परम पूज्य १०८ मुनिश्री निराकुलसागर महाराजजी द्वारा रचित
चौरासी लाख योनि
परिभ्रमण निवारण विधान
पूजन
आओ ‘री आओ,
सखि ! आओ ‘री आओ ।
पूजन सिद्ध अनन्त रचाओ ।।
मैना सुन्दरि पूज रचाई ।
काया पति कंचन सी पाई ।।
कर्म निधत्त-निकाच नशाओ ।
पूजन सिद्ध अनन्त रचाओ ।।
आओ ‘री आओ,
सखि ! आओ ‘री आओ ।।
ॐ ह्रीं चतु-रशीति-लक्ष-योनि- परिभ्रमण विनाशक श्री सिद्ध परमेष्ठिन् !
अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं ।
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं ।
अत्र मम सन्निहितो
भव भव वषट् सन्निधीकरणं ।
हिंसा से मोड़ा मुंह अपना ।
सिद्ध शिला अब रहा न सपना ।।
गागर जल गंगा भर लाओ ।
पूजन सिद्ध अनन्त रचाओ ।।
आओ ‘री आओ,
सखि ! आओ ‘री आओ ।।
ॐ ह्रीं चतु-रशीति-लक्ष-योनि-
परिभ्रमण-विनाशनाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
वचन सिद्ध ! धन, झूठ न बोला ।
मोक्ष महल दरवाजा खोला ।।
घिस चन्दन मलयागिर लाओ ।
पूजन सिद्ध अनन्त रचाओ ।।
आओ ‘री आओ,
सखि ! आओ ‘री आओ ।।
ॐ ह्रीं चतु-रशीति-लक्ष-योनि-
परिभ्रमण-विनाशनाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।
करे न मन, ‘के कर लूॅं चोरी ।
रीझ चली लो शिवपुर गोरी ।।
दाने साबुत चाउर लाओ ।
पूजन सिद्ध अनन्त रचाओ ।।
आओ ‘री आओ,
सखि ! आओ ‘री आओ ।।
ॐ ह्रीं चतु-रशीति-लक्ष-योनि-
परिभ्रमण-विनाशनाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।
टिका रखी नासा पे आंखें ।
सुख निर्बाध अनवरत चाखें ।।
सुरभित पुष्प बाग-सुर लाओ ।
पूजन सिद्ध अनन्त रचाओ ।।
आओ ‘री आओ,
सखि ! आओ ‘री आओ ।।
ॐ ह्रीं चतु-रशीति-लक्ष-योनि-
परिभ्रमण-विनाशनाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं
निर्वपामीति स्वाहा ।
रखा न परिग्रह, मूर्च्छा त्यागी ।
उठे, जा लगे शिव बड़भागी ।।
गो-घृत व्यंजन पातर लाओ ।
पूजन सिद्ध अनन्त रचाओ ।।
आओ ‘री आओ,
सखि ! आओ ‘री आओ ।।
ॐ ह्रीं चतु-रशीति-लक्ष-योनि-
परिभ्रमण-विनाशनाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं
निर्वपामीति स्वाहा ।
पा निमित्त भी क्रोध न कीना ।
कर्मों से वैभव निज छीना ।।
मनहर जोत जगाकर लाओ ।
पूजन सिद्ध अनन्त रचाओ ।।
आओ ‘री आओ,
सखि ! आओ ‘री आओ ।।
ॐ ह्रीं चतु-रशीति-लक्ष-योनि-
परिभ्रमण-विनाशनाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
कहाँ मान को मान दिया है ।
युगपत् तिहुजग जान लिया है ।।
अर कस्तूर चूर कर लाओ ।
पूजन सिद्ध अनन्त रचाओ ।।
आओ ‘री आओ,
सखि ! आओ ‘री आओ ।।
ॐ ह्रीं चतु-रशीति-लक्ष-योनि-
परिभ्रमण-विनाशनाय श्री सिद्ध पमेष्ठिने अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
डोरे डाल न पाई माया ।
मंजिल आई, कदम बढ़ाया ।।
ऋत-ऋत के मीठे फल लाओ ।
