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चौबीस तीर्थंकर विधान  ·  तीर्थक्षेत्र पूजन

बड़वाह के नेमि नाथ की पूजन

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

 

बड़वाह के नेमि नाथ की पूजन

धन ! बड़वाह बढ़-चढ़ पुण्य ।
प्रतिमा लगी हाथ अनन्य ।।
करुणा दया अवतारी ।
‘रे महिमा नेमि प्रभु न्यारी ।। स्थापना ।।

दर्शन मात्र इक आनन्द ।
खोले रखो या दृग बन्द ।।
भेंटूॅं क्यूँ न जल झारी ।
मनहर ! छव नयन-हारी ।।
करुणा दया अवतारी ।
‘रे महिमा नेमि प्रभु न्यारी ।। जलं ।।

छूते पाँव, बनते काम ।
मुहुरत शुभ शगुन निर्दाम ।।
भेंटूॅं क्यूँ न गंधा ‘री ।
किरपा सातिशय-कारी ।।
करुणा दया अवतारी ।
‘रे महिमा नेमि प्रभु न्यारी ।। चंदनं ।।

सिमरण देव गुरु जिनवाण ।
पुष्पित पुण्य तरु फलवान ।।
भेंटूॅं क्यूँ न कण शाली ।
समकित दृढ़ निमित्ता ‘री ।।
करुणा दया अवतारी ।
‘रे महिमा नेमि प्रभु न्यारी ।। अक्षतं ।।

राह अनेक, काँटे देख ।
गोदी लें उठा अभिलेख ।।
भेंटूॅं क्यूँ न फुल्वा ‘री ।
समता, क्षमा भण्डारी ।।
करुणा दया अवतारी ।
‘रे महिमा नेमि प्रभु न्यारी ।। पुष्पं।।

सिर्फ पुकारने की देर‌ ।
छाँटें कहाँ अपना गैर ।।
भेंटूॅं क्यूँ न चरु थाली ।
अद्‌भुत सोच वैशाली ।।
करुणा दया अवतारी ।
‘रे महिमा नेमि प्रभु न्यारी ।। नैवेद्यं ।।

पर-हित खड़े बाँह पसार ।
इस उस जिता, जाते हार ।।
भेंटूॅं क्यूँ न दीवाली ।
शरणा एक बलिहारी ।।
करुणा दया अवतारी ।
‘रे महिमा नेमि प्रभु न्यारी ।। दीपं ।।

पीड़ा और अश्रु तुम्हार ।
सबसे एक सा व्यवहार ।।
भेंटूॅं क्यूँ न धूपाली ‌।
तुम ‘छू’ सार्थ दृग काली ।।
करुणा दया अवतारी ।
‘रे महिमा नेमि प्रभु न्यारी ।। धूपं ।।

केवल थमाते न प्रदीव ।
ला रखते मुकाम करीब ।।
भेंटूॅं क्यूँ न फल डाली ।
दी तुम जिन्दगी म्हारी ।।
करुणा दया अवतारी ।
‘रे महिमा नेमि प्रभु न्यारी ।। फलं ‌।।

दृग जल, गंध, अक्षत, फूल ।
चरु घृत दीप, धूप, अमूल ।।
भेंटूॅं सफल द्रव सारी ।
पूजन पुण्य प्रद भारी ।।
करुणा दया अवतारी ।
‘रे महिमा नेमि प्रभु न्यारी ।। अर्घ्यं ।।

कल्याण अर्घ्य

माँ ने देखे रात सुपन ।
बरसे पनदश मास रतन ।
डफली ढोल बजाओ ‘रे ।
उत्सव गर्भ मनाओ ‘रे ।
अपना आग जगाओ ‘रे ।
आओ भक्ता आओ ‘रे ।। गर्भ ।।

मेर बाल तीर्थेश न्हवन ।
देर दर्श रच सहस नयन ।
झूमो नाचो गाओ ‘रे ।
उत्सव जन्म मनाओ ‘रे ।
अपना आग जगाओ ‘रे ।
आओ भक्ता आओ ‘रे ।। जन्म ।।

