सतवास के नेमिनाथ भगवान्
की पूजन विधान
*विनय-पाठ*
अरिहन्त, सिद्ध, आचारज ।
उवझाय, साधु चरणा-रज ।।
दैगम्बर-प्रतिमा अ-प्रतिम ।
जिन भवन किर-तिमा किर-तिम ।।
नभ-चुम्बी, शिखर-जिनालय ।
पच-रंगी, ध्वज, ग्रन्थालय ।।
समशरण, जिनागम-धारा ।
जिन-धर्म-अहिंसा न्यारा ।।
कल्याण-धरा-रत्नत्रय ।
जिन-सिद्ध-क्षेत्र-‘धर’-अतिशय ।।
बिन तेरे कौन हमारा ।
इक तेरा सिर्फ सहारा ।।
जिन-वृषभ, अजित, सम्भव-जिन ।
अभि-नन्दन सम्बल दुर्दिन ।।
जिन-सुमति, पदम-प्रभ पाँवन ।
जिन-सुपार्श्व प्रभ-शशि आनन ।।
जिन-पुष्प-दन्त ‘मत’ शीतल ।
जिन-श्रेय-पूज्य बल-निर्बल ।।
जिन-विमल, नन्त-जिन वन्दन ।
जिन-धर्म, शान्ति सुर-नन्दन ।।
जिन-अरह, मल्ल, मुनि-सुव्रत ।
नमि, नेम, पार्श्व, प्रद-सन्मत ।।
बिन तेरे कौन हमारा ।
इक तेरा सिर्फ सहारा ।।
गुरु गौतम अपूर्व गणधर ।
धर-सेन अंग-पूरब-धर ।।
युग आद-पुराण-प्रणेता ।
पाहुड अध्यात्म रचेता ।।
मत अनेकांत संपोषक ।
सिद्धान्त जैन उद्घोषक ।।
व्यवहार लोक व्याख्याता ।
अनुशासन शब्द विधाता ।।
जित-प्रवाद, ऊरध-रेता ।
पाहुड़-वैद्यिक, अध्येता ।।
कर्तार गणित जैनागम ।
कर्त्ता अगणित जैनागम ।।
बिन तेरे कौन हमारा ।
इक तेरा सिर्फ सहारा ।।
( पुष्पांजलिं क्षिपामी )
नेमि-नाथ भगवान् पूजन
करुणा दया निधान ।
शरणा तीन जहान ।
महिमा बड़ी महान ।
पुण्य-भूमि सतवास नगर के,
नेमि-नाथ भगवान् ।
परिकर वाली, मूर्ति निराली,
जिन मंदिर पाषाण ।।
गद-गद हृदय बुलाऊँ ।
ह्रदय-वेदि पधराऊँ ।
सन्-निकट विराजो आन ।
हम भक्तन मान-गुमान ।
पुण्य-भूमि सतवास नगर के,
नेमि-नाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं नेमि नाथ जिनेन्द्र
अत्र अवतर ! अवतर ! संवौषट् !
(इति आह्वाननम्)
अत्र तिष्ठ ! तिष्ठ ! ठ:! ठ: !
(इति स्थापनम्) !
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् !