पूजन सिद्ध अनन्त रचाओ ।।
आओ ‘री आओ,
सखि ! आओ ‘री आओ ।।
ॐ ह्रीं चतु-रशीति-लक्ष-योनि-
परिभ्रमण-विनाशनाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
झांसे लालच लोभ न आए ।
सौख्य निराकुल पा हर्षाये ।।
जल चंदन अक्षत गुल लाओ ।
पूजन सिद्ध अनन्त रचाओ ।।
आओ ‘री आओ,
सखि ! आओ ‘री आओ ।।
ॐ ह्रीं चतु-रशीति-लक्ष-योनि-
परिभ्रमण-विनाशनाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
*जयमाला*
दोहा
काल भरोसे बैठ के,
नैया निज मंझधार ।
पुरुषारथ को मान दे,
साथी अपने पार ।।
‘जय जयकार, जय जयकार’
योनि लाख चौरासी पार ।
सिद्ध-शिला का खोला द्वार ॥
मत-सन्मत सम्मत अविरोध ।
माँ हम सबकी गोद निगोद ॥
धन ! पा सुकुल जैन परवार ।
सिद्ध-शिला का खोला द्वार ॥
‘जय जयकार, जय जयकार’
दर्शन व्रत सामयिक सयुक्त ।
प्रोषध, सचित ‘त्याग’ निश-भुक्त ॥
ब्रह्मा-रंभ नुमत परित्याग ।
संग विगत उद्दिष्ट विराग ॥
प्रतिमा पाल श्रमण-व्रत धार ।
सिद्ध-शिला का खोला द्वार ॥
‘जय जयकार, जय जयकार’
समिति ‘पञ्च’ व्रत, इन्द्रिय-रोध ।
आवश्यक षट्, अचेल, लोच ॥
न्हवन, दन्तवन बिन क्षित-शैन ।
थित-इक ‘भोजन’ वर्जित रैन ।।
पाल श्रमण-व्रत बिन अतिचार ।
सिद्ध-शिला का खोला द्वार ॥
‘जय जयकार, जय जयकार’
घात दर्श ‘अर’ दर्शनवान ।
घात आवरण-ज्ञान सुजान ॥
हन अन्तराय, वीर्य अनन्त ।
मोह विघात, नन्त सुख वन्त ॥
सिध-रिध, गुण अनन्त इस बार ।
सिद्ध-शिला का खोला द्वार ॥
‘जय जयकार, जय जयकार’
सम्यक् दर्शन, सम्यक ज्ञान ।
अवगाहन, अर वीर्य विधान ॥
सूक्ष्म एक गुण अव्याबाध ।
सिद्ध अगुरु-लघु नाम उपाध ॥
ऋज-गत, अर इक समय संहार ।
सिद्ध-शिला का खोला द्वार ॥
‘जय जयकार, जय जयकार’
ॐ ह्रीं चतु-रशीति-लक्ष-योनि
परिभ्रमण-विनाशनाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने
जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
‘दोहा’
रिझा सहजता जा बसे,
‘सहज-निराकुल’ थान ।
भूत भविष्यत वर्तमाँ,
जयतु सिद्ध भगवान् ॥
*नित्य निगोद*
एक श्वास में अठ दश बार ।
जनम-मरण दुख सहा अपार ॥
विथा आपसे छुपी न स्वाम ।
तुम त्रिभुवन इक अन्तर्याम ॥
मेंटो ‘नित्य-निगोद’ कलेश ।
जा पहुँचे हन-जोन स्वदेश ॥
अभूत-पूरब जोन समृद्ध ।
भूत वर्तमाँ भावी सिद्ध ॥
ॐ ह्रीं नित्य-निगोद-जीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्रीअर्हत्परमेष्ठिने नमः जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
हा ! परिणाम रखें काले ।
एक मरे, सब मर चाले ॥
छुपा आपसे क्या स्वामी ।
हो ही तुम अन्तर्यामी ।
मेंटो ‘नित-निगोद’ पीड़ा ।
सर तुम जग-रक्षक बीड़ा ॥
अहो ! सिद्ध सब अनगिनती ।
और न बस इतनी विनती ॥
ॐ ह्रीं नित्य-निगोद-जीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
लगा मरना जीना ।
