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चौबीस तीर्थंकर विधान  ·  तीर्थक्षेत्र पूजन

ग्राम लोहारदा के नेमि नाथ भगवान् की पूजन विधान

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

 

लोहारदा के नेमि नाथ की पूजन विधान 

पूजन

ग्राम लोहारदा में,
नेमि जिनराज विराजे ।
माथ अपना झुका के,
खड़े राजे महाराजे ।।
मुझे रख लो चरणों में,
है यही मेरी विनती ।
आप अपने भक्तों में,
हमारी कर लो गिनती ।। स्थापना ।।

तुम्हीं भक्तों की शरणा ।
इक तुम्हीं तारण तरणा ।।
ग्राम लोहारदा के,
नेमि स्वामी हमारे ।
हमें भी पार उतारो,
सुना है, लाखों तारे ।।
क्षीर सागर जल लाकर,
पखारूॅं थारे चरणा ।
तुम्हीं भक्तों की शरणा ।
इक तुम्हीं तारण तरणा ।। जलं ।।

लाज रखते भक्तों की ।
आपकी दया अनोखी ।।
ग्राम लोहारदा के,
नेमि जिन देव देवा ।
फॅंसी मंझधार म्हारी,
लगा दो तट उस खेवा ।।
गन्ध झारी रत्नों की ।
भेंट, हित यात्रा मोखी ।।
लाज रखते भक्तों की ।
आपकी दया अनोखी ।। चन्दनं ।।

तुम्हीं भक्तन रखवाले ।
इक तुम्हीं शरण सहारे ।।
ग्राम, लोहारदा के,
नेमि सर्वज्ञ जिनेशा ।
बनाये रखना यूँ ही,
छत्र छाया हमेशा ।।
परोरे चावल न्यारे,
चढ़ाऊँ चरणन थारे ।।
तुम्हीं भक्तन रखवाले ।
इक तुम्हीं शरण सहारे ।। अक्षतान् ।।

कृपा बरस‌ाते हो तुम ।
बुलाते आते हो तुम ।।
ग्राम लोहारदा के,
नेमि भगवन् जगदीशा ।
रखी, आगे भी रखना,
कृपा यूँ ही निशि-दीशा ।।
मॅंगाये फुल्वा द्यौ द्रुम ।
चढ़ाऊँ हित दृग द्वौ नम ।।
कृपा बरस‌ाते हो तुम ।
बुलाते आते हो तुम ।। पुष्पं ।।

जिस किसी का ना कोई,
आप उसके, जग दोई ।।
ग्राम लोहारदा के,
नेमि चर्चित तीर्थंकर ।
छाँव में रखना पल-पल,
प्रभावी जन्तर-मन्तर ।।
भेंट चरु हाथ सॅंजोई ।
पा सकूँ निज निधि खोई ।।
जिस किसी का ना कोई,
आप उसके, जग दोई ।। नैवेद्यं ।।

अनूठी खुशी करीबा ।
तुम्हें इक धनिक-गरीबा ।।
ग्राम लोहारदा के,
नेमि निस्पृह हितैषी ।।
न कुछ भी कहना पड़ता,
दृष्टि रखते माँ जैसी ।।
जगा अनुराग अतीवा ।
जगाऊँ क्यूँ ना दीवा ।।
अनूठी खुशी करीबा ।
तुम्हें एक धनिक-गरीबा ।। दीपं ।।

पनीली आँखें रखते ।
आप हित और सिसकते ।।
ग्राम लोहारदा के,
नेमि प्रभु संकट-हारी ।
नाम सार्थक तारी ‘सत’,
आज है मेरी बारी ।।
भिंटाते द्रव्य महकते ।
नाम तुम जीवन लिखते ।।
पनीली आँखें रखते ।
आप हित और सिसकते ।। धूपं ।।

बड़ा कुछ रखते हिवड़ा ।
मेंट देते तुम दुखड़ा ।।
ग्राम लोहारदा के,
नेमि जिन हृदय विशाला ।
थमा दो दिया हाथ में,
घोर विषयन अंधियारा ।।
चढ़ाया पत्र सुनहरा ।
चढ़ाऊँ श्री फल विरला ।।
बड़ा कुछ रखते हिवड़ा ।
मेंट देते तुम दुखड़ा ।। फलं ।।