(इति सन्निधिकरणम्)
( पुष्पांजलिं क्षिपामी )
प्रभु ने पद्मासन माड़ा है ।
इक टक नासाग्र निहारा है ।।
कह, अपना सो भीतर अपने ।
थम, मृग कस्तूर पूर सपने ।।
क्यूँ ना भेंटूँ जल गंग ।
तुम भरते जीवन रंग ।।
हम भक्तन मान-गुमान ।
पुण्य-भूमि सतवास नगर के,
नेमि-नाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं श्री नेमि नाथ जिनेन्द्राय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥
तरुवर अशोक ने की छाया ।
श्यामल कुंतल, श्यामल काया ।।
छव नीलम से अति प्यारी है ।
हटती न दृष्टि बलहारी है ।।
क्यूँ ना भेंटूँ घट-गंध ।
तुम मेंटत पापन बंध ।।
हम भक्तन मान-गुमान ।
पुण्य-भूमि सतवास नगर के,
नेमि-नाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं श्री नेमि नाथ जिनेन्द्राय
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ॥
सिंहासन निर्मित सोने का ।
रतनार पार्श्व, ध्रुव अभिलेखा ।।
चौ-अंगुल अधर विराजे तुम ।
मनु भविक मोर घन गाजे तुम ।।
क्यूँ ना भेंटूँ अनटूट ।
नाता प्रभु-भक्त अटूट ।।
हम भक्तन मान-गुमान ।
पुण्य-भूमि सतवास नगर के,
नेमि-नाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं श्री नेमि नाथ जिनेन्द्राय
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ॥
चौंसठ चाँवर ढुरते रहते ।
चौखट मनसा पूरण कहते ।।
जो इन चरणों में झुक जाते ।
कद में कुछ ऊंचे उठ आते ।।
क्यूँ ना भेंटूँ फुल-माल ।
तुम दर्शन करे निहाल ।।
हम भक्तन मान-गुमान ।
पुण्य-भूमि सतवास नगर के,
नेमि-नाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं श्री नेमि नाथ जिनेन्द्राय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥
रच तीन रूप चन्दर आया ।
तारागण मिष झल्लर लाया ।।
सिर ऊपर आप छतर ताना ।
माथे कलंक जो विथलाना ।।
क्यूँ ना भेंटूँ नैवेद ।
रग रग बहता लहु श्वेत ।।
हम भक्तन मान-गुमान ।
पुण्य-भूमि सतवास नगर के,
नेमि-नाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं श्री नेमि नाथ जिनेन्द्राय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
धन ! अन्तर्मुख मुद्रा आहा ! ।
ध्याना नल सब कर्मन स्वाहा ।।
बाजे बाजे जितने सारे ।
सुर देते सुर भक्ता आ ‘रे ।
क्यूँ ना भेंटूँ घृत दीप ।
तुम मोती प्रभु, मैं सीप ।।
हम भक्तन मान-गुमान ।
पुण्य-भूमि सतवास नगर के,
नेमि-नाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं श्री नेमि नाथ जिनेन्द्राय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥
सुंदर, नमेरु, पहुपन बरषा ।
शत इंद्र करें हरषा हरषा ।।
धन ! कण्ठ शंख आवर्ती है ।
श्री-वत्स छटा हट फबती है । ।
क्यूँ ना भेंटूँ घट-धूप ।
तुम सत्-शिव-सुंदर रूप ।।
हम भक्तन मान-गुमान ।
पुण्य-भूमि सतवास नगर के,
नेमि-नाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं श्री नेमि नाथ जिनेन्द्राय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥
भव सात साथ दीखे धन ! धन ! ।
भामण्डल भा सूरज अनगण ।।
पर चुभे न, नयन गगन गूँजा ।
शीतल पूरण चन्दर दूजा ।।
क्यूँ ना भेंटूँ बादाम ।
तुम मेरे चारों धाम ।।
हम भक्तन मान-गुमान ।
पुण्य-भूमि सतवास नगर के,
नेमि-नाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं श्री नेमि नाथ जिनेन्द्राय
फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥
सार्थक धुन-दिव्य जगत्त्राता ! ।
चमचम चमके सूरज माथा ।।
हाथों पे हाथ रखे बैठे ।
बिन कहे, कहें भीतर पैठे ।।
क्यूँ ना भेंटूँ द्रव आठ ।
तुम भव वैतरणी घाट ।।
हम भक्तन मान-गुमान ।
पुण्य-भूमि सतवास नगर के,
नेमि-नाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं श्री नेमि नाथ जिनेन्द्राय
अनर्घ्यपद-प्राप्तय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
कल्याणक अर्घं
पनदश मास रतन बरषा ।
इंद्र कुबेर करे हरषा ।।
भर भर रतन लुटाओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।।
नैनन जल भर लाओ ‘रे ।
