परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
रक्षाबंधन विधान
*पूजन *
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।
बार बार करता आह्वानन ।
सविनय मैं करता संस्थापन ।।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार सन्निधि-करण ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।स्थापना।।
आग हो चली पानी पानी ।
भाग हमारे आनी जानी ।।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार धारा नयन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।जलं।।
द्वार चन्दना खड़े विधाता ।
मेरा वन क्रन्दन से नाता ।।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार धार चन्दन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।चन्दनं।।
शिला टूक अक्षत बजरंगी ।
लहरे जीवन मेरे तंगी ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार धाँ शालि-कण ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।अक्षतं।।
मेंढ़क सुमन पाँत में आया ।
हाय ! न अब तक मैं ढ़क पाया ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार पुष्प नन्दन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।पुष्पं।।
पट खुल पड़े पांव सति लागा ।
सोया मेरा भाग न जागा ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार दिव्य व्यंजन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।नैवेद्यं।।
ग्वाला कुन्द कुन्द बन चाला ।
छाया मन मेरे अंधियारा ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार दीपक रतन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।दीपं।।
नाग बना अध-लोक भूप है ।
घर मेरे दिन भर न धूप है ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार दश गंध अन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।धूपं।।
श्रीफल ने सुन गिरी गिरा ली ।
झोली मेरी अब तक खाली ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार फल नन्द वन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।फलं।।
जल गंधाक्षत पुष्प अनूठे ।
दीपक चरु फल सुरभी फूटे ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार द्रव्य अनगण ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।अर्घ्यं।।
विधान प्रारंभ
पंचम वलय पूजन विधान
युद्ध कर्म ।
बुद्ध मर्म ।
सिद्ध धर्म कृत्काम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४०१।।
ॐ ह्रीं श्री युधिष्ठिर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अरुण कान्त ।
करुण शान्त ।
करण दान्त गुण धाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४०२।।
ॐ ह्रीं श्री गुण प्रभ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शान्ति प्रीत ।
भ्रान्ति जीत ।
कान्ति नीतिन ललाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४०३।।
ॐ ह्रीं श्री शान्ति प्रिय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प्रिय शशांक ।
मुख मृगांक ।
विजित सांख्य मत वाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४०४।।
ॐ ह्रीं श्री शशांक प्रिय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हंस तीर्थ ।
वंश कीर्त ।
अंश तीर्थकर स्वाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४०५।।
ॐ ह्रीं श्री कुल कीर्ति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पट उतार ।
लट उखाड़ ।
रट नुकार अविराम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४०६।।
ॐ ह्रीं श्री सुकीर्ति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धीर वीर ।
चीर चीर ।
पीर तीर विश्राम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४०७।।
ॐ ह्रीं श्री धृति यश मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विमल दर्श ।
अमल पर्श ।
अचल हर्ष अठ याम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४०८।।
ॐ ह्रीं श्री विमलासुत मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जित कटाक्ष ।
वाक् दाक्ष ।
आत्म साक्ष त्रिक् शाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४०९।।
ॐ ह्रीं श्री जय कुमार मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नैन गंग ।
नव उमंग ।
नभ पतंग भव शाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४१०।।
ॐ ह्रीं श्री गंग देव मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धरा शैन ।
निरा चैन ।
भरा नैन जुग राम ! ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४११।।
ॐ ह्रीं श्री राष्ट्र वर्धन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रूप वान ।
