वर्धमान मंत्र
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=पूजन=
उपकार इक-दो हों, तो मैं गिना दूँ ।
तारे गगन कितने, कैसे गिना दूँ ।।
भर सिसकियाँ थी रही गाय माता ।
बन के गुपाला जो तू आ गया था |।
ले जो रही आज मुस्कान गैय्या ।
तेरे सिवा और है किसकी छैय्या ।।
फूल चमन के मैं, कैसे गिना दूँ ।
उपकार इक-दो हों, तो मैं गिना दूँ ।।
आ थी रही कुछ हवा पश्चिमी यूँ ।
दीवा कहे संस्कृति कैसे जीवूँ ।।
अनुशासन प्रतिभा-प्रतिक्षा स्थलियाँ ।
स्वयं गया रही आपकी विरदावलियाँ ।।
सागर रतन कितने कैसे गिना दूँ ।।
उपकार इक-दो हों, तो मैं गिना दूँ ।।
बच्चे पढ़े थे लिखे, पे नाकारा ।
थे सोचते जन्म भू भार म्हारा ।।
चल चप्पे-चप्पे जो चरखे रहे हैं ।
कर आपके ही तो चर्चे रहे हैं ।।
मंजरियाँ आमन मैं कैसे गिना दूँ ।।
उपकार इक-दो हों, तो मैं गिना दूँ ।।
थे कई जिनालय लो खंडहर बने थे ।
गिरने को थे, नाम को बस तने थे ।।
पाषाण का कर, दिया नव जनम ही ।
उनका न हो ताकि जीवन खतम ही ।।
पाषाण गिरि कितने कैसे गिना दूँ ।।
उपकार इक दो हों, तो मैं गिना दूँ ।।
तारे गगन कितने, कैसे गिना दूँ ।।स्थापना।।
।। वर्तमान भगवन्त ।।
ऋषि संस्कार शाला ।
कृषि, गो, शाला, बाला ।।
हित इन बने बसन्त ।
विद्यासागर सन्त ।।
पश्चिमी हवा आई ।
लेने दम पुरवाई ।।
संस्कृति पुरा सामन्त ।
विद्यासागर सन्त ।।
हतकरघा संजीवा ।
संस्थलि-प्रतिभा नींवा ।।
देश-विदेश-महन्त ।
विद्यासागर सन्त ।।
पर-पीर न लख पाते ।
दृग्-नीर झलक आते ।।
अनन्त-करुणा-वन्त ।
विद्यासागर सन्त ।।जलं।।
धन्य हो गया घाट तिलवारा
पूर्णायु जो पा गया है
कृपा श्री गुरु जो पा गया है
अब तो चाँदी-चाँदी है
लगी हाथ आजादी है
चम चम चमका किस्मत सितारा
हवा पश्चिमी शरमाई
बहे चार शू पुरवाई
‘जै आयुर्वेद’ पा गया नारा ।
है धोखा-धड़ी न अंधा धंधा ।
मौका परस्ती न विश्वास अंधा ।।
न कोई जिनका उनका सहारा ।
आ मिलके लगाये जयकारा ।
आचार्य गुरुवर का
कल के तीर्थंकर का
जय कारा गुरुदेव का…
जय जय गुरुदेव… ।।चन्दनं।।
भरे सिसकियाँ,
आपका जिया,
त्राहि माम्
मेरे राम !
हा ! कितनी दुखी ये दुनिया ।
भरे सिसकिंयाँ, आपका जिया ।।
कैसे क्या करूँ, जो लूँ बचा ।
हाय ! राम कोहराम सा मचा ।।
देखो हो न पा रही सुबह
बेजुवान कट चले वेवजह
देखो थी भूमि न पाई छू ।
पी गई नागिने माई खूँ ।।
देखो जानते न अभी तैरना ।
और नशे में डूबने चले जबां ।।अक्षतं।।
बना रहे सदैव,
आपका गुरुदेव,
मेरे सिर पर हाथ
दिन-रात
इक दूसरे को बुनता,
मकड़ी सा ताना-बाना ।
आज-कल का जमाना,
सच कहे तो जमा…ना ।।
दिया, छुड़ा न चल देना कहीं
जि गुरु जी अपना साथ ।
यही फरियाद ।
काम चल रहा,
राम भरोसे आज-कल ।
ज्यादा बम बारुद,
है बरस रहा कम जल ।।
जल भिन्न लो बना जल जात
अपने ही भाँत
यही फरियाद
पश्चिमी हवा धीमा-सा,
लो घोलती जहर ।
हहा ! करता जा रहा,
नशा बीच बच्चियों के घर ।
रात विघटा,
दो प्रकटा,
जीवन में सबके नव प्रभात
यही फरियाद ।।पुष्पं।।
बेजुबानों के
अय ! रक्षक !