चरणन नेमि धुलाओ ‘रे ।।
आओ भक्ता आओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।।
ॐ ह्रीं कार्तिक-शुक्ल-षष्ठ्यां
गर्भ-मंगल-मंडिताय श्री नेमि जिनेन्द्राय
अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
न्हवन सुमेर क्षीर कलशा ।
सुर सौधम करें हरषा ।।
इक टक दृष्टि टिकाओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।।
नैनन जल भर लाओ ‘रे ।
चरणन नेमि धुलाओ ‘रे ।।
आओ भक्ता आओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।।
ॐ ह्रीं श्रावण-शुक्ल-षष्ठ्यां
जन्म-मंगल-मंडिताय श्री नेमि जिनेन्द्राय
अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
संयम, त्याग, तप प्रशंसा ।
सुर लौ-कान्त करें हरषा ।।
गीत विराग उठाओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।।
नैनन जल भर लाओ ‘रे ।
चरणन नेमि धुलाओ ‘रे ।।
आओ भक्ता आओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।।
ॐ ह्रीं श्रावण शुक्ल-षष्ठ्यां
तपो-मंगल-मंडिताय श्री नेमि जिनेन्द्राय
अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
भामण्डल भव आदर्शा ।
सिंह मृग सम शरणस्-पर्शा ।।
श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।।
नैनन जल भर लाओ ‘रे ।
चरणन नेमि धुलाओ ‘रे ।।
आओ भक्ता आओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।।
ॐ ह्रीं अश्विन-शुक्ल-प्रतिपदायां
केवल-ज्ञान-प्राप्ताय श्री नेमि जिनेन्द्राय
अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
पढ़ पाते स्वर पन हृश्वा ।
समय मात्र शिव गति अश्वा ।।
सत जयकार लगाओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।।
नैनन जल भर लाओ ‘रे ।
चरणन नेमि धुलाओ ‘रे ।।
आओ भक्ता आओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।।
ॐ ह्रीं आषाढ़-शुक्ल-सप्तम्यां
मोक्ष-मंगल-मंडिताय श्री नेमि जिनेन्द्राय
अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
==विधान प्रारंभ==
अष्ट दलकमल पूजा
विधान की जय
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो जिणाणं*
लाखों को तुमने तारा है ।
मैंने भी तुम्हें पुकारा है ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
सर मेरे रख दो आप हाथ ।।१।।
ॐ ह्रीं नरक तिर्यंच दुर्गति निवारकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो ओहि-जिणाणं*
सुर रचे, भले थुति तुम मनहर ।
मैं भी कहता कुछ तुतलाकर ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
शिव तक मेरा दो निभा साथ ।।२।।
ॐ ह्रीं छिद्रान्वेष दुर्मति निवारकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो परमोहि-जिणाणं*
तुम गाथा लाज छोड़ गाता ।
शशि जल पकडूँ, शिशु में आता ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
दो भुला भूल मेरी अनाद ।।३।।
ॐ ह्रीं निस्वार्थ सहाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो सव्वोहि-जिणाणं*
सुर-गुरु हारे, तुम गुण गाकर ।
सच ! पार कहाँ, भुज-बल सागर ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
भीतर कछु…आ हित सकूँ साध ।।४।।
ॐ ह्रीं जल जन्तु भय विमोचकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो अणंतोहि-जिणाणं*
पर पड़ी भक्ति तेरी पीछे ।
शिशु नेह पाश-सिंह मृग खींचे ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
तुम भक्त बना लो बस मुराद ।।५।।
ॐ ह्रीं मनोवांछित फल प्रदाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो कोट्ठ-बुद्धीणं*
वरवश करती तुम भक्ति मुखर ।
लख बौर, कूक पिक मधुर अपर ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
ना करूँ पात में पात बात ।।६।।
ॐ ह्रीं अल्प बुद्धि निवारकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो बीज-बुद्धीणं*
थुति आप विनाशे पाप ताप ।
लख रवि, तम भागे आप-आप ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
दो निपटा अठ कर्मन विवाद ।।७।।
