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RakshaVandhan

6. रक्षाबंधन विधान 501 to 600

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

रक्षाबंधन विधान

*पूजन *
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।
बार बार करता आह्वानन ।
सविनय मैं करता संस्थापन ।।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार सन्निधि-करण ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।स्थापना।।

आग हो चली पानी पानी ।
भाग हमारे आनी जानी ।।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार धारा नयन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।जलं।।

द्वार चन्दना खड़े विधाता ।
मेरा वन क्रन्दन से नाता ।।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार धार चन्दन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।चन्दनं।।

शिला टूक अक्षत बजरंगी ।
लहरे जीवन मेरे तंगी ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार धाँ शालि-कण ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।अक्षतं।।

मेंढ़क सुमन पाँत में आया ।
हाय ! न अब तक मैं ढ़क पाया ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार पुष्प नन्दन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।पुष्पं।।

पट खुल पड़े पांव सति लागा ।
सोया मेरा भाग न जागा ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार दिव्य व्यंजन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।नैवेद्यं।।

ग्वाला कुन्द कुन्द बन चाला ।
छाया मन मेरे अंधियारा ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार दीपक रतन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।दीपं।।

नाग बना अध-लोक भूप है ।
घर मेरे दिन भर न धूप है ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार दश गंध अन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।धूपं।।

श्रीफल ने सुन गिरी गिरा ली ।
झोली मेरी अब तक खाली ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार फल नन्द वन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।फलं।।

जल गंधाक्षत पुष्प अनूठे ।
दीपक चरु फल सुरभी फूटे ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार द्रव्य अनगण ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।अर्घ्यं।।

विधान प्रारंभ

षष्ठम वलय पूजन विधान

मन के सच्चे ।
बात न कच्चे ।
जनमे बच्चे, वृत न्यारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५०१।।
ॐ ह्रीं श्री पारासर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

जैसे गन्ना ।
पैसे धन ना ।
वैसे धन्ना सिठ यारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५०२।।
ॐ ह्रीं श्री भुवनकीर्ति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

कहाँ लंगोटी ।
भागे रोटी ।
सोच न छोटी, किरदारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५०३।।
ॐ ह्रीं श्री मणि भद्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

दृग जल ले के ।
घुटने टेके ।
लट पट फेंके, तज भारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५०४।।
ॐ ह्रीं श्री मघवान मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।

जाग कुशलता ।
राग फिसलता ।
भाग सफलता, इस बारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५०५।।
ॐ ह्रीं श्री सुकौशल मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

वनिता छोड़ी ।
सरिता जोड़ी ।
कविता कोरी, पढ़ डाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५०६।।
ॐ ह्रीं श्री विद्युच्चर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

पात न तोड़ें ।
साथ न छोड़ें ।
गाँठ न जोड़ें, मन मारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५०७।।
ॐ ह्रीं श्री दण्डक मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

ध्यान लगाते ।
मान घटाते ।
शान बढ़ाते, श्रुत धारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५०८।।
ॐ ह्रीं श्री चाणक मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

नख दर्पण है ।
सुख अर्पण है ।
मुख दर्शन है, दृग न्यारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५०९।।
ॐ ह्रीं श्री निःषम्भु मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सूरज चंदा ।
पूजत इन्द्रा ।
द्यु-पत नंदा, दृग चारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५१०।।
ॐ ह्रीं श्री देव गुरु मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

कब आँसे हैं ।
कछुआ से हैं ।
शश भासे हैं, मुख प्यारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५११।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्रगुप्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

पुंज प्रभा के ।
पंच सभा के ।
दया क्षमा के भण्डारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५१२।।
ॐ ह्रीं श्री विपुल कान्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

शील साधना ।
ढ़ील ढ़ाल ना ।
झील डालना उपकारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५१३।।
ॐ ह्रीं श्री शुचि दत्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

लोभ भुलाया ।
लाभ न भाया ।
झोभ दिखाया यम द्वारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५१४।।
ॐ ह्रीं श्री शुद्धाभ देव मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सुखिया करते ।
दुखिया वरते ।
अंखियाँ भरते, लख हारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५१५।।
ॐ ह्रीं श्री शुभंकर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