नूप वाण ।
स्तूप ज्ञान तिहु धाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४१२।।
ॐ ह्रीं श्री प्रद्युम्न मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मुख वसंत ।
सुख समन्त ।
दुख दरन्त यम धाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४१३।।
ॐ ह्रीं श्री वसन्त तिलक मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
खत्म क्रोध ।
प्राप्त बोध ।
आत्म शोध अविराम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४१४।।
ॐ ह्रीं श्री बुद्धि सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रसन वात ।
रतन साथ ।
लखन हाथ शिव स्वाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४१५।।
ॐ ह्रीं श्री कुबेर दत्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धीर बेल ।
चीर चेल ।
तीर केल गुणधाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४१६।।
ॐ ह्रीं श्री ब्रह्म नन्दि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दृष्टि भद्र ।
दृष्टि कद्र ।
दृष्टि छिद्र कब नाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४१७।।
ॐ ह्रीं श्री भद्र बाहु मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चूर मोह ।
दूर द्रोह ।
नूर कोह ? छवमान ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४१८।।
ॐ ह्रीं श्री यशो विजय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गुण गभीर ।
नयन नीर ।
शरण पीर निर्दाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४१९।।
ॐ ह्रीं श्री महोदधि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ढ़ेर ढ़ील ।
मेर शील ।
फेर लील वन गाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४२०।।
ॐ ह्रीं श्री मेरु कीर्ति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
खास दूज ।
वास पूज ।
पार्श्व गूंज घन ! श्याम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४२१।।
ॐ ह्रीं श्री वासु पूज्य मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भीति मृत्य ।
नीति सत्य ।
प्रीति वत्स गौ नाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४२२।।
ॐ ह्रीं श्री महेन्द्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गुणः केत ।
मन: श्वेत ।
बना देत सब काम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४२३।।
ॐ ह्रीं श्री विक्रांत मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चाम थाम ।
शाम शाम ।
आत्म राम रट नाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४२४।।
ॐ ह्रीं श्री रत्न मार्ग मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शरम नैन ।
नरम बैन ।
धरम जैन नभ गाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४२५।।
ॐ ह्रीं श्री रत्न चित्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ज्योति भक्ति ।
मोति सूक्ति ।
पोत मुक्ति, दिव धाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४२६।।
ॐ ह्रीं श्री रवि नन्दि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
राहु मित्र ।
नाहु शस्त्र ।
बाहु चित्त अरि नाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४२७।।
ॐ ह्रीं श्री राहु मित्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हा ! विराम ।
जाप राम ।
आप काम से काम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४२८।।
ॐ ह्रीं श्री राहु भद्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दरद मन्द ।
क्षमा वन्त ।
गुण अनंत आसाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४२९।।
ॐ ह्रीं श्री अनन्त कीर्ति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चिदानंद ।
विदा बन्ध ।
सत ! अनिन्द अभिराम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४३०।।
ॐ ह्रीं श्री वसु नन्दि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नगन अक्ष ।
नगण पक्ष ।
न गिन वृक्ष दृग आम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४३१।।
ॐ ह्रीं श्री प्रीति भद्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विनश भुक्ति ।
नस विरक्ति ।
जश विमुक्ति सुत-भाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४३२।।
ॐ ह्रीं श्री विमलेश्वर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जश विशाल ।
बस कृपाल ।
निश निहाल जप राम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४३३।।
ॐ ह्रीं श्री विशाल कीर्ति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ग्रन्थ नैन ।