बना देते हो बिगड़ी ।
सॅंभाली तुमने पगड़ी ।।
ग्राम लोहारदा के,
नेम साँवलिया वरणी ।
एक जयकारा ले बस,
तिराते भव वैतरणी ।‌।
क्यूॅं न भेंटूॅं द्रव सगरी ।
तुम्हीं इक रथ शिव नगरी ।।
बना देते हो बिगड़ी ।
सॅंभाली तुमने पगड़ी ।। अर्घ्यं ।।

कल्याण अर्घ्य

माँ आँखें भींजी सपनों से ।
सौरीपुर डूबा रतनों से ।।
मैं भी भगवन् आप भरोसे ।
गिरा न देना तुम नजरों से ।।
दीप सँजाओ, गीत उठाओ ।
रूठा अपना भाग रिझाओ ।
नेमि गर्भ कल्याण मनाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ‘री आओ ।। गर्भ ।।

न्हवन हजार आठ कलशों से ।
इकटक दर्श सहस नयनों से ।
मैं भी भगवन् आप भरोसे ।
गिरा न देना तुम नजरों से ।।
ढोल बजाओ, नाचो गाओ ।
सोया अपना भाग जगाओ ।।
नेमि जन्म कल्याण मनाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ‘री आओ ।। जन्म ।।

अनुमोदन लौकांत सुरों से ।
कच लुञ्चन वन आन करों से ।।
मैं भी भगवन् आप भरोसे ।
गिरा न देना तुम नजरों से ।।
दृग भर लाओ, चरण ढुराओ ।
बिगड़ा अपना भाग बनाओ ।
नेमि त्याग कल्याण मनाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ‘री आओ ।। त्याग ।।

श्रवण दिव्य धुन छक कर्णों से ।
तर उर केवल रवि किरणों से ।।
मैं भी भगवन् आप भरोसे ।
गिरा न देना तुम नजरों से ।।
पुण्य बढ़ाओ, धन्य कहाओ ।
बिखरा अपना भाग जमाओ ।
नेमि ज्ञान कल्याण मनाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ‘री आओ ।। ज्ञान ।।

छूटा पिण्ड सभी कर्मों से ।
मण्डित अनगण गुण-धर्मों से ।।
मैं भी भगवन् आप भरोसे ।
गिरा न देना तुम नजरों से ।।
लगन लगाओ, सुमरण पाओ ।
पल्टा अपना भाग फिराओ ।
नेमि मोक्ष कल्याण मनाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ‘री आओ ।। मोक्ष ।।

विधान प्रारंभ

गर्भ छह महिने अगारे ।
रत्न बरसे ढ़ेर सारे ।।
नेमि पुण्य अनन्य वन्दन ।
कहॉं वन वन अन्य चन्दन ।।१।।

निरत सेवा दिव कुमारी ।
इक न छप्पन पुण्य भारी ।।
नेमि अधिपति सुरग वन्दन ।
निरत नर, सुर, उरग अर्चन ।।२।।

देखती माँ स्वप्न सोला ।
राज स्वप्नन पिता खोला ‌।।
नेमि नम्र विनीत वन्दन ।
वत्स गो-वत् प्रीत हर-जन ।।३।।

प्रथम सपने दिखा हाथी ।
कोई ना शत्रु अराती ।।
नेम भावन क्षेम वन्दन ।
बान-सोला हेम कंचन ।।४।।

दुतिय सपने वृषभ नन्दी ।
धर्म धर संपुष्ट कंधी ।।
नेमि पालन-हार वन्दन ।
लाज नैन ! उदार हृदयन ।।५।।

तृतिय सपने सींह दीखा ।
शक्ति धारक खुद सरीखा ।।
नेमि अतुलित वीर वन्दन ।
सजल दृग लख पीर अन धन ! ।।६।।

स्वर्ण घट लक्ष्मी नहाती ।
न्हवन क्षीर सुमेर थाती ।।
नेमि श्री-मन् दिव्य वन्दन ।
अब न बन्धन नव्य अरि-गण ।।७।।

स्वप्न पंचम युगल माला ।
गुण सुगंधी, जश विशाला ।।
नेमि सुरभित देह वन्दन ।
पूर्व देह विदेह क्षण क्षण ।।८।।

स्वप्न सार्थक छटा चन्दा ।
शान्ति कर्ता ! प्रदानन्दा ।।
नेमि दृग निकलंक वन्दन ।
वन-भवन इक रंक-पतिधन ।।९।।