चैन पल भर भी ना ॥
छुपाना क्या स्वामी ।
आप अर्न्तयामी ॥
नित् निगोदन बाधा ।
स्वप्न मुक्तिन राधा ॥
अरज मेरी सुन लो ।
मुझे अपना चुन लो ॥
ॐ ह्रीं नित्य-निगोद-जीवानां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
हिस्से सिर्फ इक पर्याय ।
कोल्हू बैल संज्ञा पाय ॥
तुमसे क्या छुपा स्वामी ।
अन्तर्याम तुम नामी ॥
मेंटो जन्म नित्य-निगोद ।
सविनय एक बस अनुरोध ॥
कृपया लो विहर खामी ।
कर लो अबकि शिवगामी ॥
ॐ ह्रीं नित्य-निगोद-जीवानां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
हाय पूरब पाप ।
मरण-जीवन हाँप ॥
क्या सुनानी विथा ।
सब कुछ तुम्हें पता ॥
फाड़ छप्पर गोद ।
जन्म नित्य-निगोद ॥
मुझको लो अपना ।
न और मो सपना ॥
ॐ ह्रीं नित्य-निगोद-जीवानां पंचम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
समाँ काला-पानी ।
भाग आनी-जानी ॥
पता ही सब तुमको ।
एक सर्वग तुम हो ॥
नित-निगोदन माया ।
शरण तेरी आया ॥
पास में रख लो ना ।
‘खास मैं’ लिख लो ना ॥
ॐ ह्रीं नित्य-निगोद-जीवानां षष्ठ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
जनमना, जनम ना ।
था दुख हा ! कम ना ॥
क्या कहना स्वामी ।
तुम अन्तर्जामी ॥
नित-निगोद झोली ।
मची खून होली ॥
सुकून दीवाली ।
हो, वर दो खाली ॥
ॐ ह्रीं नित्य-निगोद-जीवानां सप्तम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
*इतर निगोद*
चने भड़ भूँजे के जैसे ।
थे बड़ी मुश्किल से निकसे ॥
धूम-फिर के हा ! हाय ! वहीं ।
पीर इतनी ना जाय कही ॥
छुपाना क्या तुमसे स्वामी ।
जगत इक तुम अन्तर्यामी ॥
इतर भव निगोद अभिलेखा ।
खींच दो अमृत-स्रोत रेखा ॥
ॐ ह्रीं इतर-निगोद-जीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
मील पत्थर सिरहाना ।
मिले क्यों मुझे ठिकाना ॥
घूम फिर लौट चला हूँ ।
पार ‘अर’, मैं पिछड़ा हूँ ॥
पता सब तुमको स्वामी ।
नाम तुम अन्तर्जामी ॥
निगोदन-इतर रिझाये ।
करो कुछ मुँह की खाये ॥
ॐ ह्रीं इतर-निगोद-जीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
पाप पोटरी ।
काल कोठरी ॥
मृत्यु, जिन्दगी ।
दुख झड़ी लगी ॥
तुम्हें सब पता ।
क्यूँ रहा बता ॥
इतर-निगोदा ।
कहे अलविदा ॥
ॐ ह्रीं इतर-निगोद-जीवानां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
दिया था हाथों में ।
लग चले बातों में ॥
हाय ! गड्ढा आगे ।
गिर चले, हतभागे ॥
छुपाऊँ क्या स्वामी ।
आप अन्तर्यामी ॥
निगोदर इतराया ।
हटक दो, जिनराया ॥
ॐ ह्रीं इतर-निगोद-जीवानां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
हाय ! पंख लागे पुन के ।
लाभ भला क्या सिर धुन के ॥
गोद निगोद पुनः हिस्से ।
गलती स्वयं कहूँ किससे ॥
तुम्हें जानकारी सारी ।
अन्तर्याम कीर्त-धारी ॥
इतर-निगोद पड़ा झोरी ।
