एक सहारा ।
हमें तिहारा ।
जय जय ऋषि, मुनि, यति, अनगारा ॥
ॐ ह्रीं श्री ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो: नम:
मोक्ष फल प्राप्ताय
फलं निर्वाणमीति स्वाहा ।
दिव पुर नाता ।
द्रव्य पराता ॥
भेंट हेत पल अन्त सहारा ।
एक सहारा ।
हमें तिहारा ।
जय जय ऋषि, मुनि, यति, अनगारा ॥
ॐ ह्रीं श्री ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो: नम:
अनर्घ्य पद प्राप्ताय
अर्घ्यं निर्वाणमीति स्वाहा ।।
*विधान प्रारंभ*
करुणा, क्षमा भण्डारी ।
ऋषि, मुनि, यती, अनगारी ।।
करके महर्षि का ध्यान ।
मनचाहा मिला वरदान ॥
महिमा महर्षि न्यारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी ॥
ॐ ह्रीं श्री ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो: नम:
अत्र अवतर अवतर संवौषट् इति आह्वानम् ।
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनम् ।
अत्र मम सन्निहतो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्
*बुद्धि ऋद्धि*
करके महर्षि का ध्यान ।
मनचाहा मिला वरदान॥
महिमा महर्षि न्यारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
वैसा काम, जैसा नाम ।
औ’-धी धारते, निष्काम॥
वाणी स्वर्ग-शिव-कारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं अवधिज्ञान बुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः
मन की जान लेते बात ।
मन ना मान देते भ्रात॥
‘मनके’ फिरें णवकारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं मन:पर्ययज्ञान बुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
जानें जगत् सब इक-साथ ।
‘जीवन मुक्त’ हाथ उपाध॥
केवल ज्ञान रिध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं केवलज्ञान बुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
छोटा बीज, वृक्ष महान ।
रखते बीज-पद का ज्ञान॥
बुद्धी बीज भव हारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं बीजबुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
भवि ! धानाद कोष्ठ अधार ।
धारण रूप ज्ञान अपार॥
बुद्धी कोष्ठ शिव कारी।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं कोष्टबुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
पद अनुशरण कार अशेष |
ईहा-वाय ज्ञान विशेष॥
रिध पद-अनुशरण न्यारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं पादानुसारिणी बुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः।
युगपत् सुनें भाष-विभिन्न ।
‘बहु’-विध क्षिप्र ज्ञाँ सम्पन्न॥
धन ! संभिन्न श्रोता ‘री ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं संभिन्न श्रोतृत्व बुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
चाखें दूर योजन संख ।
जे जे स्वाद भूम, निकंख॥
धन ! रिध दूर स्वादा ‘री।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं दूरस्वादित्व बुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नम:।
पर्सें दूर योजन संख ।
जे जे पर्श भूम, निकंख॥
धन ! रिध दूर-पर्शा ‘री।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं दूरस्पर्शत्व बुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
सूँघें दूर योजन संख।
जे जे गन्ध भूम, निकंख ॥
धन ! रिध दूर-धाणा ‘री।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं दूरघ्राणत्व बुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
सुन लें दूर योजन संख ।
जे जे शब्द भूम, निकंख॥
धन ! रिध दूर-श्रवणा ‘री।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं दूरश्रवणत्व बुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
देखें दूर योजन संख ।
जे जे वर्ण भूम, निकंख॥
धन ! रिध दूर-दर्शा ‘री।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं दूरदर्शित्व बुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
पढ़ कर अंग-ग्यारह सर्व ।
पढ़ लें पूर्व दश, गतगर्व॥
धन ! रिध पूर्व दश धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं दश पूर्वित्व बुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
पाठी सर्व चौदह पूर्व ।
अर्चा-महा देव अपूर्व॥
धन ! रिध पूर्व चौदा ‘री ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं चतुर्दश पूर्वित्व बुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
जानें फल शुभाशुभ लोक ।
आठ निमित्त द्वारा, ढ़ोक॥
अंगठ निमित महतारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं अष्टांग निमित्त बुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः
कर्मज, वैनयिक, परिणाम ।
उत्पत, चार प्रज्ञा नाम॥
प्रज्ञा श्रमण दृग्-धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं प्रज्ञाश्रमणत्व बुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
बिन उपदेश ही वैराग ।
बुद्ध निमित्त इक, बड़-भाग॥
बुध प्रत्येक जय थारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं प्रत्येक बुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
परमत-वादि अभिजित एक ।
‘भी’तर डूब, हंस विवेक॥
बुध वादित्व जय थारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं वादित्व बुद्धि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः।
*विक्रिया ऋद्धि*
अणु से अणू कर लें देह ।
रहते भले देह, विदेह॥
अणिमा विक्रिया न्यारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं अणिमा विक्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः।
मह से महत् कर लें देह ।
रहते भले देह, विदेह॥
महिमा विक्रिया न्यारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं महिमा विक्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः।