मन्त्र वैन ।
पन्थ जैन दृग धाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४३४।।
ॐ ह्रीं श्री विश्वलोचन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हन अनंग ।
मण सुरंग ।
अन तरंग परिणाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४३५।।
ॐ ह्रीं श्री विष्णुनन्दि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बात राज ।
माथ ताज ।
हाथ आज, कल काम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४३६।।
ॐ ह्रीं श्री वीरांगद मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रत स्वभाव ।
जित विभाव ।
गत प्रभाव तिय चाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४३७।।
ॐ ह्रीं श्री निष्कंप मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बुध अनूठ ।
निध अटूट ।
सुध विभूति भव नाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४३८।।
ॐ ह्रीं श्री श्री निलय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विनय वान ।
बिन गुमान ।
विनत आन दिव धाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४३९।।
ॐ ह्रीं श्री श्री विनय प्रिय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नित्य झूम ।
चित्त धूम ।
मर्त्य भूम गौकाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४४०।।
ॐ ह्रीं श्री श्री कान्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पाठ धर्म ।
ज्ञात मर्म ।
आठ कर्म चक जाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४४१।।
ॐ ह्रीं श्री संवेग भूषण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मोल बात ।
खोल हाथ ।
बोल भाँत मिठ आम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४४२।।
ॐ ह्रीं श्री आक्रोश विजय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
वृत्त सींह ।
व्रत नृसींह ।
चित् निरीहपन स्वाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४४३।।
ॐ ह्रीं श्री पात्र केशरी मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
महित नाग ।
सहित जाग ।
रहित राग निष्काम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४४४।।
ॐ ह्रीं श्री नाग कुमार मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
क्षोभ शून ।
लोभ न्यून ।
शोभ पून शश नाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४४५।।
ॐ ह्रीं श्री निर्मल मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पिछि मयूर ।
दुरित दूर ।
विरद शूर गत घाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४४६।।
ॐ ह्रीं श्री दत्त-त्रय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आप कीर्त ।
छाप तीर्थ ।
पाप भीत, पुन धाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४४७।।
ॐ ह्रीं श्री स्वत: कीर्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रिद्ध सिद्ध ।
श्रुत समृद्ध ।
नित विशुद्ध परिणाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४४८।।
ॐ ह्रीं श्री अनेकान्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हा ! गिरोह ।
ह्रास द्रोह ।
पाश मोह नाकाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४४९।।
ॐ ह्रीं श्री वीर भद्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जगत् मित्र ।
चित् पवित्र ।
विरत शत्रु सुत वाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४५०।।
ॐ ह्रीं श्री सर्वात्म भूत मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
माथ छाह ।
आद राह ।
बादशाह बेनाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४५१।।
ॐ ह्रीं श्री सर्व विजय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
श्रवण नैन ।
रमण वैन ।
अमन चैन ईनाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४५२।।
ॐ ह्रीं श्री सर्वोपशम मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मरण केल ।
जतन हेल ।
चरण भेल, बादाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४५३।।
ॐ ह्रीं श्री निशंक मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गंध फूल ।
कन्द मूल ।
मंत्र धूल बेकाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४५४।।
ॐ ह्रीं श्री नहुष मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सजग शाम ।
दृग मुकाम ।
सुरग धाम बढ़ ठाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४५५।।
ॐ ह्रीं श्री सौदास मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ध्यान श्वास ।
मान हास ।