दया अर्चना ।
क्षमा दुर्जना ।
जमा कर्ज ना, गुणमाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५१६।।
ॐ ह्रीं श्री धर्म सिंह मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

रिद्धी-सिद्धी ।
हाथ विशुद्धि ।
बाँटें बुद्धि, उजियाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५१७।।
ॐ ह्रीं श्री सन्मति कीर्ति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

परिणत धौरी ।
जग चित चोरी ।
प्रण शिव गौरी श्रृंगारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५१८।।
ॐ ह्रीं श्री स्वयंवर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

पंक हेम हैं ।
भक्त नेम हैं ।
कुशल क्षेम हैं, पतयारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५१९।।
ॐ ह्रीं श्री हेमरथ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सहजा नंदी ।
स्वर्ण सुगंधी ।
हृदय न ग्रन्थी, दृग धारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५२०।।
ॐ ह्रीं श्री नाभिनंदन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

किस को शालें ।
ढ़िग से चालें ।
मन से पालें, व्रत बारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५२१।।
ॐ ह्रीं श्री सुषेण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

आसन मांडा ।
सावन जाड़ा ।
पाँवन ठाड़ा रजवाड़ा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५२२।।
ॐ ह्रीं श्री सुरेन्द्र दत्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

पद्मा चरणा ।
पद्मा नयना ।
पद्मा वदना, गिरि भाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५२३।।
ॐ ह्रीं श्री पद्योत्तर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अपराजित हैं ।
सरला चित है ।
सफला रित हैं, ध्रुव तारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५२४।।
ॐ ह्रीं श्री अपराजित मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

जन मन वांचे ।
कब प्रण कांचे ।
सार्थक साँचे, बस ढ़ाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५२५।।
ॐ ह्रीं श्री स्वर्ण नाभ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

बुद्धि देते ।
शुद्धि लेते ।
जल पी लेते मिठ खारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५२६।।
ॐ ह्रीं श्री यति वृषभ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

रूकन भोगा ।
भूषन योगा ।
टूकन होगा भव कारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५२७।।
ॐ ह्रीं श्री अनंत मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

शकल मान ले ।
सकल ज्ञान ले ।
शुकल ध्यान ले तलवारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५२८।।
ॐ ह्रीं श्री नलिन प्रभ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मग आचरणा ।
जग आभरणा ।
रग रग करुणा संचारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५२९।।
ॐ ह्रीं श्री सु-नन्दन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सूर्य जगाते ।
चाँद सुलाते ।
कब अलसाते दिन यारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५३०।।
ॐ ह्रीं श्री सूर्य प्रभ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

गर्दन शंखा ।
वर्हिन पंखा ।
अर्हन नन्दा कत्तारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५३१।।
ॐ ह्रीं श्री अर्हन्-नन्दन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

वन दिखते हैं ।
पुन लिखते हैं ।
फन रखते हैं कुम्हारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५३२।।
ॐ ह्रीं श्री कृत वर्मा मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

जड़धि विराधा ।
पल दिव साधा ।
कल शिव राधा भर्तारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५३३।।
ॐ ह्रीं श्री इन्द्र कीर्ति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

शरम गजब की ।
भरम न अबकी ।
जनम न अबकी भू भारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५३४।।
ॐ ह्रीं श्री पूज्यपाद मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मन वशभूता ।
ध्यान अनूठा ।
झरना फूटा मिठ धारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५३५।।
ॐ ह्रीं श्री दमवर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सन्मत सुलटा ।
दुर्मत कुलटा ।
मन्मथ उलटा, मथ डाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५३६।।
ॐ ह्रीं श्री सुदृष्टि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

उपास भाये ।
प्रवास भाये ।
दुमास भाये कच झाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५३७।।
ॐ ह्रीं श्री दृढ़ व्रत मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

हया शर्म का ।
जया कर्म का ।
दया धर्म का पिरचारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५३८।।
ॐ ह्रीं श्री जटा नन्दि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

चन्दन फीका ।
गुल रजनी का ।
चाँद न दीखा मुख आला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५३९।।
ॐ ह्रीं श्री सुमुख मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

ताज न छीना ।
राज न लीना ।
काज न कीना अविचारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५४०।।
ॐ ह्रीं श्री महीजय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