ॐ ह्रीं पाप फल विनाशकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो पदानु-सारीणं*
थव होगा नव, तुम प्रभाव बल ।
दल कमल बिन्दु जल मुक्ताफल ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
दे दो शरणा अरविन्द पाद ।।८।।
ॐ ह्रीं संकट मोचनयाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जल ले के, चन्दन ले के मैं ।
अक्षत लिये, सुमन ले के मैं ।।
चरु ले, दीप, धूप, फल न्यारे ।
करूँ यजन, दो लगा किनारे ।।
ॐ ह्रीं अष्टदल कमल हृदयस्-थिताय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
षोडश दलकमल पूजा
विधान की जय
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो संभिण्ण-सोदाराणं*
थव दूर कथा तव वृथा विहर ।
रवि ऊपर, कमल खिलें भूपर ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
धन ! भक्त पौध तुम कृपा खाद ।।९।।
ॐ ह्रीं अरिष्ट ग्रह निवारकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो सयं-बुद्धाणं*
तुम कर लेते अपने जैसा ।
आश्रित ही रखे, धनिक कैसा ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
पा सकूँ निराकुल सुख अबाध ।।१०।।
ॐ ह्रीं दारिद्रय निवारकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो पत्तेय-बुद्धाणं*
कोई न रुचे तुम दीदा रख ।
जल क्षार चाह किस मीठा चख ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
गाऊँ यूँही तुम पुण्य गाथ ।।११।।
ॐ ह्रीं तुष्टि पुष्टि करणाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो बोहिय-बुद्धाणं*
तुम तन परमाणु रहे विरले ।
सुंदर तुम भाँत न और मिले ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
कर लो खुद सा तेजश्व माथ ।।१२।।
ॐ ह्रीं मनकाम रूप प्रदाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो ऋजु-मदीणं*
मुख कहाँ आप मन सुमन हार ।
शशि छवि पलाश दिवि भागदार ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
खुद सा कर लो निकलंक चाँद ।।१३।।
ॐ ह्रीं स्व शरीर रक्षकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्ह णमो विउल-मदीणं*
विचरें स्वछन्द गुण भुवन फाँद ।
ले रोक कौन, सिर आप हाथ ॥
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
पा कृपा दाद सभ देव-राट् ।।१४।।
ॐ ह्रीं भूत प्रेतादि भय निवारकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो दसपुव्वियाणं*
कर सकीं न तिय, तुम विचलित मन ।
कब ड़िगा मेरु पा प्रलय पवन ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
कर लो खुद भाँत हृदय विराट ।।१५।।
ॐ ह्रीं रंगाँगन रक्षणाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो चोद्दस-पुव्वियाणं*
निर्धूम तुम अंधेरा न तले ।
इक जगत् जगत, दीपक विरले ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
नैय्या पाथर, लो बना काठ ।।१६।।
ॐ ह्रीं त्रैलोक्य-वशीकरणाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो अट्टंग-महा-निमित्त-कुसलाणं*
कब अस्त, ग्रस्त कब राहु मेह ।
सूरज अपूर्व, विस्मय न गेह ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
दे चलूँ न धागे प्रीत गाँठ ।।१७।।
ॐ ह्रीं मन्द कषाय करणाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो विउव्व-इड्ढि-पत्ताणं*
बादल न राहु हतप्रभ प्रताप ।
शशि अद्वितीय मुख कमल आप ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
तुम कृपा हमारे ठाठ वाट ।।१८।।
ॐ ह्रीं क्रोध उन्मूलन समर्थाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो विज्जा-हराणं*
हो तुम तो, रवि शशि क्यों आते ।
पक खड़ी फसल क्यों घन गाते ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
सीखूँ गुर रसरी कूप पाट ।।१९।।
ॐ ह्रीं मन कालुष्य निवारकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो चारणाणं*
जग और न तुम सा भेद ज्ञान ।
दुति काँच साँच कब मणि समान ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
कर लो विरंच ! ब्रह्मा ! विधात ! ।।२०।।