नम लोचन सुन पशु क्रन्दन ।
लुंचन, तोड़ ब्याह कंकण ।।
गीत विराग उठाओ ‘रे ।
उत्सव त्याग मनाओ ‘रे ।
अपना आग जगाओ ‘रे ।
आओ भक्ता आओ ‘रे ।। त्याग ।।

सूरज केवल ज्ञान किरण ।
धन्य सम-शरण सींह हिरण ‌।।
श्रृद्धा सुमन चढ़ाओ ‘रे ।
उत्सव ज्ञान मनाओ ‘रे ।
अपना आग जगाओ ‘रे ।
आओ भक्ता आओ ‘रे ।। ज्ञान ।।

ध्यान अगन सब कर्म दहन ।
लगा समय शिव धाम गमन ।।
नैनन जल भर लाओ ‘रे ।
उत्सव मोक्ष मनाओ ‘रे ।
अपना आग जगाओ ‘रे ।
आओ भक्ता आओ ‘रे ।। मोक्ष ।।

जयमाला

सुन पशुओं की चीख चढ़े गिरनार ।
राजुल पीछे, आगे नेमि कुमार ।।

देखे माँ ने सोलह सपने ।
दिव्य रत्न नभ लगे बरसने ।।
पूरी शौरी-पुरी सॅंजाई ।
नेमि जन्म की बजी बधाई ।।
देवी शचि कर दर्श भविक-अवतार ।
छ्व लख लख दृग सहस हर्ष अपार ।।१।।

दूज चाँद जैसे बढ़ चाले ।
गुरु बिन ग्रन्थ सभी पढ़ डाले ।।
भ्रात चचेरे बलभद, कृष्णा ।
बलशाली जिन सा दश दिश् ना ।।
अर्ध-चक्रि कृत पुण्य पूर्व भण्डार ।
सरिता ती सरके जीवन जल धार ।।२।।

एक बार जल क्रीड़ा ठानी ।
नेमि कुँवर सब चक्री-रानी ।।
देर बचा जब कपड़ा ओढ़ा ।
भींजा, देवर भाभी बोला ।।
जरा सुखा दो, धो यह वस्त्र हमार ।
कर चाली मजाक सतभामा नार ।।३।।

मेरे पति त्रिखण्ड अधिशासी ।
मुझे समझ क्या ? रक्खा दासी ।।
नाम सुदर्शन चक्र घुमाते ।
पाञ्च-जान्य इक शंख बजाते ।।
शेषनाग संरक्षित शयनागार ।
सिहं मद गले भर चले नेमि दहाड़ ।।४।।

पैर अँगूठे चक्र चलाया ।
फूॅंक नाक से शंख बजाया ।‌।
कीनी क्रीड़ांगन अहि-शैय्या ।
आये भागे कृष्ण कन्हैया ।।
मचा तीन लोकों में हाहाकार ।
मांग क्षमा सतभामा चाली हार ।।५।।

चिंता कृष्ण रात दिन शाले ।
नेमि कहीं न राज हथिया ले ।।
काम कूट-नीती से लीना ।
ब्याह नेम राजुल रच दीना ।।
उठ बरात, ठहरी जूनागढ़ द्वार ।
बॅंधे मूक पशु रत क्रंदन लाचार ।।६।।

नेमि कुॅंवर ने पूछा भाई ।
किस हित बॉंधे पशु यह लाई ।।
सेवक कहे टिका दृग धरणी ।
यह बरात का भोजन अपनी ।।
कुछ म्लेच्छ नृप करते मांसाहार ।
खड़े देव लौकांतिक बाँध कतार ।।७।।

रस्ता रोक नेम ठाड़ी है ।
राजुल सिसक रही भारी है ।।
पर न नेम जब माने पीछे ।
पीछे हुई किये दृग नीचे ।।
पट मुंचन, लट लुंचन, पद्म-विहार ।
माँ गणिनी राजुल कल, प्रभु भव पार ।।
सुन पशुओं की चीख चढ़े गिरनार ।
राजुल पीछे, आगे नेमि कुमार ।।८।।

।। जयमाला पूर्ण अर्घ्यं ।।

।। दोहा ।।
लगा पता, लागे पते,
तुम तो भगवन् नेम ।
कमल भिन्न जल रह सकूॅं,
चोखा बनूँ कि हेम ।।

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