चाह ब्याहना शिव-गोरी ॥
ॐ ह्रीं इतर-निगोद-जीवानां पंचम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
पुण्य चुक चला ।
पाप फल मिला ॥
हा ! गया छला ।
पैर दल-दला ॥
सभी आपको ।
बात ज्ञात भो ॥
इतर-निगोदन ।
पाप विमोचन ॥
हेत वन्दना ।
केत जितमना ॥
ॐ ह्रीं इतर-निगोद-जीवानां षष्ठ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
सुख, याद शेष ।
दुख बाद, क्लेश ॥
जुग आँख नीर ।
अब हाथ पीर ॥
क्या छुपी बात ।
सब तुम्हें ज्ञात ॥
इतरन-निगोद ।
दो भेंट बोध ॥
ॐ ह्रीं इतर-निगोद-जीवानां सप्तम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
*पृथ्वी कायिक*
हित ‘मण-सुवरण’ योग ।
गये भेदते लोग ॥
छैनी लिये कराल ।
पैनी लिये कुदाल ॥
जानो बात तमाम ।
हो तुम अन्तर्याम ॥
काय-पृथ्वि अवतार ।
दो ‘सहजो’ अब तार ॥
ॐ ह्रीं पृथ्वी-कायिक-जीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
क्षितिज छोर हा ! माया ।
पृथु पृथ्वी कहलाया ॥
पाँच ग्राम हित भाई ।
भाई हो चली लड़ाई ॥
क्या ज्ञात नहीं तुम को ।
अन्तर्यामी तुम हो ॥
भव लगा हाथ धरणी ।
मेटों करणी-भरणी ॥
ॐ ह्रीं पृथ्वी-कायिक-जीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
हाय परती ।
बना धरती ॥
भौन लेखा ।
कौन देखा ॥
दृष्टि नेही ।
कष्ट गेही ॥
ज्ञात तुमको ।
ज्ञातृ तुम हो ॥
जनम धरणी ।
करम भरणी ॥
मोर मेंटो ।
दोर भेंटो ॥
निराकुल जो I
निरा…कुल हो ॥
ॐ ह्रीं पृथ्वी-कायिक-जीवानां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
फल करनी भरनी ।
भव हिस्से धरणी ॥
कहलाऊँ बस माँ ।
भार बना हूँ हा ॥
क्या लूँ छुपा कहो ।
अन्तर्याम अहो ॥
झरती कण्ठ सुधा ।
भव दो वसु-वसुधा ॥
ॐ ह्रीं पृथ्वी-कायिक-जीवानां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
नाम मिल चला क्षमा ।
पे क्षमा, तलक-कहाँ ॥
जर्रा न लजा रहे ।
लोग अत्त ढ़ा रहे ॥
ज्ञात बात आप को ।
ज्ञातृ-नाथ आप हो ॥
घुला मिला लो मुझे ।
भक्त बना लो मुझे ॥
ॐ ह्रीं पृथ्वी-कायिक-जीवानां पंचम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
हाय खोदा जाना ।
पैर रौंदा जाना ॥
बन चला भोजन हूँ ।
वन व्यथा रोदन हूँ ॥
क्या छुपाना स्वामी ।
आप अन्तर्यामी ॥
कृपा बरसा दो ना ।
चरण इक दे कोना ॥
ॐ ह्रीं पृथ्वी-कायिक-जीवानां षष्ठ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
वसुधा, वसुन्धरा ।
क्या सच ? प्रश्न खड़ा ॥
प्रशंस-पुल बाँधे ।
जग मतलब साधे ॥
जानो ही सब तुम ।
अन्तर्याम पुरुम् ॥
वन-नन्दन भेंटो ।
भव-बन्धन मेंटो ॥
ॐ ह्रीं पृथ्वी-कायिक-जीवानां सप्तम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
*जल कायिक*
इक कहानी ।
जिन्दगानी ॥
अघ निशानी ।
जन्म पानी ॥
व्यथा गानी ।
विथा, ज्ञानी !