स्वप्न सप्तम सूर्य बाला ।
दिव्य केवल ज्ञान धारा ।।
नेमि तेजो माथ वन्दन ।
कर विदा, वर साथ अनगण ।।१०।।

स्वप्न वस चल युगल मीना ।
भोग उत्तम सुख नवीना ।।
नेमि भोग नियोग वन्दन ।
दवा….खाना रोग प्रशमन ।।११।।

स्वप्न नव घट छव ललामी ।
धन विभव निधि सकल स्वामी ।।
नेमि निधि अक्षीण वन्दन ।
लीन स्वातम तीन संध्यन ।।१२।।

सरोवर सपने दहा ‘री ।
इक सहस वस लखन धारी ।।
नेमि संस्थाँ ‘साँच’ वन्दन ।
वज वृषष नाराच सॅंहनन ।।१३।।

सिन्धु इक-दश स्वप्न न्यारा ।
गभीरिक फिर गुण कतारा ‌।।
नेमि सोच सलोच वन्दन ।
और रवि, कवि पौंच धन-धन ।।१४।।

सिंहासन द्वा-दशम सपना ।
भोग लक्ष्मी तीन भुवना ।।
नेमि सर्व प्रधान वन्दन ।
वृत्ति सिंह, वृत श्वान निरसन ।।१५।।

स्वप्न तेरहवें विमाना ।
अवतरण दिव स्वर्ग थाना ।।
नेमि चर्चित स्वर्ग वन्दन ।
जन्म पल दुख नर्क सुख क्षण ।।१६।।

स्वप्न चौदह भवन नागी ‌।
तीन ज्ञान सगर्भ भागी ।।
नेमि सार्थक जगत वन्दन ।
अर न पीछे भगत सुरगण ।।१७।।

स्वप्न पनदश रतन राशि ।
ज्ञान दृक् चरि-ताधिशासी ।।
नेमि कृति आदर्श वन्दन ।
हर्ष हट पद पर्श भगवन् ।।१८।।

स्वप्न अर निर्धूम अगनी ।
कर्म दह, वर मुक्ति रमणी ।।
नेमि सौख्य अबाध वन्दन ।
पुण्य पूर्व प्रमाद अनबन ।।१९।।

गर्भ कार्तिक सुदि छट थी ।
स्वर्ग तज सुर छुई धरती ‌।‌‌।
नेमि रस इक परस वन्दन ।
सीढ़ि शिव सम-दरश अर्जन ।।२०।।

छठ सुदी श्रावण निराली ।
जन्म उत्सव सुखी भारी ।।
नेमि यदुकुल दीप वन्दन ।
मोति माई सीप खनखन ।।२१।।

शचि दरश क्या बाल पाई ।
इक भवातारी कहाई ।।
नेमि मंसा पूर्ण वन्दन ।
लेख नेक सुकून सु…मरण ।।२२।।

खाई भव-भव पाटता है ।
‘दृग सहस्र’ निहारता है ।।
नेमि रूप अनूप वन्दन ।
सिवा तुम तरु धूप विषयन ।।२३।।

न्हवन शिशु जल क्षीर ला के ।
मेरु दिव सौधर्म आ के ।।
नेमि मुण्डन मण्ड वन्दन ।
चीर पाँत अखण्ड सतियन ।।२४।।

नन्द नाटक नाम क्रीड़ा ।
मिटत शचपत त्रिगद पीड़ा ।।
नेमि भव जल घाट वन्दन ।
खुले वज्र कपाट चरणन ।।२५।।

बाद नमि लख बर्ष पाँचा ।
आयु वर्ष हजार वाँचा ।।
नेमि कीर्तिस्-तंभ वन्दन ।
निस्पृही अवलंब भवि-जन ।।२६।।

शिवा देवी आँख तारे ।
नृप समुद्र विजय दुलारे ।।
नेमि राज-कुमार वन्दन ।
कर्ण कुण्डल, हाथ कंकण ।।२७।।

वर्ण श्यामल मन लुभाई ।
हाथ पैंतिस तन उॅंचाई ।।
नेमि इक चित् चोर वन्दन ।
देह निर्मल, गौर लहु कण ।।२८।।

चैत्र सुदि छट चित्र रिक्षा ।
सिद्ध साक्षी स्वयं दीक्षा ।।
नेमि हंस प्रबुद्ध वन्दन ।
नीति नारद मुग्ध खण्डन ।।२९।।