लघु से लघू कर लें देह ।
रहते भले देह, विदेह॥
लघिमा विक्रिया न्यारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं लघिमा विक्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः।
गुरु से गुरू कर लें देह ।
रहते ‘भले देह विदेह॥
गरिमा विक्रिया न्यारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं गरिमा विक्रिया रुद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
बैठे धरा अम्बर पार ।
जपते अनवरत णवकार॥
प्रापति विक्रिया धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं प्राप्ति विक्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
तैरें भूम, नीर विहार ।
जपते अनवरत णवकार॥
धन ! प्राकाम्य रिध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं प्राकाम्य विक्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
आज्ञा मानता संसार ।
जपते अनवरत णवकार॥
धन ! ईशत्व रिध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं ईशत्य विक्रिया ऋद्धिधारी सर्वत्राषिभ्यो नमः ।
वश में नाग, नर, सुर-चार ।
जपते अनवरत णवकार॥
रिध वशि-विक्रिया धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं वशित्व विक्रिया ऋद्धिधारी सर्वत्राषिभ्यो नमः ।
सहज प्रवेश वृक्ष-पहाड़ ।
जपते अनवरत णवकार॥
अप्-प्रति घात रिध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं अप्रतिघात विक्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
लेते आप सब को देख ।
देते दिखाई कब, लेख॥
अन्तर्धान रिध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं अंतर्धान विक्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
मन चाहा बना लें रूप ।
लखते अनवरत चिद्रूप॥
सिध-रिध कामरूपा ‘री ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं कामरूपित्व विक्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः।
हिंसा हेत रञ्च न सन्ध ।
सहजो गमन नभ निष्पन्द॥
चारण क्रिया नभ धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं नभस्तल गामित्वचारण क्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः।
हिंसा हेत रञ्च न सन्ध ।
सहजो गमन जल निष्पन्द॥
चारण क्रिया जल धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं जल चारण क्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
हिंसा हेत रञ्च न सन्ध ।
करते गमन अविचल जंघ॥
चारण क्रिया जंघा ‘री ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं जंघा चारण क्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
हिंसा हेत रञ्च न सन्ध ।
फल पुष्परु गमन निष्पन्द॥
धन गुल-पत्र-फल चारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं फल पुष्प पत्र चारण क्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
हिंसा हेत रञ्च न सन्ध ।
सहजो गमन घन निष्पन्द॥
चारण क्रिया घन धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं मेघ चारण क्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
हिंसा हेत रञ्च न सन्ध ।
सहजो गमन मकड़ी-तन्त॥
चारण तन्तु रिध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं तन्तु चारण क्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
हिंसा हेत रञ्च न सन्ध ।
धूमानल गमन निष्पन्द॥
चारण अगनी धूमा ‘री ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं अग्निधूम चारण क्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
हिंसा हेतु रञ्च न सन्ध ।
सहजो गमन रवि रिख चन्द॥
चारण ज्योति रिध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं ज्योतिश्चारण क्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
हिंसा हेत रञ्च न सन्ध ।
मारुत गमन धन ! निष्पन्द॥
चारण मरुत् रिध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं मरुच्चारण क्रिया ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
घट में जब तलक है श्वास ।
क्रमश: बढ़ा एक उपास॥
धन ! धन ! उग्र तप धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं उग्र तप ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
जब-तब साधना उपवास ।
देह प्रदीप्त शशि उपहास॥
धन ! धन ! दीप्त तप धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्री दीप्त तपः ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
भोजन कम नहीं, पर्याप्त ।
कब नीहार आप समाप्त॥
धन ! धन ! तप्त तप धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्री तप्त तप सद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
केवल ज्ञान छोड़ समस्त ।
रिध सिध तप महत्त्व विशिष्ट॥
धन ! धन ! महातप धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं महातप ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
द्वादश तप तपें दिन-रात ।
साधें योग मूल-तराद॥
धन ! धन ! घोरतप धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्री घोरतप ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
सार्थक नाम ‘गिर’ निश्वास ।
छवि-रवि, दें सुखा जल-राश॥
ना-मनु-रूप तप धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं घोर पराक्रम तप ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
अक्षर ब्रह्म आप प्रभाव ।
ईत्यादिक लगें यम गाँव॥
ब्रह्मा-घोर तप धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं अघोर ब्रह्मचारित्व तप ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
लागा बस मुहूरत एक ।
चिन्तन सकल-श्रुत, अभिलेख॥
धन ! बल-रिद्ध मन धारी।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं मनोबल ऋद्धिधारी सर्वत्राषिभ्यो नमः ।