गर्जित मेघा ।
सुरसुत नेहा ।
वर्धित मेधा गुणकारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५४१।।
ॐ ह्रीं श्री महा द्युति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

पुराण वांचे ।
कान न कांचे ।
नचे न नाचे करताला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५४२।।
ॐ ह्रीं श्री प्रकृति द्युति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

रुखसत माया ।
करतब भाया ।
मन न समाया अधिकारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५४३।।
ॐ ह्रीं श्री जयत्न कुमार मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

चोरी जारी ।
मायाचारी ।
परिणत कारी ललकारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५४४।।
ॐ ह्रीं श्री अतिरथ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

धरें न ज्यादा ।
करें न वादा ।
मन लख बाधा कब हारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५४५।।
ॐ ह्रीं श्री शत धनु मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मदन उठाया ।
मद न बिठाया ।
मनस् झराया निस्सारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५४६।।
ॐ ह्रीं श्री शान्तनु मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

वहाँ भुक्ति की ।
यहाँ शक्ति की ।
कहाँ मुक्ति की दरकारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५४७।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र वर्मा मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अनंग हनवा ।
निसंग घनवाँ ।
तरंग मनवा, बैठाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५४८।।
ॐ ह्रीं श्री अकल्पित मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

आसन माड़े ।
राहन जाड़े ।
पाँत न ठाड़े लाचारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५४९।।
ॐ ह्रीं श्री प्रकल्पित मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मना न करते ।
ना हाँ करते ।
बना न करते कर्तारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५५०।।
ॐ ह्रीं श्री हिरण्य नाभ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

भेक न कूपा ।
नेक, अनूपा ।
लेख न रुपा विकराला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५५१।।
ॐ ह्रीं श्री अनुपम मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

निध मालिक मैं ।
बुध क्षायिक मैं ।
सुध ज्ञायक मैं, तिहु काला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५५२।।
ॐ ह्रीं श्री विज्ञान सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

तज स्रज पगड़ी ।
गल भल पकड़ी ।
उलझत मकड़ी, बुन जाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५५३।।
ॐ ह्रीं श्री परमार्थ सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

याद न टोका ।
उपरत धोखा ।
चरित अनोखा, अविकारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५५४।।
ॐ ह्रीं श्री चारित्र सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

कह ना फीका ।
सहना सीखा ।
बहना सीखा विधि धारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५५५।।
ॐ ह्रीं श्री प्रशम सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

महल अटरिया ।
छोड़ी कुटिया ।
और न सुखिया, पुन गाढ़ा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५५६।।
ॐ ह्रीं श्री प्रसन्न सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

साख दूसरी ।
आंख तीसरी ।
धांक भीतरी झंकारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५५७।।
ॐ ह्रीं श्री आनंद सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अड़े कभी ना ।
जढ़े नगीना ।
चढ़े कभी ना सिर पारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५५८।।
ॐ ह्रीं श्री क्षमा सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

छाप नेकि के ।
आप लेखि के ।
पाप देखि के मन खारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५५९।।
ॐ ह्रीं श्री प्रमेय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

और प्रशंसा ।
गौरव हंसा ।
छोर अहिंसा विस्तारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५६०।।
ॐ ह्रीं श्री उत्कर्ष मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

चन्दन गंधा ।
मुखड़ा चन्दा ।
छव आनंदा प्रद यारा ! ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५६१।।
ॐ ह्रीं श्री शशिप्रभ सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

पीठ दिखाना ।
गोट बिठाना ।
पोट उठाना परिहारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५६२।।
ॐ ह्रीं श्री खण्डक सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

हँस खेते हैं ।
निश बैठे हैं ।
बस देते हैं, तन भाड़ा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५६३।।
ॐ ह्रीं श्री चित्रांगद मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

कान खड़े ना ।
मान जुड़े ना ।
आन चढ़े ना, चन झाड़ा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५६४।।
ॐ ह्रीं श्री सत्य सत्व मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

बात पचा लें ।
कर्म बचा लें ।
नाक बचा लें परिवारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५६५।।
ॐ ह्रीं श्री वृहद् बलि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सम श्रद्धाना ।
सम्यक् ज्ञाना ।
चरित प्रधाना, धन बाड़ा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५६६।।
ॐ ह्रीं श्री अमित सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

