परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
रक्षाबंधन विधान
*पूजन *
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।
बार बार करता आह्वानन ।
सविनय मैं करता संस्थापन ।।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार सन्निधि-करण ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।स्थापना।।
आग हो चली पानी पानी ।
भाग हमारे आनी जानी ।।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार धारा नयन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।जलं।।
द्वार चन्दना खड़े विधाता ।
मेरा वन क्रन्दन से नाता ।।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार धार चन्दन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।चन्दनं।।
शिला टूक अक्षत बजरंगी ।
लहरे जीवन मेरे तंगी ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार धाँ शालि-कण ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।अक्षतं।।
मेंढ़क सुमन पाँत में आया ।
हाय ! न अब तक मैं ढ़क पाया ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार पुष्प नन्दन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।पुष्पं।।
पट खुल पड़े पांव सति लागा ।
सोया मेरा भाग न जागा ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार दिव्य व्यंजन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।नैवेद्यं।।
ग्वाला कुन्द कुन्द बन चाला ।
छाया मन मेरे अंधियारा ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार दीपक रतन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।दीपं।।
नाग बना अध-लोक भूप है ।
घर मेरे दिन भर न धूप है ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार दश गंध अन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।धूपं।।
श्रीफल ने सुन गिरी गिरा ली ।
झोली मेरी अब तक खाली ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार फल नन्द वन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।फलं।।
जल गंधाक्षत पुष्प अनूठे ।
दीपक चरु फल सुरभी फूटे ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार द्रव्य अनगण ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।अर्घ्यं।।
विधान प्रारंभ
द्वितीय वलय पूजन विधान
अमृत सिन्धु हैं ।
जगत् बन्धु हैं ।
चरित इन्दु हैं, विगत विकार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१०१।।
ॐ ह्रीं श्री अमृत सिंधु मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
झिर आनंदा ।
पाप निकंदा ।
स्वर्ण सुगंधा, घर आहार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१०२।।
ॐ ह्रीं श्री आनंद माल मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कीर्त नवीना ।
कीर्तन लीना ।
तीर्थ कही ना, ऐसा न्यार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१०३।।
ॐ ह्रीं श्री अभिनव कीर्ति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अभय प्रशंसा ।
हृदय अहिंसा ।
क्षय विध्वंशा, पाप विचार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार,जय-जयकार ।।१०४।।
ॐ ह्रीं श्री अभय रुचि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अनबुझ ज्योति ।
चल श्रुत पोथी ।
अद्भुत मोति, हृदय मँझार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१०५।।
ॐ ह्रीं श्री अति मुक्तक मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कुटुम जहाना ।
अर्हम् ध्याना ।
कुसुम विमाना, देव कतार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१०६।।
ॐ ह्रीं श्री कुसुमांजलि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शत्रु न कोई ।
हितु जग दोई ।
पर हित रोई, दीन दयाल ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१०७।।
ॐ ह्रीं श्री अजातशत्रु मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कान्ति अनूठी ।
शान्ति विभूति ।
भान्ति अछूती, पंच प्रकार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१०८।।
ॐ ह्रीं श्री अमर प्रभ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रुचि वन वासा ।
विद् इति-हासा ।
रख दृग नासा, रट नवकार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१०९।।
ॐ ह्रीं श्री अवरुद्ध मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लुचन केशा ।
मुंचन भेषा ।
रंच न द्वेषा, रति मनुहार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।११०।।
ॐ ह्रीं श्री अतिबल मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कब मनमानी ।
मनहर वाणी ।
पातर पाणी, खड़े अहार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१११।।
ॐ ह्रीं श्री अतिभूति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प्रशम कषाया ।
मरहम छाया ।
कुमकुम माया, माथ न भार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।११२।।