छोड़ राजुल ”गिर’ चढ़े हैं ‌।
सूर सम्मुख थिर खड़े हैं ।।
नेमि गुण ब्रम घोर वन्दन ।
जोग सिमरन पोर धड़कन ।।३०।।

नखत चित्रा साध ध्याना ‌।
क्वाँर सुदि ‘इक’ सार्थ ज्ञाना ।।
नेमि पन्थ अहिंस वन्दन ।
कर्म अरि विध्वंस अरहन ।।३१।।

ज्ञान, दृक्, सुख, वीर्य वन्ता ।
चार गुण वैसे अनन्ता ।।
नेमि जीवन मुक्त वन्दन ।
हाथ भुक्त-विमुक्त स्यंदन ।।३२।।

जगत ज्ञाता ! जगत्-त्राता ।
जगत् दर्पन वत् दिखाता ।।
नेमि रतन चिराग वन्दन ।
जाग नर्तन, राग बन्धन ।।३३।।

राग, द्वेष निषेक नाहीं ।
दोष अठदश एक नाहीं ।।
नेमि बालक वैद्य वन्दन ।
ख्यात ऊरध रेत त्रिभुवन ।।३४।।

विरा‌जे तर तरु अशोका ।
झूम झुक दे साख ढोका ।।
नेम गुप्तिन ढाल वन्दन ।
घड़े नागिन माल सुमनन ।।३५।।

स्वर्ण सिंहासन सुमेरा ।
श्याम घन तुम भवि मयूरा ।।
नेमि भक्त निशंक वन्दन ।
झट जटायू पंख सुवरण ।।३६।।

चॅंवर गिर फिर उठ बताते ।
प्रणुति जिन गति ऊर्ध्व पाते ।।
नेमि उलझन तोड़ वन्दन ।
भज निरंजन चोर अंजन ।।३७।।

छत्र शशि झल्लर सितारे ।
कहें यह त्रिभुवन सहारे ।।
नेमि दोष विभंज वन्दन ।
सार्थ ‘गिर’ वज अंज-नन्दन‌ ।।३८।।

तुही तू ही कहे तुरही ।
और क्या जग स्वर्ण सुरभी ।।
नेमि नाथ सदैव वन्दन ।
अकारण दृग रेव सुर-धन ।।३९।।

गंध झरना, मन्द पवना ।
सृष्टि रमना, वृष्टि सुमना ।।
नेमि चक्र सुधर्म वन्दन ।
आप पाप-अधर्म खण्डन ।।४०।।

सप्त भव का आईना है
किसे वृत-भा भाई ना है ।।
नेमि प्रति माँ फूॅंक वन्दन‌ ।
निरत चन्दन टूक बन्धन ।।४१।।

सार्थ बो… लो भ्रात बहना ।
प्राप्त ही पर्याप्त कहना ।।
नेमि सा…हित सार्थ वन्दन ।
व्यूह भेदन पार्थ सिमरन ।।४२।।

सुलझते सुन आप वाणी ।
समझ भाषा आप प्राणी ।।
नेमि तीर्थ अजेय वन्दन ।
ध्येय निज पर ज्ञेय कण-कण ।।४३।।

जन्म दश अतिशय सुहाने ।
नुमत कारित ‘कृत’ पुराने ।।
नेमि जनमत सहज वन्दन ‌।
शेष अब न करज कर्मन ।।४४।।

‘साध’ अमरित धार फूटे ।
ज्ञान अतिशय दश अनूठे ।।
नेमि पद्म विहार वन्दन ।
धधकते अंगार जल कण ।।४५।।

भक्ति में सुर नाग डूबे ।
देव कृत चौदह अजूबे ।।
नेमि देवन देव वन्दन ।
भव भॅंवर नव-खेव पत्तन ।।४६।।

सप्तमी धन ! सुदि अषाढ़ा ।
पिंनाई वधु मुक्ति माला ।।
नेमि शिव कल्याण वन्दन ।
धूल पॉंव समान चन्दन ।।४७।।

केश नख मुकुटाग्नि धूली ।
तन उड़ा माफिक कपूरी ।।
नेमि अनुभव अकथ वन्दन ।
सुख ‘निराकुल’ सतत वर्षण ।।४८।।

 

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