उतरे गहरे ।
छोड़े नखरे ।
गोरे चेहरे तिल काला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५६७।।
ॐ ह्रीं श्री पुण्याह मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

आश सदैवा ।
उदास रेवा ।
पास न देवा, सुख न्यारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा।।५६८।।
ॐ ह्रीं श्री शिव शर्मा मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

कमी न चुनते ।
कमी न सुनते ।
कभी न बनते उर छाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५६९।।
ॐ ह्रीं श्री पाणिक सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

यहाँ कमाते ।
वहाँ भुनाते ।
कहाँ लगाते अतिचारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५७०।।
ॐ ह्रीं श्री कर्म वीर जय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

शोर न, ज्ञाना ।
होड़ न ध्याना ।
और न छाना, जग सारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५७१।।
ॐ ह्रीं श्री प्रकाश दीप्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

साथ सुता ना ।
मात पिता ना ।
भ्रात पता ना, ना दारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५७२।।
ॐ ह्रीं श्री ऋषि नानक मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

वर्षा पुन की ।
चर्चा गुण की ।
अर्चा धुन की शुध धारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५७३।।
ॐ ह्रीं श्री पुण्य जिनेश्वर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

जगत अकेले ।
यति अलबेले ।
सुर ठाड़े ले चरु थाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५७४।।
ॐ ह्रीं श्री सुरार्चित मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

विद्यालय हैं ।
श्रृद्धामय हैं ।
शुद्धाशय हैं, कद न्यारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५७५।।
ॐ ह्रीं श्री विद्याधर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मोम न, दह जो ।
जोर न सहजो ।
और न वह जो रखवाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५७६।।
ॐ ह्रीं श्री अनुगामी मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

होश पूर हैं ।
रोश चूर हैं ।
कोश दूर हैं मद हाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५७७।।
ॐ ह्रीं श्री धर्म प्रतिपाल मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

छांवा छांवा ।
गांवा गांवा ।
पांवा पांवा विह्-हारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५७८।।
ॐ ह्रीं श्री महाश्रमण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

लू पल, पाला ।
मूसल धारा ।
ऊपर वाला रखवाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५७९।।
ॐ ह्रीं श्री पुण्याभ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अमरित झूठा ।
अमित अनूठा ।
अंतस् फूटा फब्बारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५८०।।
ॐ ह्रीं श्री अनुभव मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

उपमा जेता ।
गरिमा श्वेता ।
महिमा केता दिश्-चारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५८१।।
ॐ ह्रीं श्री अभिजित उपमा मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

पथ विश्वासा ।
सत् परिभाषा ।
नित अभिलाषा संथारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५८२।।
ॐ ह्रीं श्री सुमनस् मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

आँख चुराना ।
आँख लगाना ।
आँख दिखाना, ना पाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५८३।।
ॐ ह्रीं श्री दृष्टि पूत मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

साथ न अपने ।
रात न सपने ।
पाँत न दिपने वाचाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५८४।।
ॐ ह्रीं श्री प्रियं वद मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मन पग बाँधा ।
इक आराधा ।
निश्चिय साधा व्यवहारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५८५।।
ॐ ह्रीं श्री नय कीर्ति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

रह नौ समता ।
दह दो ममता ।
सह लो बनता, इक नारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५८६।।
ॐ ह्रीं श्री संप्रेरक मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

तट मिलने को ।
हट हटने को ।
घट भरने को, झुक चाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५८७।।
ॐ ह्रीं श्री उदार चित्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

साहस दूना ।
ढ़ाढस पूना ।
आलस शूना व्यापारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५८८।।
ॐ ह्रीं श्री नित्य चित्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

कुल संदीवा ।
गुरुकुल नींवा ।
प्रफुल सदीवा, चित् न्यारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५८९।।
ॐ ह्रीं श्री कुलन्धर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अन्दर खोते ।
अन्तर् धोते ।
मन्तर गोते नवकारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५९०।।
ॐ ह्रीं श्री प्रक्षालक मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

बात सरलता ।
साथ सजगता ।
हाथ सहजता इकतारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५९१।।
ॐ ह्रीं श्री ऋजुम्भर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सुधी विभूति ।
खुशी अनूठी ।
कभी न छूती कुप् ज्वाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५९२।।
ॐ ह्रीं श्री ऋजु प्रज्ञ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