पातृ पाणी ।
करो ध्यानी ॥
ॐ ह्रीं अप्कायिक-जीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
सार्थ नाम पाया ।
किसी ने जलाया ॥
यानी किया गरम ।
पूरब-किया करम ॥
व्यथा जानते तुम ।
विथा, बताना-गम ॥
कर लो मुनि मन-सा ।
और न, बस मंशा ॥
ॐ ह्रीं अप्कायिक-जीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
मन भाव कलिल ।
बन चला सलिल ॥
सुख शून वहाँ ।
दुख दून यहाँ ॥
क्या कहूँ कथा ।
तुम ज्ञातृ-व्यथा ॥
सेवक कर लो ।
सेवा वर दो ॥
ॐ ह्रीं अप्कायिक-जीवानां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
करम फल ।
जनम जल ॥
हवा सुख ।
सिवा दुख ॥
हाथ क्या ?
ज्ञात ना ॥
क्या तुम्हें ।
ध्यॉं हमें ॥
दीजिये ।
लीजिये ।।
शरण में ।
चरण मैं ।।
हूँ खड़ा ।
हूँ कड़ा ।।
करो नम ।
भर शरम ॥
ॐ ह्रीं अप्कायिक-जीवानां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
सब करनी का फल ।
रहते नैन सजल ॥
पानी भव चाखा ।
पानी कब राखा ॥
व्यर्थ गिनूँ खामी ।
तुम अन्तर्यामी ॥
मोक्ष तलक धर दो । जरा कृपा कर दो ॥
ॐ ह्रीं अप्कायिक-जीवानां पंचम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्रीअर्हत्परमेष्ठिने नमः ।
अनगिन दुख, पीड़ा ।
जन-जन जल-क्रीड़ा ॥
छप-छप शिशु सरगम ।
छुप-छुप बस सर गम ॥
जानो तुम गाथा ।
पद-सर्वग नाता ॥
जग त्राता जी ए ।
सुख-साता दीजे ॥
ॐ ह्रीं अप्कायिक-जीवानां षष्ठ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
कोई मीरा ।
हा ! मैं नीरा ॥
द्वेष-भाव छू ।
भेद-भाव क्यूँ ॥
चेरा भी मैं ।
तेरा ही मैं ॥
रख लो चरणा ।
लिख दो शरणा ॥
ॐ ह्रीं अप्कायिक-जीवानां सप्तम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
*अग्नि कायिक*
हतभागी मैं ।
‘वन-आगी’ मैं ॥
जल-जला कहाँ ।
जल, जला रहा ।।
होऊँ गुम-सुम ।
हो सर्वग तुम ॥
जग अनल हरो ।
दृग् सजल करो ॥
ॐ ह्रीं अग्नि-कायिक-जीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
भाग सब कहॉं ‘दिया’ ।
जो मिला जला दिया ॥
छुपा कब कुछ तुमसे ।
ज्ञान-केवल विलसे ॥
पड़ा भव-दव पीछे ।
पाप विरछा सींचे ॥
जाग हित नमन किया ।
भाग कब कहॉं ‘दिया’ ।।
ॐ ह्रीं अग्नि-कायिक-जीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
पापोदय आया ।
आगी भव पाया ॥
जलूँ , अर जलाऊँ ।
दूना दुख पाऊँ ॥
विथा, व्यथा मग में ।
सर्वग तुम जग में ॥
चैनो-मन वंशी ।
भेंटो मत-हंसी ॥
ॐ ह्रीं अग्नि-कायिक-जीवानां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
भाग खोटा ।
दाग, टोटा ॥
करम भरनी ।
जनम अगनी ॥
‘विथा’ दृग् नम ।
सर्वज्ञ तुम ॥
न ठुकराओ ।
मत रुलाओ ॥