संरक्षक
हिन्द-जुवानों के
जाँ, मुसीबत में, आ, लो बचा हमें ।
बेजुबाँ जिन्दगी, बूँद-बूँद रोती-सी ।
जुवाँ-हिन्द अपना वजूद खोती सी ।।
जाँ, मुसीबत में, आ, लो बचा हमें ।
बाहर भारत से, बेकार हिन्द जुबाँ ।
कह दिया भारत ने, भू-भार बेजुबाँ ।।
थे-अपने, आये परायों में बेजुबां ।
घर-अपने, आये परायों में हिन्द जुबाँ ।
संरक्षक, अय ! रक्षक ! ।।नैवेद्यं।।
।। जय कारा जय जय कारा ।।
साँचा गुरु विद्या द्वारा ।
जन्म जलधि खेवन हारा ।।
जय कारा जय जय कारा ।।
जनहित जारी ढ़ेर प्रकल्प ।
भाई ! कलिजुग काया कल्प ।।
जैन आसमाँ ध्रुव तारा ।।
दही, दूध, घी-मक्खन-धार ।
रहते खुले गुशाला द्वार ।।
एक वर्तमाँ गोपाला ।
रोग असाध्य योग उपचार ।
रहें खुले पूर्णायू द्वार ।।
अर धन्वन्तर अवतारा ।
जनहित जारी ढेर प्रकल्प ।
भाई ! कलिजुग काया कल्प ।।
पाई आखर ढ़ाई नार ।
खुले रहें थलि-प्रतिभा द्वार ।।
बिन कारण तारण हारा ।।दीपं।।
।। कलि-जुग इक अवतार क्षमा ।।
एक खिवैय्या नैय्या भौ ।
आज कन्हैय्या गैय्या को ।।
सुमरण मात्र गुमान गुमाँ ।
विद्या सागर नमो नमः।।
संस्कृति भा… रत रखवाले ।
शान्ति दुग्ध धारा वाले ।।
मन्त्र एक पूरण-अरमाँ ।
मंत्र-मुग्ध करती वाणी ।
मूक-माटी जन कल्याणी ।
भान, विहर-अज्ञान-अमा ।
विद्या सागर नमो नमः ।।धूपं।।
।।गुरु विद्या सागर भगवान् ।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटीं आज ।
शान बनी हैं जैन-समाज ।।
प्रतिभा मण्डल तम-हर भान ।
कलयुग राम-राज्य आह्वान ।।
बही दूध-घी की फिर धार ।
पशु न-भार कहा सरकार ।।
शान्ति दुग्ध धारा वरदान ।
कलयुग राम-राज्य आह्वान ।।
मिला सभी लोगों को काम ।
हुआ गरीबी काम-तमाम ।।
करघा धर्म अहिंसा शान ।
कलयुग राम-राज्य आह्वान ।।
रहा न दुखी कोई लाचार ।
रोग लग रहे एक किनार ।।
भाग्योदय दुखियन इक त्राण ।
कलयुग राम-राज्य आह्वान ।।
मन्दिर शिखर चले आकाश ।
आश चैन की लेती श्वास ।।
हुये निभाने व्रत आसान ।
कलयुग राम-राज्य आह्वान ।।फलं।।
।। अमिट जैन शासन पहचान ।।
दिये सूत्र नहिं एक, अनेक ।
नीर किसी दृग् सके न देख ।।
करघा रोजगार वरदान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।
दान ज्ञान अक्षर पद हेत,
निमिष न किस मुस्कान समेत ।।
दिला रहे हिंदी सम्मान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।
संध्यावान ले प्रभु का नाम ।
कहें, दो करा स्वामिन् काम।।
नाम इण्डिया करे प्रयाण ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।
करें प्रार्थना कर दो जोड़ ।
हरियाली भर दो चहुओर ।।
गौ शाला पशु जीवन दान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।
भले हवा पश्चिम बल जोर,
रखी थाम ऋषि संस्कृति डोर ।।
प्रद प्रतिभा संस्थली संज्ञान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।