ॐ ह्रीं व्यापार वृद्धि बाधा निवारकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो पण्ण-समणाणं*
दर-दर भटकन ने दिया आप ।
क्या दिया, चुरा चित् लिया आप ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
लूँ कर संध्या ना करूँ रात ।।२१।।
ॐ ह्रीं सौभाग्य साधकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो आगास-गामीणं*
माँ खूब, आप सुत जग दपूर्व ।
दिश्-दिश् तारक, रवि गर्भ पूर्व ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
तुम भाँत रुलाऊँ एक मात ।।२२।।
ॐ ह्रीं अकुटुम्ब बाधा निवारकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो आसी-विसाणं*
तम विहर भास्कर नर नाहर ।
मृत्युंजय पद प्रद शिवनागर ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
कर लो शी…शी, लो लगा डांट ।।२३।।
ॐ ह्रीं जिन दीक्षा बाधा निवारकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो दिट्ठि-विसाणं*
अव्यय ! अचिन्त्य ! विभु ! आद्य ! एक ।
हरि ! हर ! ब्रह्मा ! ईश्वर ! अनेक ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
चिर ठहरे भीतर सौख्य सात ।।२४।।
ॐ ह्रीं आजिविका बाधा निवारकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भर लाया जल-चन्दन झारी ।
धान-शालि-सित, पुष्प पिटारी ।।
चरु ले, दीप, धूप, फल न्यारे ।
करुँ यजन, दुख मैंटो सारे ।।
ॐ ह्रीं षोडशदल-कमल
हृदयस्-थिताय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
“चतुर्विंशतिदल कमल पूजा’
विधान की जय”
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो उग्ग-तवाणं*
बुध वन्द्य बुद्ध, शमकर शंकर ।
नर-सींह विधाता पथ शिव कर ॥
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
लो तिरा मुझे भी सार्थ घाट ।।२५।।
ॐ ह्रीं दृष्टि दोष निरोधकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो दित्त-तवाणं*
भू आभूषण भुवि दरद हरण ।
जै जगदीश्वर ! भव जलधि तरण ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
दो खुलवा दिव शिव दर कपाट ।।२६।।
ॐ ह्रीं अर्ध शिरः पीडा शामकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो तत्त-तवाणं*
गुण पास आ गये आप दौड़ ।
बद औरों ने जो रखे ओड़ ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
दो हटक करे छल सांठ गाँठ ।।२७।।
ॐ ह्रीं शत्रु उन्मूलन समर्थाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो महा-तवाणं*
तरुवर अशोक वारे न्यारे ।
आ बैठे तर तारण-हारे ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
जीवन छाये अब नव प्रभात ।।२८।।
ॐ ह्रीं आक्रन्दन शोक परिहारकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो घोर-तवाणं*
मणि सिंहासन तन श्याम वरण ।
घन मेरु मोर भवि विभोर मन ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
अब रीझ भी चले मुक्ति राध ।।२९।।
ॐ ह्रीं नेत्र पीडा विनाशकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो घोर-गुणाणं*
तुम वर्ण कृष्ण सित चारु चँवर ।
तट अंजन झिर निर्झर झर-झर ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
सर दो उतार परि…ग्रहन गाँठ ।।३०।।
ॐ ह्रीं रिद्धि-सिद्धि प्रदायकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्ह णमो घोर-परक्-कमाणं*
शशि तीन छतर हर रवि प्रताप ।
ढुल झालर कहे जगेश आप ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
रखना यूँही सिर छत्र छाद ।।३१।।
ॐ ह्रीं अपकीर्ति निवारकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो घोर-गुण-वंभ-यारिणं*
जन संगम हित दे जग फेरी ।
जयघोष अहिंसा तुम भेरी ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
साधूँ सँध्यावन प्रणव नाद ।।३२।।
ॐ ह्रीं सत्पथ प्रदर्शकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो आमो-सहि-पत्ताणं*
बरसात पुष्प, जल, मन्द पवन ।
गिरते से नभ तुम दिव्य वचन ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