ॐ ह्रीं श्री उपशान्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जित अख पंचा ।
हंस विरंचा ।
विरत प्रपंचा, हृदय उदार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।११३।।
ॐ ह्रीं श्री प्रशान्त दमन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
वृत अनुरागी ।
मद परि-त्यागी ।
इक बड़-भागी, राग विडार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार,जय-जयकार ।।११४।।
ॐ ह्रीं श्री प्रशम रति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुवर्ण सुहागा ।
टूक न धागा ।
सुमरण लागा, मन अविकार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।११५।।
ॐ ह्रीं श्री कनक प्रभ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चेतन भिन्ना ।
‘रे तन भिन्ना ।
खेद न खिन्ना, वस्तु विचार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।११६।।
ॐ ह्रीं श्री संभिन्न मति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अभय प्रदाता ।
सदय विधाता ।
सविनय नाता, माँ गुण चार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।११७।।
ॐ ह्रीं श्री सर्वभूत-हित मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जश शिव पुरिया ।
दृग जुग दरिया ।
प्रति इक किरिया, निर् अतिचार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार,जय-जयकार ।।११८।।
ॐ ह्रीं श्री यशो-मित्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
छव अभिरामी ।
निज निध स्वामी ।
उपरत खामी, पंचाचार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।११९।।
ॐ ह्रीं श्री प्रीति कान्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सोना धरनी ।
रोना न बनी ।
होना करनी, भरनी पार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१२०।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्ररश्मि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
परणत गोरी ।
नफरत छोड़ी ।
श्रुत रट ओ ‘री, सतत सुचार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१२१।।
ॐ ह्रीं श्री सौन्दर्य भूषण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हिम गिर माथा ।
नम दृग नाता ।
तिहु जग त्राता, जश अविकार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार,जय-जयकार ।।१२२।।
ॐ ह्रीं श्री विश्व-भूति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हाथ न अस्त्रा ।
साथ न शस्त्रा ।
गात न वस्त्रा-भूषण भार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१२३।।
ॐ ह्रीं श्री विश्व प्रीति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विनय सहेली ।
दय अठखेली ।
विरषभ तेली, गहल निवार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१२४।।
ॐ ह्रीं श्री विनय लालस मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तीजे नैना ।
भींजे नैना ।
नीचे नैना, लख संसार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१२५।।
ॐ ह्रीं श्री विनयवान् मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अख अभिजेता ।
इक संचेता ।
ऊरध रेता, जगत् मंझार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१२६।।
ॐ ह्रीं श्री जयवान् मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जगत नन्दना ।
सुमत वन्दना ।
सुनत बन्ध ना, अबकी बार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१२७।।
ॐ ह्रीं श्री जगन्-नंदन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तन मल शोभा ।
छल बल तौबा ।
श्रृंखल लोभा, टूकन छार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१२८।।
ॐ ह्रीं श्री तिलक नंदन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शंका हरती ।
डंका धरती ।
शंखा-वर्ती गल, धुन न्यार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१२९।।
ॐ ह्रीं श्री श्री कण्ठ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मद अवगुण्ठा ।
सरसुत कण्ठा ।
पथ निष्कण्टा, दया प्रचार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१३०।।
ॐ ह्रीं श्री वज्र कण्ठ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कण्ठ सुन्दरा ।
गुण समुन्दरा ।
वास कंदरा, गुफा पहाड़ ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१३१।।
ॐ ह्रीं श्री नीलकण्ठ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
देख सजाती ।
हार सुहाती ।
भेजे पाती, शिवपुर नार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१३२।।
ॐ ह्रीं श्री अपराजित मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चन्दन देहा ।
देह विदेहा ।
चन्द न नेहा, घर परिवार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१३३।।
ॐ ह्रीं श्री अनंग पुष्प मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अपहर दुखड़ा ।
चन्दर टुकड़ा ।