गागर में सागर सी मित्र ।
नीतिन् न्याय समेत विचित्र ।।
निकष मूकमाटी श्रुत ज्ञान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।
हो तो एक गिना दें काम ।
इतने, हो जायेगी शाम ।।
कैसे बने नेक गुणगान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।
अमिट जैन शासन पहचान ।।अर्घ्यं।।
=विधान प्रारंभ=
कहर बरपा हा ! पाप का ।
कलि सहारा हाँ आपका ।।
मेरे सिर पर छाँव कीजे ।
गाँव शिर-पुर नाव कीजे ।।
घर घर में, है मधुशाला ।
घर घर में, है ‘वसु’ काला ।।
घर घर में, बगला भक्ति ।
घर घर में, अबला सख्ती ।।
घर घर में, रावन कंशा ।
घर घर, वृष माहन-ध्वंसा ।।
घर घर में, नागिन माता ।
घर घर में, अनबन भ्राता ।।
घर घर में, टोका-टाँकी ।
घर घर में, ताँका-झाँकी ।।
घर घर में, बजते बर्तन ।
घर घर में, ताण्डव नर्तन ।।
घर घर में, ‘तरेरना-दृग्’ ।
घर घर में, मुँ फेरना धिक् ।।
घर घर में, खाना होटल ।
घर घर में, पानी बोतल ।।
घर घर में, पश्चिमी हवा ।
घर घर में, मातमी जुबाँ ।।
भरा द्रव सब पात्र लाया ।
बना रखिये छत्र छाया ।।स्थापना।।
प्रथम सम्यक् दर्शन वलय
(१)
मेरे गुरुवर परम ।
गम चहु ओर तम ।
बरषा दो रहम ।।
लिये घट नीर हम ।
लिखा तकदीर गम ।।
लिये चन्दन कलश ।
करे क्रन्दन परस ।।
शालि-धाँ कण लिये ।
कालिमा मन छिये ।।
लिये थाली कुसुम ।
हुई दिवाली गुम ।।
लिये पकवान घी ।
मन न माने कही ।।
दीप लाये रतन ।
इक न तन मन वचन ।।
धूप सौरभ अहा ।
रूप सो रब कहाँ ।।
फल मधुर मधुरतम ।
कल-फिकर दर कदम ।।
दरब लाये सरब ।
सब सताये गरब ।।
बरषा दो रहम ।
मेरे गुरुवर परम ।। अर्घं ।।
(२)
प्रद रोजगार हतकरघा ।
हर बोझ भार लें हर का ।।
श्री गुरु वे तारण-हारे ।
सुलटा दें भाग-सितारे ।
प्रतिभा संस्थली प्रणेता ।
नेता-यति, अक्ष-विजेता ।।
जल लाये द्वार तुम्हारे ।
दो नौका लगा किनारे ।
माँ पिता मूकमाटी के ।
चलते बिन वैशाखी के ।।
ले मलयज आये द्वारे ।
दो सम्यक् रतन पिटारे ।
अनुशासन लाने वाले ।
गोशाला इक-रखवाले ।।
ले अक्षत आये द्वारे ।
लड़ मन अपनों से हारे ।
सर्वोदय खुशबू थारी ।
भाग्योदय छू बीमारी ।।
पुष्पों के लिये पिटारे ।
दो दिखा मदन दिन तारे ।
साहित्य श्रृजन न कम है ।
ब्राह्मी सुन्दरी आश्रम है ।।
ले नेवज आये द्वारे ।
नहिं पीस उठाऊँ पारे ।
ये गगन चमूते मन्दर ।
गौरव-गाथा जिन अन्दर ।।
ले दीवा आये द्वारे ।
पग रखूँ न अब अविचारे ।
प्रतिभा रत भारत सपना ।
प्रति भारति भाई अपना ।।
ले खड़े धूप-घट न्यारे ।
कर दो शुभ भाव हमारे ।
प्रद कूट-सहस्र देवालय ।
लख कोटि सहस्र दयालय ।।
फल लाये द्वार तुम्हारे ।
दो पाप माफ कर सारे ।
सिद्धोदय दया तुम्हारी ।
कल सिद्धालय अधिकारी ।।
ले वसु द्रव आये द्वारे ।
वारे दो कर अब न्यारे ।। अर्घं।।
*महा-अर्घ*
हाई-को ?