तुम भाँत सँजाऊँ शिव बरात ।।३३।।
ॐ ह्रीं समस्त ज्वर रोग शामकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो खेल्लो-सहि-पत्ताणं*
भा-मण्डल हर उपमा गुमान ।
द्युति कोटि भान छव शश समान ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
साधूँ क्षण आवीची समाध ।।३४।।
ॐ ह्रीं गर्भ संरक्षकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो जल्लो-सहि-पत्ताणं*
प्रद स्वर्ग मोक्ष, जन कल्याणी ।
शिशु वृद्ध गम्य तेरी वाणी ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
रट रखूँ न तोते भाँत पाठ ।।३५।।
ॐ ह्रीं अतिवृष्टि अनावृष्टि निवारकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो विप्पो-सहि-पत्ताणं*
शशि नख, सहस्र दल चरण विमल ।
रखते तुम, रचते देव कमल ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
मिट पाये मानस खुरापात ।।३६।।
ॐ ह्रीं बान्धव बाधा निवारकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्ह णमो सव्वो-सहि-पत्ताणं*
समशरण अलौकिक तव वैभव ।
रवि भाँत न ग्रहगण सर्व विभव ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
न पालूँ गफलत वैर जात ।।३७।।
ॐ ह्रीं वैभव वर्धन समर्थाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो मण-बलीणं*
अलि कुपित झिरे मद का झरना ।
तुम भक्त यथा गज क्या डरना ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
निर्भीक बना लो स्वयं भाँत ।।३८।।
ॐ ह्रीं कामानल उपशामकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो वच-बलीणं*
गज कुम्भ चीर छीने रतना ।
तुम भक्त यथा सिंह क्या डरना ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
लो बना स्वर्ण जग कीच काद ।।३९।।
ॐ ह्रीं श्वान वृत्ति विधूताय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्ह णमो काय-बलीणं*
बल वायु जगत चाहे भखना ।
तुम भक्त यथा दव क्या डरना ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
लो अपनों में रख मुझे छाँट ।।४०।।
ॐ ह्रीं राग आग परिदाहनाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो खीर-सवीणं*
दृग् शोणित, कुपित, उठाय फणा ।
तुम भक्त यथा अहि क्या डरना ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
कर सकूँ किनारे इक विषाद ।।४१।।
ॐ ह्रीं विष विषय रति हरणाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्ह णमो सप्पि-सवीणं*
नित् लगा मारना या मरना ।
तुम भक्त यथा रण क्या डरना ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
हो पुनः न बारा वाट हाट ।।४२।।
ॐ ह्रीं रणाँगन रक्षणाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो महुर-सवीणं*
गज रक्त सरित चाहे तरना ।
तुम भक्त यथा अरि क्या डरना ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
रेखा लाखन ना बढ़ूँ फाँद ।।४३।।
ॐ ह्रीं कर्मारि विध्वंसकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो अमिय-सवीणं*
मुख फैलाये जलचर अपना ।
तुम भक्त यथा जल क्या डरना ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
ले जमा पाँव ना मद किरात ।।४४।।
ॐ ह्रीं संसार सागर तारणाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो अक्खीण-महा-णसाणं*
जाँ-लेवा, देवा कष्ट घना ।
तुम भक्त यथा रुज् क्या डरना ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।।
दो छुड़ा पिण्ड हा ! आध व्याध ।।४५।।
ॐ ह्रीं मारी बीमारी निवारकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो वड्ढ-माणाणं*
तन, मार-श्रृंखला रक्त सना ।
तुम भक्त यथा पल क्या डरना ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
सिख…लाऊँ पढ़ सुन स्याद्-वाद ।।४६।।
ॐ ह्रीं भव बन्धन विमोचकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्ह णमो सव्व सिद्धा-य-दणाणं*
इमि और-और यम अवतरणा ।
तुम भक्त वृथा भय क्या डरना ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