बार अनेक श्रुत संपाठ ।
माथे-शल न खेद, विषाद॥
धन ! रिध वचन बल धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं वचन बल ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
पशु लख शिल खुजावत खाज ।
चिर-गिर खड़े, मोख-जहाज॥
धन ! रिध-काय बल धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं काय बल ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
‘बल’ आता-पनादिक ‘योग’ ।
पद रज-पर्श, अपहर-रोग॥
औषध रिध अमर्शा ‘री ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं आमर्शौषधि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
‘बल’ आता-पनादिक ‘योग’ ।
पर्श कफाद, अपहर रोग॥
औषध खेल्ल रिध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं खेल्लौषधि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
‘बल’ आता-पनादिक ‘योग’ ।
पर्श-पसेव अपहर रोग॥
औषध जल्ल रिध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं जल्लौषधि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
‘बल’ आता-पनादिक ‘योग’।
तन-मल पर्श अपहर रोग॥
धन ! रिध मलौषध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं मल्लौषधि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
‘बल’ आता-पनादिक ‘योग’ ।
‘विष्ठा-पर्श, अपहर रोग॥
औषध-विष्ठ रिध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं विप्रौषधि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः।
‘बल’ आता-पनादिक ‘योग’ ।
सर्वस्-पर्श, अपहर रोग॥
औषध सर्व रिध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं सर्वौषधि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः।
‘बल आता-पनादिक ‘योग’ ।
निर्विष श्रवण-वच संजोग॥
रिध निर्-विषौ-षध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं मुख निर्-विषौ-षधि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः।
‘बल’ आता-पनादिक ‘योग’ ।
निर्विष पात-दृग संजोग॥
दृग् निर्-विषौ-षध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं दृष्टि निर्-विषौ-षधि ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
मुँह से निकलते ही बात ।
प्रतिफल आ लगे झट हाथ॥
रस रिध आशि-विष धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं आशीर्विष रस ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
ले, जे भाव दृष्टी पात ।
प्रतिफल आ लगे झट हाथ॥
रस रिध दृष्टि विष धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं दृष्टिविष रस ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः
भो ! जन-पाण, भोजन पान ।
‘लागे हाथ’ दुग्ध समान॥
क्षीरस्-स्रावि रिध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं क्षीरस्रावी रस ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
भो ! जन पाण, भोजन पान ।
‘लागे हाथ’ मधुः समान॥
रस मधु-स्रावि रिध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं मधुस्रावी रस ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
भो ! जन पाण, भोजन पान ।
‘लागे हाथ’ अमृत समान॥
अमृरस् स्रावि रिध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं अमृतस्रावी रस ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः
भो ! जन पाण, भोजन-पान ।
‘लागे हाथ’ घिरत समान॥
सर्पिस् स्रावि रिध धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं सर्पिस्रावी रस ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः
घर जिस महर्षिन् आहार ।
जीमे सैन्य चक्रि अपार॥
अक्षत महानस धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं अक्षीण महानस ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः ।
कुटि जिस, थमें ‘पाणी पात्र’ ।
बैठें ‘सहज’ प्राणी मात्र॥
अक्षत महालय धारी ।
करुणा, क्षमा भण्डारी॥
ॐ ह्रीं अक्षीण महालय ऋद्धिधारी सर्वऋषिभ्यो नमः
जाप्य-मंत्र
‘ॐ ह्र: श्री ऋद्धिधारी
सर्वऋषिभ्यो: नमो नमः’
जयमाला
दोहा==
देह नगन दे देशना,
जग विरागता सार ।
जे धरती के देवता,
वन्दन बारम्बार ।।
सद्गुरु अपने जैसे एक
नरक दुख डर जो’वन चाले,
जगा अन्तर्मन हंस विवेक ।
सद्गुरु अपने जैसे एक
आन तरु तल आसन माड़ा,
देख बिजुरी नभ काले मेघ ।।
सद्गुरु अपने जैसे एक
दोपहर गीषम चढ़ पर्वत,
सूर सन्मुख ठाड़े अनिमेष ।
सद्गुरु अपने जैसे एक
तुषारी ठण्ड निश गुजारी,
ओढ़ धृति कम्बल चतुपथ बैठ ।
सद्गुरु अपने जैसे एक
दोहा-
दुनिया स्वारथ साधती,
इक साँचे गुरुदेव ।
करने मिले, न छोड़िये,
पल भी गुरु की सेव ।।
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।५।
।=दोहा=
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
बनी रहे यूँ ही कृपा,
सिर ‘सहजो’ निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
==आरती==
जय-जयकारा, जय-जयकारा ।
लिये स्वर्ण दीपक घृत वाला ।।
करूँ आरती जय गुरुदेवा ।
दुख निवारती श्री गुरु सेवा ।।
पहली आरति ग्रीष्म दुपारी ।
सूर्य आग बरसाता भारी ।।
चढ़ पहाड़ शिल तप्त निहारा ।
जय-जयकारा, जय-जयकारा ।
लिये स्वर्ण दीपक घृत वाला ।।
करूँ आरती जय गुरुदेवा ।
दुख निवारती श्री गुरु सेवा ।।
दूजी आरति वरषा वासा ।
बिजली देख मेघ काला सा ।।
वृक्ष तले आ आसन माड़ा ।
जय-जयकारा, जय-जयकारा ।
लिये स्वर्ण दीपक घृत वाला ।।
करूँ आरती जय गुरुदेवा ।
दुख निवारती श्री गुरु सेवा ।।
तीजी, आरति ठण्ड करारी ।
सायं साँय कर मारुत चाली ।।
लुभा रहा तब जिन्हें चुराहा ।
जय-जयकारा, जय-जयकारा ।
लिये स्वर्ण दीपक घृत वाला ।।
करूँ आरती जय गुरुदेवा ।
दुख निवारती श्री गुरु सेवा ।।
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