सुन्दर मुखड़ा, दृग मनहार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार,जय-जयकार ।।१३४।।
ॐ ह्रीं श्री अनंग वीचि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
खुश रहते हैं ।
सब सहते हैं ।
कब कहते हैं, प्रभु अवतार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१३५।।
ॐ ह्रीं श्री प्रसन्न कीर्ति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दृग जुग दरिया ।
अलग नजरिया ।
समकित जरिया, जुग जुग न्यार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१३६।।
ॐ ह्रीं श्री सामन्त वर्धन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ज्ञान अनूठा ।
गुमान छूटा ।
विमान रूठा, पट शिव पार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार,जय-जयकार ।।१३७।।
ॐ ह्रीं श्री सहस्र भाग मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रत स्वाध्याया ।
गत मद माया ।
मन वच काया, वश इस बार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१३८।।
ॐ ह्रीं श्री लोक बिन्दु सार मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पुलकित रोमा ।
सुमरत ओमा ।
दुर्मत होमा, हृदय उदार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१३९।।
ॐ ह्रीं श्री यज्ञ दत्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मारुत चाले ।
बादल काले ।
तरु-तल ठाडे, मूसल धार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१४०।।
ॐ ह्रीं श्री तप भूषण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
फेंकी सेखी ।
लेखी नेकी ।
देखा देखी, दूर पछाड़ ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार,जय-जयकार ।।१४१।।
ॐ ह्रीं श्री कनक द्युति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
महि ना महिमा ।
करुणा प्रतिमा ।
गौरव गरिमा, अगम अपार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१४२।।
ॐ ह्रीं श्री बृहद् गति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दौलत छोड़ी ।
दुर्लत छोड़ी ।
दुर्लभ जोड़ी, छोड़ी नार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार,जय-जयकार ।।१४३।।
ॐ ह्रीं श्री धन्य मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चित चौ खाने ।
भोग पुराने ।
देव दिवाने, लगा कतार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१४४।।
ॐ ह्रीं श्री दमयन्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लर रत्नों की ।
चरिया चोखी ।
अमृत अनोखी, फूटी धार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१४५।।
ॐ ह्रीं श्री नन्दिषेण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भीतर कछुआ ।
प्रीति जग छुआ ।
तरंग मनुआ, दीनी मार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार,जय-जयकार ।।१४६।।
ॐ ह्रीं श्री नन्दि-वर्धन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मंजिल नाते ।
हिल मिल जाते ।
दिल न दुखाते, किसी प्रकार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१४७।।
ॐ ह्रीं श्री धर्म वर्धन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आंसु पोछें ।
सबकी सोचें ।
हृदय अंगोछें, लाखन बार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१४८।।
ॐ ह्रीं श्री कुल वर्धन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
औरन दीखा ।
फौरन सीखा ।
चौंरन टीका, माथ मंझार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार,जय-जयकार ।।१४९।।
ॐ ह्रीं श्री मतिवर्धन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
साथ छोड़ के ।
हाथ जोड़ के ।
माथ मोड़ के, थित माँ द्वार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१५०।।
ॐ ह्रीं श्री श्रुत वर्धन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जप निश दीसा ।
तप इक बीसा ।
दिशा विदीशा, जश झंकार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१५१।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र वर्धन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मान विनाशा ।
ज्ञान प्रकाशा ।
ध्यान विकासा, अलस विसार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१५२।।
ॐ ह्रीं श्री उदित मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बैर न पाले ।
गैर रिझा लें ।
आज संभालें, मुदित अपार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१५३।।
ॐ ह्रीं श्री मुदित मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प्रमुदित भारी ।
श्रुत रत जारी ।
परिणत काली, एक किनार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१५४।।
ॐ ह्रीं श्री प्रमुदित मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तप व्रत प्यारे ।
जप जिन द्वारे ।
झोरी न्यारे, चाँद सितार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१५५।।
ॐ ह्रीं श्री प्रिय-व्रत मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