ॐ ह्रीं अग्नि-कायिक-जीवानां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
हविभुज कहलाऊँ ।
‘चल-दुम’ मुँह बाऊँ ॥
त्याग, राग मेंटे ।
भोग, रोग भेंटे ॥
समझ कहाँ पाऊँ ।
हविभुज कहलाऊँ ॥
तुम्हें पता ही सब ।
पै मेरा करतब ॥
तोरी-मोरी हर ।
दो ‘धी’-झोरी भर ॥
ॐ ह्रीं अग्नि-कायिक-जीवानां पंचम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
हरि ना लगी लगन ।
भव मिल चला अगन ॥
जलन हाथ आई ।
स्वानुभव विदाई ॥
‘भान’ सुनी तुम को ।
ज्ञान खनी तुम हो ॥
भीतर दृग् तीजीं ।
भेंटो दृग् भींजीं ॥
ॐ ह्रीं अग्नि-कायिक-जीवानां षष्ठ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
बन चाले ।
अंगारे ॥
हहा गरम ।
हस्र करम ॥
कहूँ विथा ।
तुम्हें पता ॥
भो ! विनती ।
हो गिनती ॥
मण-मुक्ता ।
तुम भक्ता ॥
ॐ ह्रीं अग्नि-कायिक-जीवानां सप्तम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
*वायु कायिक*
दुख ही दुख ।
नाम न सुख ॥
भव मारुत ।
कब माँ-रूत ॥
बढ़ चढ़ है ।
पतझड़ है ॥
ज्ञात तुम्हें ।
‘ज्ञातृ’ नमे ॥
जन सारे ।
भुनसारे ॥
साँझ समय ।
सदय-हृदय ॥
जगत् जगत ।
जयत-जयत ॥
ॐ ह्रीं वायु-कायिक-जीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
भव ‘मान’ ।
पवमान ॥
दान-छल ।
मान-फल ॥
‘भान’ तुम ।
ज्ञान द्रुम ॥
द्रुम-‘ज्ञात’ ।
तुम भाँत ॥
आश बस ।
दास ‘यस’ ।।
रिद्ध वन्त ।
सिद्ध नन्त ॥
ॐ ह्रीं वायु-कायिक-जीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
पुण्यवाँ जटायू ।
मैं पापी वायू ॥
रुलाऊँ गुलों को ।
गिराऊँ पुलों को ॥
दीपक लौं फूकूँ ।
धूल आँख झोंकूँ ॥
तुमसे कहाँ छुपा ।
रखना बना कृपा ॥
ॐ ह्रीं वायु-कायिक-जीवानां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
भव आँधी पाया ।
बर्बादी लाया ॥
मकाँ सिर उड़ाये ।
दुकाँ ‘पर’ लगाये ॥
है ही तुम्हें पता ।
फिर भी रहा बता ॥
हेत कृपा वृष्टि ।
समेत सम दृष्टि ॥
ॐ ह्रीं वायु-कायिक-जीवानां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
फूँक जन्म जाता हूँ ।
खूब दुक्ख पाता हूँ ॥
हँसे बाल, मैं रोऊँ ।
गुब्बारे में जो हूँ ॥
तुमसे छुपा कहाँ है ।
तुम सा यहाँ कहाँ है ॥
मदद-पसंद तुम्हीं हो ।
दरद-मन्द तुम ही हो ॥
ॐ ह्रीं वायु-कायिक-जीवानां पंचम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
हवाले ।
घोंसले ॥
तोड़े मैंने ।
जोड़े मैंने ॥
छू हाँप डूब ।
यूँ पाप खूब ॥
क्या तुम छुपा ।
रखना कृपा ॥
ॐ ह्रीं वायु-कायिक-जीवानां षष्ठ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
मुकत सपन ।
मरुत पवन ॥
जनम हाथ ।
करम साथ ॥
आठ सभी ।
ज्ञात सभी ॥
नाथ ! आप ।
ज्ञातृ आप ॥