‘गर्मी में, ठण्डी हवा के झोके ।
होते गुरु अनोखे’ ।।
भेंटूॅं मैं, दृग् जल तुम्हें ।
कम वक्तों से आने भक्तों में ।
आने सग्रन्थों से, निर्ग्रन्थों में ।
मझधार से, आने पार में ।
आने स्कूल से, गुरुकुल में ।
आने व्यंजन से, अक्षर में ।
आने अंधेरे से, उजाले में ।
आने घाम से, SSराम छाँव में ।
आने श्रीमानों से, धी-मानों में ।
भेंटूॅं मैं, जल-फल तुम्हें ।
सर-दारों से, आने सिक्खों में ।।अर्घ्यं।।
द्वितीय सम्यक् ज्ञान वलय
(१)
आओ कर करुणा ।
संपूरो-सपना ।।
छोटे-बाबा अर ।
जय विद्या-सागर ।
भर नीर चढ़ाता ।
दो धीर विधाता ।।
अर गोशाला-धर ।
अर हतकरघा-धर ।
रस-गन्ध चढ़ाता ।
लो विहर असाता ।।
पद-अछत चढ़ाता ।
हो श्रुत से नाता ।।
संथली-प्रतिभा-धर ।
अनुशासन-दा अर ।
चुन पुष्प चढ़ाता ।
बिखरे दुख ताँता ।।
चरु दिव्य चढ़ाता ।
हो उन्नत माथा ।।
प्रतिभा-प्रतिछा-धर ।
भाग्योदय-दा अर ।
घृत दीप चढ़ाता ।
पथ बनूँ न काँटा ।।
शुचि धूप चढ़ाता ।
लो हर दुख त्राता ।।
सिद्धोदय-दा अर ।
सर्वोदय-दा अर ।
फल सरस चढ़ाता ।
दो शिव-फल दाता ।।
रच अरघ चढ़ाता ।
सुख आये गाता ।।
चल तीरथ-दा अर ।
जय विद्यासागर ।।अर्घं।।
(२)
आओ गुरुवर आओ ।
आ दीप थमा जाओ ।।
दृग् पानी रहा कहाँ ।
बिक पानी रहा यहाँ ।।
पो-फटने ना पाती ।
गो-कटने आ जाती ।।
आ गई मशीनें हैं ।
हक करघा छीनें हैं ।।
बेटी विदेश बेटा ।
हहा ! दूध सपरेटा ।।
उन्नीदी सी नस्लें ।
उन्नीसी सी फसलें ।।
आ गया समय कैसा ।
सिर चढ़ बोले पैसा ।।
पढ़-लिखकर भी बच्चे ।
बस दिखने के अच्छे ।।
कैसी छा रही निशा ।
बच्ची कर रही नशा ।।
हा! हा! कलि बलिहारी ।
लज्जा भूली नारी ।।
छाया अँधियारा है ।
इक तिरा सहारा है ।।अर्घं।।
(३)
अहिंसा मसीहा ।
शहंशा नृसीहा ।।
भा-प्रतिभा मण्डल ।
जुवाँ हिन्दी संबल ।।
गो नाड़ी फड़कन ।
थलि-प्रतिभा-धड़कन ।।
शाने हिन्दुस्ताँ ।
ज्ञाने गुलदस्ता ।।
शाकाहार जिया ।
नशा बंदी मुखिया ।
चल चरखा दीवा ।
करघा संजीवा ।।
अनुशासन माँझी ।
प्रतिभा-प्रतिछा जी ।।
सृजक मूकमाटी ।
झूठ, रसिक-लाठी ।।
पूरी मैत्री दा ।
सूरि-कहाँ इन सा ।।
छोटे बाबा जी ।
भेंटें बा बाजी ।।अर्घं।।
(४)
नफरत नहीं किसी से ।
मुहब्बत तुम्हें सभी से ।
ओ नूरे आसमानी ।
दो सँवार जिन्दगानी ।
ज्यों घर अमीर बढ़िया ।
त्यों ही तुम्हें झुपड़िया ।।
बस हाथ-अभय उठता ।
करीबी न गैर तकता ।।
भगवान् मिलती जुलती ।
मुस्कान एक मिलती ।।
बिगड़ी बनाने वाले ।
पगड़ी थमाने वाले ।।
घर बहिर न पग रखते ।
जग-भर की खबर रखते ।।
झोली भरने वाले ।
इक हम-जोली न्यारे ।।
आलस हर लेते गम ।
साहस भर देते दम ।।
करते हो प्यार ऐसे ।
करे माँ दुलार जैसे ।।
किस तरफ नहीं चर्चा ।
हर तरफ तिरी अर्चा ।।
ओ नूरे आसमानी ।
दो सँवार जिन्दगानी ।। अर्घं ।।
*महा-अर्घ*
हाई-को ?