थान आश आवाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४५६।।
ॐ ह्रीं श्री नागार्जुन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सजल धन्य ।
सबल नन्य ।
कमल भिन्न जल ग्राम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४५७।।
ॐ ह्रीं श्री नलिन ध्वज मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ध्येय अक्ष ।
भै अभक्ष्य ।
जेय अक्ष संग्राम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४५८।।
ॐ ह्रीं श्री संग्राम विजय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धन्य अक्ष ।
गुण्य रक्ष ।
पुण्य वृक्ष आराम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४५९।।
ॐ ह्रीं श्री धर्म भूषण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जया कर्म ।
हया शर्म ।
दया धर्म पैगाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४६०।।
ॐ ह्रीं श्री धर्म दन्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दौड़ न्यार ।
होड़ पार ।
छोड़ छाड़ धन धाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४६१।।
ॐ ह्रीं श्री धनंजय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
श्वास चैन ।
पार्श्व वैन ।
खास हैं, न अब आम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४६२।।
ॐ ह्रीं श्री दधि धवल मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भूम पाल ।
धूम काल ।
झूम बाल ऋत ठाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४६३।।
ॐ ह्रीं श्री अवनि पाल मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दृग प्रधान ।
सहज ज्ञान ।
व्रत महान गुण-ग्राम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४६४।।
ॐ ह्रीं श्री त्रैविध देव मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नुत सदैव ।
देव देव ।
निरत सेव जिन धाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४६५।।
ॐ ह्रीं श्री जिन पालित मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अमर केत ।
नजर श्वेत ।
फिकर खेद बिन शाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४६६।।
ॐ ह्रीं श्री अमर केतु मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुर सँवार ।
गुर चिनार ।
दर किनार मनकाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४६७।।
ॐ ह्रीं श्री सुर सेन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सरल बुद्ध ।
अमल शुद्ध ।
सजल युद्ध जित भाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४६८।।
ॐ ह्रीं श्री ऋजुमति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मत अकूट ।
विगत झूठ ।
निरत डूब पल शाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४६९।।
ॐ ह्रीं श्री मृदुमति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अमृत चन्द ।
अमित गंध ।
अमिट नन्द पुर नाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४७०।।
ॐ ह्रीं श्री अमृत चन्द्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मेघ घाम ।
सेठ आम ।
एक ग्राम वन ठाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४७१।।
ॐ ह्रीं श्री अरविन्द मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
महा सेन ।
अहा वैन ।
कहाँ नैन वद नाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४७२।।
ॐ ह्रीं श्री महासेन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ग्राम ग्राम ।
शाम शाम ।
पा मकाम आराम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४७३।।
ॐ ह्रीं श्री सिद्ध सेन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धार मौन ।
पार जोन ।
चार कौन चित काम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४७४।।
ॐ ह्रीं श्री अश्विनी मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प्रिया पार ।
जिया मार ।
किया द्वार यम काम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४७५।।
ॐ ह्रीं श्री केसरी सेन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
इक विनीत ।
टिक न भीत ।
पिक विजीत रित आम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४७६।।
ॐ ह्रीं श्री चारु सेन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भज न दाम ।
भजन शाम ।
चरण राम बलराम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४७७।।
ॐ ह्रीं श्री बलदत्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शून्य छाप ।
धन्य जाप ।
पुण्य पाप नीलाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४७८।।
ॐ ह्रीं श्री अरिष्ट नेमि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