झूठ न बोलें ।
फूट न बो लें ।
कूट न घोलें, सत् व्रत धार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१५६।।
ॐ ह्रीं श्री सत्य व्रत मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुर सुवास है ।
स्वर सुभाष है ।
मन्द हास है, मुख गुलझार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१५७।।
ॐ ह्रीं श्री सुभूषण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धन्य पिता माँ ।
न ताम झामा ।
आतम रामा, आँखें चार ।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१५८।।
ॐ ह्रीं श्री कुलभूषण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
उपरत चोरी ।
विरत तिजोरी ।
निरत न गोरी, दृग टिमकार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१५९।।
ॐ ह्रीं श्री धर्मभूषण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चिकनी काली ।
लट घुंघराली ।।
उखाड़ डाली, वस्त्र उतार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१६०।।
ॐ ह्रीं श्री सर्वभूषण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मिसरी घोलें ।
पहले तोलें ।
फिर मुख खोलें, जुवाँ संभाल ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१६१।।
ॐ ह्रीं श्री संयम भूषण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धोखा खा लें ।
छोखा टालें ।
नैन न डालें, नैना नार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१६२।।
ॐ ह्रीं श्री शील भूषण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
घोड़ा छोड़ा ।
मौड़ा छोड़ा ।
जोड़ा छोड़ा, हित उस पार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१६३।।
ॐ ह्रीं श्री तपो भूषण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मरण न भीता ।
करुण विनीता ।
सुमरण गीता, नुयोग चार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१६४।।
ॐ ह्रीं श्री सत्य भूषण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
क्षमा संभाली ।
रमा विसारी ।
तमा प्रजाली, ज्योति अछार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१६५।।
ॐ ह्रीं श्री क्षमा भूषण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जन जन साथी ।
मन मन थाती ।
दिन दिन राती, प्रणव उचार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१६६।।
ॐ ह्रीं श्री प्रणव भूषण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
निरखें चालें ।
विसरें चालें ।
निसरें चालें तुष, वच सार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१६७।।
ॐ ह्रीं श्री धर्म बुद्धि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विसर गृद्धता ।
वर विशुद्धता ।
अखर बुद्धता, योग निहाल ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१६८।।
ॐ ह्रीं श्री सुयोग्य सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
करें न निन्दा ।
वरे न तन्द्रा ।
भरें न निद्रा, करवट छाड़ ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१६९।।
ॐ ह्रीं श्री सुभद्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मास उपासा ।
जिन मत दासा ।
गत अभिलाषा, कीर्ति प्रसार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१७०।।
ॐ ह्रीं श्री स्वर्णभद्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।l
भला सोचना ।
गिला लोचना ।
कब सकोच ना, फिरें ना द्वार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१७१।।
ॐ ह्रीं श्री पूर्ण भद्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गत विराधना ।
एक साधना ।
रात जागना, गत प्रविचार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१७२।।
ॐ ह्रीं श्री सिद्धार्थ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मीत जगत है ।
प्रीत भगत है ।
शीत कटत है, धृति पट धार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१७३।।
ॐ ह्रीं श्री सुबन्धु मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रिपु दल मैटे ।
भीतर पैठे ।
प्रभु से बैठे, नाक निहार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१७४।।
ॐ ह्रीं श्री प्रहस्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जित अख सेना ।
सच्चे जैना ।
लेना देना, ना उपहार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१७५।।
ॐ ह्रीं श्री प्रसेन जित मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मन गुल कुन्दा ।
गुरुकुल नन्दा ।
ढुल-मुल मन्दा, मति परिहार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१७६।।
ॐ ह्रीं श्री प्रभास कुन्द मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बन्धन काटें ।
मीठी बातें ।
जीती रातें, स्वप्न विसार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१७७।।
ॐ ह्रीं श्री अभ्युदय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भाँत सरोजा ।