‘मुफ्त बाँटने में खुश्बू ।
रहें आगे फूलों से गुरु’ ।।
आंख में झिर जल लाया ।
तुम्हें हरिक भक्त भाया ।
खुशी जो भिंटाना आया ।
तुम्हें दुख मिटाना आया ।
रिश्ता जो निभाना आया ।
तुम्हें व्यथा सुनना आया ।
ज्योत जो जगाना आया ।
तुम्हें जख्म भरना आया ।
दया जो वर्षाना आया ।
हाथ में जल-फल लाया ।
मुक्ति जो दिलाना आया ।।अर्घ्यं।।
तृतीय सम्यक् चारित्र वलय
(१)
सुना, सुना करते दुख हो ।
सुनते ही हरते दुख को ।।
थी रोती गो हा ! हा !
पा गई खुशी आहा ।।
हा ! थी कल फिकर विकल ।
हिन्दी पाई सम्बल ।।
करघा था मानो-मृत ।
हो गया पुनर्जीवित ।।
थे मन्दिर जर-जर से ।
पा नव स्वरूप हरषे ।।
बाला थी बोझ बनी ।
जल भिन्न सरोज बनी ।।
था रोग-दौर छाया ।
धन भाग्योदय आया ।।
दिव्यांग दुखी भारी ।
सर्वोदय दुखहारी ।।
मातृ शक्ति अधूरी ।
वरदाँ मैत्री पूरी ।।
माहन ध्वज उलझा सा ।
शाका-हारिक आशा ।।
दुख मेरा भी कम ना ।
कृपया कीजो करुणा ।। अर्घं ।।
(२)
तुम सुन लेते सबकी ।
नैय्या खेते सबकी ।।
मैं भी मँझधार पड़ा ।
कर दो उस पार खड़ा ।
कलि गोपाला गैय्या ।
नौ बेजुवाँ खिवैय्या ।।
चल चरखा माफिक जी ।
हतकरघा इक माँझी ।।
गुम मृग-कस्तूरी हट ।
पूरी मैत्री केवट ।।
नुशासन तरण तारण ।
प्रशासन शरण शासन ।।
प्रतिभा-थलि खेवटिया ।
प्रतिछा-प्रतिभा बिटिया ।।
इक कर्णधार दुखिया ।
भाग्योदय क्या न ‘दिया’ ।।
मल्लाह नशा बन्दी ।
जिनालय प्रद सुगन्धी ।।
हिन्दी जुवान तारक ।
इक गुमान संहारक ।।
मुनि-गण खेवन-हारे ।
गुणि-गण-देवन प्यारे ।।
मैं भी मँझधार पड़ा ।
कर दो उस पार खड़ा ।। अर्घं ।।
(३)
करती झूठे वादे है ।
दुनिया मतलब साधे है ।।
कलि बिन गुरु राई पूजा ।
नहिं शरण-सहाई दूजा ।।
बढ़ बन्दर बाँट रहा है ।
नहिं अन्धर हाट कहाँ है ।।
रावण जप-जपते तोते ।
यूँ हवा, ‘कि उड़ते ताते ।।