छाँव छाँव ।
पाँव पाँव ।
गाँव गाँव निश ठाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४७९।।
ॐ ह्रीं श्री धर्म तीर्थ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धनी भाव ।
गुणी नाव ।
घनी छाँव जग घाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४८०।।
ॐ ह्रीं श्री मित्र वीर्य मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
होड़ छोड़ ।
दौड़ पोर ।
और और दृग चाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४८१।।
ॐ ह्रीं श्री सत्यवीर्य मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रहित हाँप ।
सुहित छाप ।
विदित पाप अंजाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४८२।।
ॐ ह्रीं श्री सर्व जनानंद मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
वैन छाँट ।
नैन घाट ।
शैन काठ पिरयाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४८३।।
ॐ ह्रीं श्री सर्व गुप्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बेर बेर ।
ठेल ठेल ।
खेल खेल, जित काम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४८४।।
ॐ ह्रीं श्री जितशत्रु मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नमन पद्म ।
चरण पद्म ।
वरण पद्म, प्रभ नाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४८५।।
ॐ ह्रीं श्री पद्म सुन्दर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भज समाध ।
तज उपाध ।
चरण आद, शरणाम् ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४८६।।
ॐ ह्रीं श्री पद्म नन्दि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मेर भाल ।
स्वैर टाल ।
लें सँभाल परिणाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४८७।।
ॐ ह्रीं श्री पद्मकीर्ति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पाठ शाम ।
काठ काम ।
आठ याम नुति ह्राम् ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४८८।।
ॐ ह्रीं श्री पद्मनाम मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
टेक राम ।
देख शाम ।
एक दाम निर्दाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४८९।।
ॐ ह्रीं श्री पद्मराज मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शाह हंस ।
छाह पंच ।
नाँह रंच मन श्याम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४९०।।
ॐ ह्रीं श्री पद्माकर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भरे दाम ।
निरे धाम ।
सरेआम जग नाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४९१।।
ॐ ह्रीं श्री पुण्य मित्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प्रभ अमन्द ।
बुझे चन्द्र ।
बजे इन्द्र सभ नाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४९२।।
ॐ ह्रीं श्री प्रभा चन्द्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
होश पूर ।
दोष चूर ।
कोस दूर रति चाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४९३।।
ॐ ह्रीं श्री प्रिय दर्शन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गत फरेब ।
श्रुत कलेव ।
रत सदैव निज काम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४९४।।
ॐ ह्रीं श्री बुद्धि कीर्ति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अंत जंग ।
ग्रंथ भंग ।
अंतरंग विश्राम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४९५।।
ॐ ह्रीं श्री बिन्दु सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
वहाँ ठाम ।
यहाँ राम ।
कहाँ काम शर काम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४९६।।
ॐ ह्रीं श्री बिन्दु सार मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दूर दाम ।
नूर धाम ।
दूर ताम अर झाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४९७।।
ॐ ह्रीं श्री कुणाल मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अधर बिम्ब ।
स्वावलम्ब ।
असर निम्ब नाकाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४९८।।
ॐ ह्रीं श्री बिम्ब सार मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
केत सौख ।
वेद कोख ।
हेत मोख आयाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।४९९।।
ॐ ह्रीं श्री वर रुचि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शरण भक्ति ।
चरण शक्ति ।
लगन मुक्ति उद्दाम ।
सन्त अनन्त प्रणाम ।।५००।।
ॐ ह्रीं श्री ब्रह्म रुचि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
॥ जयमाला ॥
महिमा रक्षा बंधन पर्व अपार ।
जयतु सप्त शत, मुनि जय विष्णु कुमार ।।