दृग मीचें से ।
कुछ ऊंचे से ।
टिकें न जैसे बंजारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५९३।।
ॐ ह्रीं श्री अन्तर्प्रज्ञ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

खुद वैरागी ।
रति श्रुत लागी ।
परिणत जागी, अनगारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५९४।।
ॐ ह्रीं श्री बोधित बुद्ध मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मोह न काया ।
द्रोह न छाया ।
मोहन माया संहारा ।
जयकारा जय जयकारा ।।५९५।।
ॐ ह्रीं श्री ऋषि मन्यु मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

स्वर्ग बुलाता ।
मोक्ष रिझाता ।
और ना नाता संसारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५९६।।
ॐ ह्रीं श्री अपवर्ग मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सुमरत सेठा ।
चारित जेठा ।
चितवन जेता, सुर बाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५९७।।
ॐ ह्रीं श्री भूरि विक्रम मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

गिर’ बल श्वासा ।
लख भट दासा ।
निरखत नासा, दिन सारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५९८।।
ॐ ह्रीं श्री सहस्र बल मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

हठ कद काठी ।
ठेलें घाटी ।
पीछे हाथी, बल न्यारा ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।५९९।।
ॐ ह्रीं श्री शतबल मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मन कृत खोटा ।
छोड़ मुखौटा ।
खुद को छोटा, कह डाला ।
ऋषि-मुनि भगवत अवतारा ।
जय कारा, जय-जय कारा ।।६००।।
ॐ ह्रीं श्री ब्रह्म गुलाल मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

॥ जयमाला ॥

महिमा रक्षा बंधन पर्व अपार ।
जयतु सप्त शत, मुनि जय विष्णु कुमार ।।

नगरी उज्जैनी रजधानी ।
नृप श्री-वर्मा, श्रीमति रानी ।।
नमुचि, वृहस्पति, बलि प्रहलादा ।
मंत्रि मंत्रणा मद आमादा ।।
सप्त शतक मुनि सहित पधारे ।
सूर अकम्पन तारण हारे ।।
देख भक्त जन आना जाना ।
राजा ने भी जाना ठाना ।।
रोक खड़े मंत्री चारों के चार ।
लो पीछे, जब चलने नृप तैयार ।।१।।

राजा ने दी ढोक सभी को ।
ध्यान मग्न थे चूँकि सभी वो ।।
तभी न आशीर्वाद नवाजा ।
वृत्ति निरीह प्रभावित राजा ।।
झुके न, मंत्री अड़े खड़े हैं ।
बोले, ये सब मूर्ख निरे हैं ।।
पहले ही चित चारों खाने ।
लाज बचायें, मौन बहाने ।।
चलो यहाँ से चलें शीघ्र सरकार ।
समय कीमती यूँ ही व्यर्थ निछार ।।२।।

देख मार्ग में आते मुनि को ।
मंत्रि लगे छेड़ने उनको ।।
बैल पेट भरकर आ चाला ।
भैंस बराबर अक्षर काला ।।
उत्तर दे चाले तपाक से ।
मुनि श्रुत सागर सार्थ आप से ।।
वाद विवाद मंत्रि गण हारे ।
गूंजे दया धर्म जयकारे ।।
साँच कहावत नीचे ऊंट पहाड़ ।
नजर चुरा मंत्री गण नौ दो ग्यार ।।३।।

मुनि ने गुरु से सब कह डाला ।
गुरु ने कहा, सुनो यति बाला ।।
आती आपद के पग बांधो ।
प्रतिमा-योग वहीं जा साधो ।।
ठाना कहर संघ पर ढ़ाना ।
निकले मंत्री लिये कृपाणा ।।
देख सामने अपना वैरी ।
किया प्रहार, न कीनी देरी ।।
कीलित सभी, खड़े बुत से लाचार ।
नृप ने सुबह देश से दिये निकाल ।।४।।