खुद समान ।
श्रुत प्रधान ॥
कर लो ना ।
दे कोना ॥
पद पावन ।
सद्भावन ॥
मोर यही ।
और नहीं ॥
ॐ ह्रीं वायु-कायिक जीवानां सप्तम-लक्ष-योनि परिभ्रमण- विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
*वनस्पति कायिक*
भव दरख्त ।
बुरा वक्त ॥
हा ! खड़े ।
या पड़े ॥
कौन रक्ष ।
बुरा वक्त ॥
भव दरख्त ।
भव दरख्त ।
भव दरख्त ।
ॐ ह्रीं वनस्पति-कायिक-जीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
नाम बस विरख था ।
काँटों का दस्ता ॥
रिश्ता दिव खोया ।
रस्ता शिव खोया ॥
क्यों कर बता रहा ।
सब कुछ तुम्हें पता ॥
वसुधा कुटुम्ब हो ।
ऐसा कुछ कर दो ॥
ॐ ह्रीं वनस्पति-कायिक जीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
बना ‘गुल’ ।
पना गुल ॥
जिना ओ !
बना लो ॥
दया बुत ।
समाँ खुद ॥
निराकुल ।
निरा… कुल ॥
ॐ ह्रीं वनस्पति-कायिक-जीवानां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
विधना भूल ।
जनमा फूल ॥
पहले शाम ।
काम तमाम ॥
लेते भाप ।
ज्ञानी आप ॥
अपने भाँत ।
करो विधात ॥
ॐ ह्रीं वनस्पति-कायिक जीवानां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
घास बन चला ।
ग्रास बन चला ॥
घने अंधेरे ।
सुबह सबेरे ॥
सब तुम्हें पता ।
पर करूँ खता ॥
कृपा कीजिये ।
छुपा लीजिये ॥
छत्र-छाँव में ।
सिद्ध गाँव में ॥
बुला लीजिये ।
कृपा कीजिये ॥
ॐ ह्रीं वनस्पति-कायिक जीवानां पंचम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
नाम बस वनस्पती ।
नब्ज-नस अधस् मती ॥
सरस्वती न कण्ठ में ।
ऋजु गति निष्कण्ट मैं ।।
क्यूँ लगूँ स्वदेश को ।
छुऊँ राग द्वेष को ।।
बुद्ध तुमसे क्या छुपा ।
बनाय राखना कृपा ।।
ॐ ह्रीं वनस्पति-कायिक जीवानां षष्ठ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
बने बेल ।
जन्म खेल ॥
बेसहार ।
दुख अपार ॥
शरण मात्र ।
चरण नाथ ॥
शश सितार ।
इक तिहार ॥
ॐ ह्रीं वनस्पति-कायिक जीवानां सप्तम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण- विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
लोगों ने कहा सुमन |
सफेद-झूठ, कहाँ मन ॥
और मन तो दूर अरे ।
लगड़े, लूले, अंधरे ।।
गाऊँ कहाँ तक व्यथा ।
तुम बुध सब तुम्हें पता ।।
वर दो चरितम् पालूॅं ।
तन चरमोत्तम पा लूॅं ।।
ॐ ह्रीं वनस्पति-कायिक जीवानां अष्टम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
कहें किससे ।
पाप हिस्से ।।
दिन या रैन ।
खोया चैन ॥
हरि कब भजा ।
हरि-भव, सजा ॥
पता तुम को ।
बुधा तुम हो ॥
हरो बाधा ।
न यूॅं साधा ॥
मोर भगवन् ।
तोर सु-मरण ॥
ॐ ह्रीं वनस्पति-कायिक जीवानां नवम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