नगरी उज्जैनी रजधानी ।
नृप श्री-वर्मा, श्रीमति रानी ।।
नमुचि, वृहस्पति, बलि प्रहलादा ।
मंत्रि मंत्रणा मद आमादा ।।
सप्त शतक मुनि सहित पधारे ।
सूर अकम्पन तारण हारे ।।
देख भक्त जन आना जाना ।
राजा ने भी जाना ठाना ।।
रोक खड़े मंत्री चारों के चार ।
लो पीछे, जब चलने नृप तैयार ।।१।।
राजा ने दी ढोक सभी को ।
ध्यान मग्न थे चूँकि सभी वो ।।
तभी न आशीर्वाद नवाजा ।
वृत्ति निरीह प्रभावित राजा ।।
झुके न, मंत्री अड़े खड़े हैं ।
बोले, ये सब मूर्ख निरे हैं ।।
पहले ही चित चारों खाने ।
लाज बचायें, मौन बहाने ।।
चलो यहाँ से चलें शीघ्र सरकार ।
समय कीमती यूँ ही व्यर्थ निछार ।।२।।
देख मार्ग में आते मुनि को ।
मंत्रि लगे छेड़ने उनको ।।
बैल पेट भरकर आ चाला ।
भैंस बराबर अक्षर काला ।।
उत्तर दे चाले तपाक से ।
मुनि श्रुत सागर सार्थ आप से ।।
वाद विवाद मंत्रि गण हारे ।
गूंजे दया धर्म जयकारे ।।
साँच कहावत नीचे ऊंट पहाड़ ।
नजर चुरा मंत्री गण नौ दो ग्यार ।।३।।
मुनि ने गुरु से सब कह डाला ।
गुरु ने कहा, सुनो यति बाला ।।
आती आपद के पग बांधो ।
प्रतिमा-योग वहीं जा साधो ।।
ठाना कहर संघ पर ढ़ाना ।
निकले मंत्री लिये कृपाणा ।।
देख सामने अपना वैरी ।
किया प्रहार, न कीनी देरी ।।
कीलित सभी, खड़े बुत से लाचार ।
नृप ने सुबह देश से दिये निकाल ।।४।।
पहुंच हस्तिनापुर अब मंत्री ।
खड़े पद्म नृप सेवक पंक्ति ।।
सिंहबल नाम शत्रु नृप पदमा ।
ला बलि खड़ा किया नृप कदमा ।।
खुश होकर नृप बोले बलि से ।
मांगो मनचाहा वर मुझ से ।।
बलि बोला, मम दृग पथ गामी ! ।
समझें उसे धरोहर स्वामी ! ।।
हुआ अकम्पन सूर ससंघ विहार ।
कभी हस्तिनापुर लख वर्षा काल ।।५।।
बलि ने नृप वर याद दिलाया ।
सात दिवस का राज मँगाया ।।
घेर संघ जूठन फिकवाई ।
गला रुधा, यूँ धुंआ कराई ।।
दूर न जब तक यह उपसर्गा ।
साध खड़े मुनि कायोत्सर्गा ।।
अवधि ज्ञान दृग दिया दिखाई ।
शिख ढ़िग विष्णु कुमार पठाई ।
सुन रिध विक्रियधर उपसर्ग निवार ।
हेत परीक्षा मुनि दी बाहु पसार ।।६।।
बलि से बोले विष्णु कुमारा ।
क्या बिगाड़ते साधु तुम्हारा ।।
क्यों ये पाप कार्य करते हो ।
क्या उससे भी ना डरते हो ।।
बलि बोला, ये राज हमारा ।
छोड़ इसे, यह करें विहारा ।।
ऋषि बोले, यह जा नहीं सकते ।
जगह एक बरसात ठहरते ।।
अच्छा सुनो करो इतना उपकार ।
भूमि तीन डग दे दो, बनो उदार ।।७।।
बलि बोला, ना ज्यादा दूँगा ।
बाद खबर इन सबकी लूँगा ।।
फिर क्या ? विष्णु कुंवर हुंकारे ।
बढ़ ज्योतिस्-मण्डल छू चाले ।।
डग पहले सुमेर गिर नाका ।
दूज मानुषोत्तर गिर राखा ।।
डग तीजा नभ में लहराये ।
नर, सुर, नाग धरा थर्राये ।।
निरत भक्ति सौधर्म साथ परिवार ।
मुनि सकोचि विक्रिय सुन धुन रिध-धार ।।८।।
क्षमा संघ से बलि ने मांगी ।
‘धर्म वृद्धि’ कह चले विरागी ।।
श्रावक मुनि पड़गा हरषाये ।
नवधा भक्ति अहार कराये ।।
रक्षा बंधन पर्व मनाया ।
जश मुनि विष्णु कुमार बढ़ाया ।।
हित प्रायश्चित ऋषि बढ़ चाले ।
कर्म सभी ध्यानानल जारे ।।
समय मात्र परिणाई शिवपुर नार ।
लागी सौख्य ‘निराकुल’ अविरल धार ।।९।।
दोहा
यह रक्षा बंधन कथा,
पढ़ें सुन जे जीव ।
उनके जीवन में जगे,
सम्यक् ज्ञान प्रदीव ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
*विसर्जन पाठ*
अंजन को पार किया ।
चंदन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।
अगनी ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।
( निम्न श्लोक पढ़कर
विसर्जन करना चाहिये )
*दोहा*
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
कृपा ‘निराकुल’ आपकी,
बनी रहे निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
।।आरति।।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
सिर्फ न सांझ सांझ निश दिन ।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।
आरती पहली धन समता ।
नीर बहता जोगी रमता ।।
मंत्रि बलि आद अत्त ढ़ाया ।
संघ न माथ शिकन लाया ।।
लेख कृत पूरब किया सहन ।
सिर्फ न सांझ सांझ निश दिन ।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।
आरती दूजी धन शक्ती ।
नाग, नर, देव करें भक्ती ।।
कौन इनसे ऊँचा जग में ।
नाप ली धरती दो डग में ।।
निकट गुरु खड़े हित प्रतिक्रमण ।
सिर्फ न सांझ सांझ निश दिन ।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।
आरती तीजी धन करुणा ।
हिरण सिंह बैठे सम शरणा ।।
क्षमा माँगी, दृग नम कीनी ।
ढोक बलि आदि मंत्रि दीनी ।।
‘निराकुल’ सुख आशीष वचन ।
सिर्फ न सांझ सांझ निश दिन ।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।
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