हैं रँगे शियार अभी भी ।
मानों भू भार सभी ही ।।
फुस्कार दूर, डसते सब ।
हाँ ! रिसते-से रिश्ते सब ।।
भेड़िये भेड़ रखवाले ।
अंधों के न्याय हवाले ।।
बगुले सी है चालाकी ।
हावी कोकिल मति काकी ।।
थित कागा काग-भगोड़े ।
माँ बाना नागिन ओड़े ।।
आ गये फूल कागज के ।
बन्दर बैठा सिर गज के ।।
सब बन गिरगिट रँग बदलें ।
छुप छू पापों की हद लें ।।
कलि बिन गुरु राई पूजा ।
नहिं शरण-सहाई दूजा ।। अर्घं ।।
(४)
ग्रीषम तरुवर-सी छैय्या हैं ।
नैय्या-गो यही खिवैय्या हैं ।
छोटे बाबा ! पा इन्हें आज ।
थिरकें गो ता-था-थैय्या हैं ।
गायों ने क्या ? इनको पाया ।
झोली शशि-तारक दल आया ।।
‘पत-झड़’ दुख सुख सावन आया ।।
दुनिया बदली बिखरी माया ।।
सुख उल्लेखित-श्रुत उपजाया ।।
वंशी सुख चैन बजा पाया ।।
आकाश स्वप्न हर छू आया ।।
चिर-उलझी-उलझन सुलझाया ।।
भासा पुनि राम-राज आया ।।
छट गया बदलियों का साया ।।
सिर्फेक विनन्ती आगे भी ।
रखिये बनाय छत्रच्छाया ।।अर्घं।।
(५)
छोटे बाबा ओ ! ।
माँ पिता हमारे ।
देवता हमारे ।।
मुस्कुरा जरा दो ।।
मेरी दिल धड़कन ।
नाड़ी की फड़कन ।।
घट जल स्वीकारो ।
उलझन सुलझा दो ।
साथी ओ हमदम ।
साँसों की सरगम |।
चन्दन स्वीकारो ।।
कृपया अपना लो ।
ओ ! जान हमारी ।
पहचान हमारी ।।
अक्षत स्वीकारो ।।
तिय रतन थमा दो ।
माहन वधु दूल्हे ।
सावन ऋतु झूले ।।
पहुपन स्वीकारो ।।
सौभाग्य जगा दो ।
कलि काल गुपाला ।
उर-भाल-विशाला ।।
व्यंजन स्वीकारो ।।
चरनन निवसा लो ।
सिर्फ इक रोशनी ।
दृग दया दो सनी ।।
दीवा स्वीकरो ।
चल तीर्थ बना लो ।
नैय्या खेवैय्या ।
ग्रीषम तरु छैय्या ।।
सुगंध स्वीकारो ।।
सु-मरण सिखला दो ।
सुबहो की लाली ।
शुभ अहो दिवाली ।।
ऋतु फल स्वीकारो ।
आदर्श दिखा दो ।
इक शरण्य शरणा ।
ओ ! तारण तरणा ।।
छोटे बाबा ओ !