पहुंच हस्तिनापुर अब मंत्री ।
खड़े पद्म नृप सेवक पंक्ति ।।
सिंहबल नाम शत्रु नृप पदमा ।
ला बलि खड़ा किया नृप कदमा ।।
खुश होकर नृप बोले बलि से ।
मांगो मनचाहा वर मुझ से ।।
बलि बोला, मम दृग पथ गामी ! ।
समझें उसे धरोहर स्वामी ! ।।
हुआ अकम्पन सूर ससंघ विहार ।
कभी हस्तिनापुर लख वर्षा काल ।।५।।

बलि ने नृप वर याद दिलाया ।
सात दिवस का राज मँगाया ।।
घेर संघ जूठन फिकवाई ।
गला रुधा, यूँ धुंआ कराई ।।
दूर न जब तक यह उपसर्गा ।
साध खड़े मुनि कायोत्सर्गा ।।
अवधि ज्ञान दृग दिया दिखाई ।
शिख ढ़िग विष्णु कुमार पठाई ।
सुन रिध विक्रियधर उपसर्ग निवार ।
हेत परीक्षा मुनि दी बाहु पसार ।।६।।

बलि से बोले विष्णु कुमारा ।
क्या बिगाड़ते साधु तुम्हारा ।।
क्यों ये पाप कार्य करते हो ।
क्या उससे भी ना डरते हो ।।
बलि बोला, ये राज हमारा ।
छोड़ इसे, यह करें विहारा ।।
ऋषि बोले, यह जा नहीं सकते ।
जगह एक बरसात ठहरते ।।
अच्छा सुनो करो इतना उपकार ।
भूमि तीन डग दे दो, बनो उदार ।।७।।

बलि बोला, ना ज्यादा दूँगा ।
बाद खबर इन सबकी लूँगा ।।
फिर क्या ? विष्णु कुंवर हुंकारे ।
बढ़ ज्योतिस्-मण्डल छू चाले ।।
डग पहले सुमेर गिर नाका ।
दूज मानुषोत्तर गिर राखा ।।
डग तीजा नभ में लहराये ।
नर, सुर, नाग धरा थर्राये ।।
निरत भक्ति सौधर्म साथ परिवार ।
मुनि सकोचि विक्रिय सुन धुन रिध-धार ।।८।।

क्षमा संघ से बलि ने मांगी ।
‘धर्म वृद्धि’ कह चले विरागी ।।
श्रावक मुनि पड़गा हरषाये ।
नवधा भक्ति अहार कराये ।।
रक्षा बंधन पर्व मनाया ।
जश मुनि विष्णु कुमार बढ़ाया ।।
हित प्रायश्चित ऋषि बढ़ चाले ।
कर्म सभी ध्यानानल जारे ।।
समय मात्र परिणाई शिवपुर नार ।
लागी सौख्य ‘निराकुल’ अविरल धार ।।९।।

दोहा
यह रक्षा बंधन कथा,
पढ़ें सुन जे जीव ।
उनके जीवन में जगे,
सम्यक् ज्ञान प्रदीव ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

*विसर्जन पाठ*
अंजन को पार किया ।
चंदन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।

धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।

अगनी ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।

बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।
( निम्न श्लोक पढ़कर
विसर्जन करना चाहिये )

*दोहा*
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
कृपा ‘निराकुल’ आपकी,
बनी रहे निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)

।।आरति।।

आरती विष्णु कुमार श्रमण ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
सिर्फ न सांझ सांझ निश दिन ।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।

आरती पहली धन समता ।
नीर बहता जोगी रमता ।।
मंत्रि बलि आद अत्त ढ़ाया ।
संघ न माथ शिकन लाया ।।
लेख कृत पूरब किया सहन ।

सिर्फ न सांझ सांझ निश दिन ।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।

आरती दूजी धन शक्ती ।
नाग, नर, देव करें भक्ती ।।
कौन इनसे ऊँचा जग में ।
नाप ली धरती दो डग में ।।
निकट गुरु खड़े हित प्रतिक्रमण ।

सिर्फ न सांझ सांझ निश दिन ।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।

आरती तीजी धन करुणा ।
हिरण सिंह बैठे सम शरणा ।।
क्षमा माँगी, दृग नम कीनी ।
ढोक बलि आदि मंत्रि दीनी ।।
‘निराकुल’ सुख आशीष वचन ।

सिर्फ न सांझ सांझ निश दिन ।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।

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