माथ न बोझा ।
साथ न खोजा, तज परिवार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१७८।।
ॐ ह्रीं श्री पद्य रुचि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कण न कलंका ।
कंचन पंका ।
रंच न शंका, वेदन चार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१७९।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्रसेन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
वृत्त गोचरी ।
चित्त चोर ‘री ।
वित्त दौड़ दी छोड़, विचार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१८०।।
ॐ ह्रीं श्री वृषभ ध्वज मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मण्डन मुण्डा ।
भुज गज तुण्डा ।
तेज प्रचण्डा, तापस न्यार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१८१।।
ॐ ह्रीं श्री कुण्डल मंडित मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हाथ रिद्धियां ।
साथ सिद्धियां ।
माथ वृद्धियां, सल अपहार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१८२।।
ॐ ह्रीं श्री विशाल कीर्ति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुर जय घोषा ।
व्रत निर्दोषा ।
व्रत संतोषा, उर संचार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१८३।।
ॐ ह्रीं श्री समुद्र घोष मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रमता जोगी ।
समता भोगी ।
ममता होगी, लख यम द्वार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१८४।।
ॐ ह्रीं श्री साधु दत्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
खुशी बाँटते ।
दुखी छांटते ।
नहीं डांटते, करें दुलार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१८५।।
ॐ ह्रीं श्री क्षेमंकर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
निमित दर्शना ।
दुखित हर्ष ना ।
दुरित पर्श ना, गंगा धार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१८६।।
ॐ ह्रीं श्री उज्ज्वल रत्न मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प्रेम पावना ।
क्षेम भावना ।
नेम प्रार्थना, जग उद्धार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१८७।।
ॐ ह्रीं श्री नेम शासन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
केवट खेवा ।
सेवक देवा ।
प्रेरक सेवा, दीन दयाल ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१८८।।
ॐ ह्रीं श्री सुर प्रभ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
निज टटोलते ।
कब विचोल थे ।
निध न खोलते, हाठ बजार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१८९।।
ॐ ह्रीं श्री यशपाल मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
संध्या संध्या ।
ध्यान जिनंदा ।
पोथी पत्रा, बांध संभार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१९०।।
ॐ ह्रीं श्री यशोधर्म मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रत्न तीन हैं ।
जतन लीन हैं ।
पतन हीन हैं, गुण भण्डार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१९१।।
ॐ ह्रीं श्री श्री वल्लभ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विगलित शोका ।
विरहित धोखा ।
विस्मृत ओछा, दुठ व्यवहार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१९२।।
ॐ ह्रीं श्री वीत शोक मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प्राणी रक्षा ।
पूँजी शिक्षा ।।
दूजी कक्षा, स्वर गुंजार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१९३।।
ॐ ह्रीं श्री अभय नंदि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
करुणा बरसा ।
चरणा-दर्शा ।
त्रिभुवन हरषा, दीक्ष निहार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१९४।।
ॐ ह्रीं श्री विश्वनंदि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अलग निरे हैं ।
सुरग जुड़े है ।
सजग बड़े हैं, सुख करतार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१९५।।
ॐ ह्रीं श्री विचित्र रथ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
फूल न तोड़ें ।
भूल न जोड़ें ।
धूल न मोड़ें, ओर सितार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१९६।।
ॐ ह्रीं श्री प्रिय बंधु मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कीमत वाले ।
कीरत द्वारे ।
तीरथ सारे, क्या हरिद्वार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१९७।।
ॐ ह्रीं श्री शालि वाहन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कम लिखते हैं ।
दम रखते हैं ।
नम दिखते हैं, दृग जुग न्यार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१९८।।
ॐ ह्रीं श्री गुणधर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गुप्ति निशानी ।
मुक्ति दिवानी ।
सूक्ति विधानी, आगम सार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।१९९।।
ॐ ह्रीं श्री स्कंध गुप्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जाग हमेशा ।