वसु द्रव स्वीकारो ।।
करुणा बरसा दो ।
छोटे बाबा ओ ।।अर्घं ।।
(६)
हैं मासूमों की जान ।
है मामूली न ज्ञान ।।
इक शाने-हिंदुस्तान ।
प्रति-कृति गुरु ज्ञान महान ।
हथकरघा इनकी देन ।
प्रतिभा-थलि इनकी देन ।
गौशाला इनकी देन ।
अनुशासन इनकी देन ।
भाग्योदय इनकी देन ।
सिद्धोदय इनकी देन ।
सर्वोदय इनकी देन ।
पूर्णायु इनकी देन ।
मूकमाटी इनकी देन ।
पैगामे अमनो चैन ।।
इक शाने-हिंदुस्तान ।
प्रति कृति गुरु ज्ञान महान ।।अर्घं ।।
(७)
होता पलक भी,
झलक तेरी पाना ।
खुशी का मेरी,
न रहता ठिकाना ।
छाँव ‘तर’ सर और छाते ।
सदा मिलते मुस्कुराते ।।
मान इनको कहाँ छूता ।
ज्ञान इनका है अनूठा ।।
लोभ से ये हैं अछूते ।
आसमां बस यही छूते ।।
नेह माया गया है खो ।
देह हैं क्या ? जरा देखो ।।
नहीं चुगली वैन चखते ।
रैन पिछली शैन करते ।।
दीन पे ना कभी हँसते ।
मीन से ना कभी फँसते ।।
काम की सब बात करते ।
दाम की कब बात करते ।।
जीत पा लें, फेर चाबी ।
और ना हाजिर जवाबी ।।
पिछि कमण्डल हाथ इनके ।
तिय न मण्डल साथ इनके ।।
अर्घ लेके शरण आया ।
रहें यूँ ही छत्र छाया ।। अर्घं।।
(८)
जिन्हें निरखने दृग् तरसें सब की ।
चलती फिरती जो मूरत रब की ।।
गुरु विद्या हम भक्तों के भगवन् ।
उलझी, दें कृपया सुलझा उलझन ।।
चल चरखा पा रहा छत्र छाया ।
हत करघा कर नव जीवन आया ।।
बन आदर्श रही पढ़ बालाएँ ।
विरच रही इतिहास गुशालाएँ ।।
राज करे दिल आज मूकमाटी ।
उठा पा रही सिर ऋषि परिपाटी ।।
नहीं पलायन कर अब रहे युवा ।
पाहन जिन-गृह ने लो गगन छुवा ।।
जुवाँ जुवाँ है जुवाँ हिन्दी थिरके ।
स्वाद पूरि मैत्री भेंटे घर के ।।
भाग्योदय है बूटी संजीवन ।
सिद्धोदय लाठी-सम अंतिम क्षण ।।
प्रतिभा-मण्डल भू-मण्डल तारा ।
छुये आसमाँ शान्ति दुग्ध धारा ।।
अनुशासन सा मोती ना सागर ।
धन्य प्रशासन शासन पथ पाकर ।।
कृषि जैविक आ गई सुर्खियों में ।
अब बेजुवाँ न आयें दुखियों में ।।
गुरु हम भक्तों के भगवन् ।
स्वीकारें सब-द्रव लाये चरणन ।।अर्घं ।।
*महा-अर्घ*
हाई-को ?
झरते आँखों से बोल ।
रिश्ता गुरु शिष्य अमोल ।।
मति हंसा-सी पाने आये,
जल के कलशा लाये ।
मति चन्दन सी पाने आये,
घट-चन्दन लाये ।
मति दरख्त सी पाने आये,
थाल-अक्षत लाये ।
मति कच्छप सी पाने आये,
थाल पहुप लाये ।
मति बेंत सी पाने आये,
गो घृत नैवेद्य लाये ।
मति नदिया सी पाने आये,
घृत का दिया लाये ।
मति चन्दर सी पाने आये,
मति कोकिल सी पाने आये,
मति अर्क सी पाने आये ।।अर्घ्यं।।
।। जयमाला ।।
हाई-को ?
आप का निरा…कुल है ।
और कौन निराकुल है ।।
सबसे प्यारे, जग से न्यारे,
छोटे बाबा हैं ।
तारण-हारे, पालन-हारे,
छोटे बाबा हैं ॥
धन्य किया माँ श्री-मति पिता,
मलप्पा तारे हैं ।
श्रमण देश-भूषण गुरु ज्ञान सिन्धु,
सुत प्यारे हैं ॥
जग उजियारे, सजग अहा’ रे,
छोटे बाबा हैं ।
पीछे छूटा शतक श्रमण,
निर्ग्रन्थ किये इनने ।
नेक अर्जिका नेक-दिल ‘दिये’,
जला दिये इनने ॥
शरण सहारे, तरण किनारे,
छोटे बाबा हैं ।
प्रतिभा-मण्डल, प्रतिभा-संस्थलि,
लखते ही बनती ।
हत-करघों की लगा न सकते,
हाथों पे गिनती ॥
भाग-सितारे, फाग-नजारे,
छोटे बाबा हैं ।