तज सकूँ समय अंतिम उपाध ।।४७।।
ॐ ह्रीं भय सप्तक विनाशकाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*ॐ ह्रीं अर्हं णमो सव्वसाहूणं*
वश भक्ति रचित गुण आप माल ।
जे धरें कण्ठ बस वे निहाल ।।
सतवास नगर के नेमि-नाथ ।
तुम सेवा मेरी जायदाद ।।४८।।
ॐ ह्रीं निरा’कुल प्रदाय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
“पूर्णार्घं”
जल पावन, वावन चन्दन ले ।
अक्षत अछत, सुमन मोहन ले ।।
चरु ले, दीप, धूप, फल न्यारे ।
करूँ यजन, टक दो जश तारे ।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशति दल कमल
हृदयस्-थिताय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
“महा-अर्घं”
जल मीठा लें चन्दन नीका ।
तण्डुल, गुल-कुल आप सरीखा ।।
चरु ले, दीप-धूप, फल न्यारे ।
करूँ यजन, हित शिरपुर द्वारे ।।
ॐ ह्रीं अष्ट-चत्वारिंशद्-दलकमल
हृदयस्-थिताय
श्री नेमि जिनेन्द्राय
महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
:: जाप्य ::
।। नेमि-नाथाय नमः ।।
( १०८ बार इस मन्त्र का जाप )
==जयमाला==
शिवा-देवी आँख तारे ।
नृप समुद्र-विजय दुलारे ।
नगरिया सतवास बाबा ।
धूप जग, जिन-नेमि छाँवा ।।१।।
वेद, शास्त्र, पुराण, गीता ।
मैं न कहता, कहे सीता ।
नीर में अंगार बदले,
पलक ध्याया, बन विनीता ।।२।।
जाप मंतर प्रणव ओमा ।
मैं न कहता, कहे सोमा ।
नाग बदले फूल माला,
पल जपा, ले पुलक रोमा ।।३।।
खुशी अशुअन दृग पनीली ।
मैं न कहता, कहे नीली ।
पाँव लग पट वज्र खुल्ला,
जपत माया-देव ढीली ।।४।।
छतर झालर, चँवर चौंसठ ।
मैं न कहता, कहे द्रौपद ।
खड़ा चीर अछत कतारा,
कहा यह बस सिद्ध चौखट ।।५।।
निरंजन-अंजनन चंदन ।
मैं न कहता, कहे अंजन ।
सार्थ ‘गिर’ बजरंग बाला,
सार्थ सु…मरण शिवा-नन्दन ।।६।।
रहेगी झोली न खाली ।
मनेगी होली दिवाली ।
है मुझे विश्वास पूरा,
भले मंजिल दूर, पा ली ।।७।।
तुम्हीं काशी, तुम्हीं काबा ।
तुम्हीं भटकन, तुम्हीं ठावा ।
तुम्हीं मेरे, तुम्हीं मेरे,
कौन ? मेरा तुम अलावा ।।८।।
नगरिया सतवास बाबा ।
मोक्ष गाँवा, स्वर्ग नावा ।।
धूप जग, जिन-नेमि छाँवा ।
नगरिया सतवास बाबा ।।९।।
ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय
अनर्घ्यपद-प्राप्तय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
दोहा
बड़ी आपकी पनडुबी,
थोड़ो म्हारो भार ।
थोड़ी सी करके कृपा,
दो उतार, उस-पार ।।१०।।
( पुष्पांजलिं क्षिपामी )
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
दोहा
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
कृपा निराकुल आपकी,
बनी रहे निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
सतवास नेमि नाथ की आरती
आरती नेमि ब्रह्म-बाला ।
उतारो लिये दीप माला ॥
बाजे झाँझ ।
सुबहो साँझ ।
बाती भाँझ ।
डाल घृत शान्ति दुग्ध धारा ॥
आरती नेमि ब्रह्म-बाला ।
उतारो लिये दीप माला ॥
आरती प्रथम गरभ न्यारी ।
रतनमय सौरी पुरि सारी ॥
भींगे नयन ।
पिछली रयन ।
सोलह सुपन ।
गये देखे माँ शिव द्वारा ॥
आरती नेमि ब्रह्म-बाला ।
उतारो लिये दीप माला ॥
आरती दुतिय जनम न्यारी ।
सँजाई सौरी पुरि प्यारी ॥
फेर निरसन ।
मेरे नह्वन ।
देर दर्शन ।
बना दृग सहस इन्द्र द्वारा ॥
आरती नेमि ब्रह्म-बाला ।
उतारो लिये दीप माला ॥
आरती तृतिय त्याग न्यारी ।
चीख पशुअन सुन उर भारी ॥
अजी यदुकुल ।
सजी मंजुल ।
तजी राजुल ।
चढ़े गिरनारी मन मारा ।
आरती नेमि ब्रह्म-बाला ।
उतारो लिये दीप माला ॥
आरती तुरिय ज्ञान न्यारी ।
रखी दृग नासा बलिहारी ! ॥
धन ! सम-शरण ।
केशर हिरण ।
प्रवचन श्रवण ।
प्रकट गुण, विघट करम चारा ।
आरती नेमि ब्रह्म-बाला ।
उतारो लिये दीप माला ॥
आरती और मोक्ष न्यारी ।
जरे अरि ध्यान अग्नि जारी ॥
सुमरण वीर ।
नख-शिख क्षीर ।
समयिक तीर ।
‘निराकुल’ सुख अपरम्पारा ।
बाजे झाँझ ।
सुबहो साँझ ।
बाती भाँझ ।
डाल घृत शान्ति दुग्ध धारा ॥
आरती नेमि ब्रह्म-बाला ।
उतारो लिये दीप माला ॥
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