राग न द्वेषा ।
भाग स्वदेशा, अबकी बार ।।
सन्तन लीला अपरम्पार ।
जय-जयकार, जय-जयकार ।।२००।।
ॐ ह्रीं श्री देशभूषण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
॥ जयमाला ॥
महिमा रक्षा बंधन पर्व अपार ।
जयतु सप्त शत, मुनि जय विष्णु कुमार ।।
नगरी उज्जैनी रजधानी ।
नृप श्री-वर्मा, श्रीमति रानी ।।
नमुचि, वृहस्पति, बलि प्रहलादा ।
मंत्रि मंत्रणा मद आमादा ।।
सप्त शतक मुनि सहित पधारे ।
सूर अकम्पन तारण हारे ।।
देख भक्त जन आना जाना ।
राजा ने भी जाना ठाना ।।
रोक खड़े मंत्री चारों के चार ।
लो पीछे, जब चलने नृप तैयार ।।१।।
राजा ने दी ढोक सभी को ।
ध्यान मग्न थे चूँकि सभी वो ।।
तभी न आशीर्वाद नवाजा ।
वृत्ति निरीह प्रभावित राजा ।।
झुके न, मंत्री अड़े खड़े हैं ।
बोले, ये सब मूर्ख निरे हैं ।।
पहले ही चित चारों खाने ।
लाज बचायें, मौन बहाने ।।
चलो यहाँ से चलें शीघ्र सरकार ।
समय कीमती यूँ ही व्यर्थ निछार ।।२।।
देख मार्ग में आते मुनि को ।
मंत्रि लगे छेड़ने उनको ।।
बैल पेट भरकर आ चाला ।
भैंस बराबर अक्षर काला ।।
उत्तर दे चाले तपाक से ।
मुनि श्रुत सागर सार्थ आप से ।।
वाद विवाद मंत्रि गण हारे ।
गूंजे दया धर्म जयकारे ।।
साँच कहावत नीचे ऊंट पहाड़ ।
नजर चुरा मंत्री गण नौ दो ग्यार ।।३।।
मुनि ने गुरु से सब कह डाला ।
गुरु ने कहा, सुनो यति बाला ।।
आती आपद के पग बांधो ।
प्रतिमा-योग वहीं जा साधो ।।
ठाना कहर संघ पर ढ़ाना ।
निकले मंत्री लिये कृपाणा ।।
देख सामने अपना वैरी ।
किया प्रहार, न कीनी देरी ।।
कीलित सभी, खड़े बुत से लाचार ।
नृप ने सुबह देश से दिये निकाल ।।४।।
पहुंच हस्तिनापुर अब मंत्री ।
खड़े पद्म नृप सेवक पंक्ति ।।
सिंहबल नाम शत्रु नृप पदमा ।
ला बलि खड़ा किया नृप कदमा ।।
खुश होकर नृप बोले बलि से ।
मांगो मनचाहा वर मुझ से ।।
बलि बोला, मम दृग पथ गामी ! ।
समझें उसे धरोहर स्वामी ! ।।
हुआ अकम्पन सूर ससंघ विहार ।
कभी हस्तिनापुर लख वर्षा काल ।।५।।
बलि ने नृप वर याद दिलाया ।
सात दिवस का राज मँगाया ।।
घेर संघ जूठन फिकवाई ।
गला रुधा, यूँ धुंआ कराई ।।
दूर न जब तक यह उपसर्गा ।
साध खड़े मुनि कायोत्सर्गा ।।
अवधि ज्ञान दृग दिया दिखाई ।
शिख ढ़िग विष्णु कुमार पठाई ।
सुन रिध विक्रियधर उपसर्ग निवार ।
हेत परीक्षा मुनि दी बाहु पसार ।।६।।
बलि से बोले विष्णु कुमारा ।
क्या बिगाड़ते साधु तुम्हारा ।।
क्यों ये पाप कार्य करते हो ।
क्या उससे भी ना डरते हो ।।
बलि बोला, ये राज हमारा ।
छोड़ इसे, यह करें विहारा ।।
ऋषि बोले, यह जा नहीं सकते ।
जगह एक बरसात ठहरते ।।
अच्छा सुनो करो इतना उपकार ।
भूमि तीन डग दे दो, बनो उदार ।।७।।
बलि बोला, ना ज्यादा दूँगा ।
बाद खबर इन सबकी लूँगा ।।
फिर क्या ? विष्णु कुंवर हुंकारे ।
बढ़ ज्योतिस्-मण्डल छू चाले ।।
डग पहले सुमेर गिर नाका ।
दूज मानुषोत्तर गिर राखा ।।
डग तीजा नभ में लहराये ।
नर, सुर, नाग धरा थर्राये ।।
निरत भक्ति सौधर्म साथ परिवार ।
मुनि सकोचि विक्रिय सुन धुन रिध-धार ।।८।।
क्षमा संघ से बलि ने मांगी ।
‘धर्म वृद्धि’ कह चले विरागी ।।
श्रावक मुनि पड़गा हरषाये ।
नवधा भक्ति अहार कराये ।।
रक्षा बंधन पर्व मनाया ।
जश मुनि विष्णु कुमार बढ़ाया ।।
हित प्रायश्चित ऋषि बढ़ चाले ।
कर्म सभी ध्यानानल जारे ।।
समय मात्र परिणाई शिवपुर नार ।
लागी सौख्य ‘निराकुल’ अविरल धार ।।९।।
दोहा
यह रक्षा बंधन कथा,
पढ़ें सुन जे जीव ।
उनके जीवन में जगे,
सम्यक् ज्ञान प्रदीव ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
*विसर्जन पाठ*
अंजन को पार किया ।
चंदन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।
अगनी ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।
( निम्न श्लोक पढ़कर
विसर्जन करना चाहिये )
*दोहा*
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
कृपा ‘निराकुल’ आपकी,
बनी रहे निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
।।आरति।।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
सिर्फ न सांझ सांझ निश दिन ।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।
आरती पहली धन समता ।
नीर बहता जोगी रमता ।।
मंत्रि बलि आद अत्त ढ़ाया ।
संघ न माथ शिकन लाया ।।
लेख कृत पूरब किया सहन ।
सिर्फ न सांझ सांझ निश दिन ।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।
आरती दूजी धन शक्ती ।
नाग, नर, देव करें भक्ती ।।
कौन इनसे ऊँचा जग में ।
नाप ली धरती दो डग में ।।
निकट गुरु खड़े हित प्रतिक्रमण ।
सिर्फ न सांझ सांझ निश दिन ।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।
आरती तीजी धन करुणा ।
हिरण सिंह बैठे सम शरणा ।।
क्षमा माँगी, दृग नम कीनी ।
ढोक बलि आदि मंत्रि दीनी ।।
‘निराकुल’ सुख आशीष वचन ।
सिर्फ न सांझ सांझ निश दिन ।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।
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