शान्ति दुग्ध धारा है अनुपम,
क्या उसका कहना ।
गो-शाला भाग्योदय धर्म-
अहिंसा, का गहना ॥
कीरत-द्वारे, तीरथ-सारे,
छोटे बाबा हैं ।
बन सर्वोदय तीर्थ रहा,
असहायन वैशाखी ।
तीर्थ दयोदय के गवाक्ष से,
परम दया झाँकी ॥
दीप्त-सितारे, दिव्य-नजारे,
कूट सहस्र जिनालय जिनकी,
जन्नत में चर्चा ।
जिन मत दूर मूकमाटी की,
हर मत में अर्चा ॥
सौख्य-पिटारे, सौम्य अहा ‘रे,
छोटे बाबा है ।
आश्रम ब्राह्मी सुन्दरी से,
इनका गहरा नाता ।
संस्था-नेमावर-समाधि गाये,
गौरव गाथा ॥
सत्सँग द्वारे, मंगल सारे,
छोटे बाबा हैं
पूरी मैत्री के क्या कहने,
चर्चे गली गली ।
अनुशासन वो खुशबू फीकी,
लगती खिली कली ॥
खुदा हमारे, सुधा अहा ‘रे,
छोटे बाबा है
बने इण्डिया भा…रत, रखी-
सँभाल बाग डोरी ।
गुरुकुल इनके आ हैं लोग,
रहे विदेश छोड़ी ॥
खेवन हारे, ‘सेवन तारे’
छोटे बाबा है ।
हवा पश्चिमी देख प्रतिक्षा,
प्रतिभा रुख बदले ।
खड़ी नशा-बन्दी भी अपना,
ऊँचा सा कद ले ॥
सावन न्यारे, छाँव नजारे,
छोटे बाबा हैं ।
जैविक-कृषि कृपा पा इनकी,
जुगुनु सी चमके ।
हिन्दी बन भारत माँ माथे,
की बिन्दी दमके ॥
शगुन पिटारे, सद्-गुण द्वारे,
छोटे बाबा है ।
बूचड़ खाने देख आँख,
इनकी थर-थर काँपे ।
माल विदेशी गृह उद्योगन,
देख राह नापें ॥
निरीह न्यारे, सींह अहा’रे,
छोटे बाबा है ।
तातो क्यों रोता कविताओं,
के इक प्रस्तोता ।
छन्द हाईकू इन्हें न पाता,
तो रहता रोता ॥
कवि-जग-न्यारे, छवि भगवाँ ‘रे,
छोटे बाबा है ।
और और क्या कहे पार,
उपकार न आता है ।
छोर-क्षितिज आते-आते भी,
कब आ पाता है ॥
शरण सहाई सिर्फ हमें,
इसलिये मौन स्वामी ।
एक नहीं, जो हुई नेक वो,
होय गौण खामी ॥
।।जयमाला पूर्णार्घ्यं ।।
==दोहा==
गुरुवर का गुण गावना,
कहाँ सरल सा काम ।
बड़े-बड़े विद्वान भी,
सुर-गुरु से नाकाम ॥
( पुष्पांजलि क्षिपामि )
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
दोहा-
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
बनी रहे यूँ ही कृपा,
सिर ‘सहजो’ निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
=आरती=
झिलमिल झिलमिल दीप जगाओ,
करो आरती आओ ।
सन्त देवता इस धरती के,
श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ।।
नरक पतन भयभीत चल पड़े ।
परिषह जय कर प्रीत चल पड़े ।।
पट उतार, झटपट उखाड़ लट,
वन, बन नम्र विनीत चल पड़े ।।
सन्त तीर्थ चल, तीर्थंकर कल,
चरणन अश्रु ढुराओ ।
सन्त देवता इस धरती के,
श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ।।१।।
तपे सूर पर्वत चढ़ ठाड़े ।
गुजरी निशि चौराहे जाड़े ।।
देख पौन, बिजुरी, घन गर्जन,
तरु-तल आ वज्रासन माड़े ।।
सन्त कण्ठ मन्दिर मां सरसुति,
आठों अंग नवाओ ।।
सन्त देवता इस धरती के,
श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ।।२।।
कर मल पटल सिंगार चले हैं ।
ब्याहन सिरपुर नार चले हैं ।।
झुलस फसल कर्मन हो चौपट,
ले कुछ बनक तुसार चले हैं ।।
सन्त हंस अध्यात्म सरोवर,
सांची लगन लगाओ ।।
सन्त देवता इस धरती के,
श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ।।३।।
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