बन फसल लहलहाया ।
पर सफल न बन पाया ।।
पास में नयना नहीं ।
पास में वयना नहीं ।।
रसना नहीं पास मैं ।
पास में, करणा नहीं ।।
फासले न हन पाया ।
बन फसल लहलहाया ॥
ॐ ह्रीं वनस्पति-कायिक जीवानां दशम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण- विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
*विकलत्रय जीव*
पुण्य कहें, या पाप ।
लागी त्रस की छाप ।।
लगा चाखना हाथ ।
पर न बन सकी बात ।।
नजदीक गंध होते ।
हा ! हाय ! उड़े तोते ॥
तुमसे क्या छुप पाई ।
तुम सर्वग, सुखदाई ।।
ॐ ह्रीं द्वीन्द्रिय-जीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
पूर्व कृत पुन घना ।
बन चला रेंगना ।।
मिल चली है जुबाँ ।
बस भखा जो छुआ ।।
व्यर्थ गाऊँ किसा ।
सर्वग न आपसा ।।
त्रस बना, तृषा गले ।
चाह बस दिशा मिले ।।
ॐ ह्रीं द्वीन्द्रिय-जीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
पुण्य कहें, या पाप ।
लागी त्रस की छाप ॥
लगा सूँघना हाथ ।
पर न बन सकी बात ।।
नजदीक वर्ण होते ।
हा ! हाय ! उड़े तोते ।।
तुम से क्या छुप पाई ।
तुम सर्वग, सुखदाई ॥
ॐ ह्रीं त्रीन्द्रिय-जीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
नाक पाई ।
राख पाई ।।
लेकिन कहाँ ।
रे…किंग यहाँ ।।
मन-भर छुई ।
मन-भर हुई ।।
भान तुम को ।
‘भान’ तुम हो ।।
अब संभालो |
रँग रँगा लो ।।
भक्ति अपने ।
मुक्ति सपने ।।
ॐ ह्रीं त्रीन्द्रिय-जीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
पुण्य कहें, या पाप |
लागी त्रस की छाप ॥
लगा देखना हाथ ।
पर न बन की बात ।।
नजदीक शब्द होते ।
हा ! हाय ! उड़े तोते ।।
तुम से क्या छुप पार्ई ।
तुम सर्वग, सुखदाई ॥
ॐ ह्रीं चतुरिन्द्रिय-जीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
‘पर’ मिल चले हैं ।
परवश जले हैं ॥
मृग मग बढ़ा हूँ ।
दृग् जुग जुड़ा ज्यूँ ।।
सब पता तुम को ।
ज्ञानवाँ तुम हो ।।
लत-गलत हर लो ।
गफलत विहर लो ।।
ॐ ह्रीं चतुरिन्द्रिय-जीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
*देव*
नाम केवल सुर था ।
सुर न कोई गुर था ॥
मुरझा चला गजरा ।
मुरझा चला मुखड़ा ॥
महिने छह पहले ।
भव में अब अगले ।।
सहना हाय ! दुखड़ा ।
मुरझा चला मुखड़ा ।।
ॐ ह्रीं देवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
झुक झूमा ।
रुक घूमा ॥
वन-चन्दन |
वन नन्दन ॥
साथ तिया ।
हाथ ‘दिया’ ।।
मर्त्य डरा ।
गर्त गिरा ।।
तुम्हें खबर ।
तुम श्रुतधर ।।
नुति अनेक ।
हित विवेक ।।
ॐ ह्रीं देवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
बन चलो घोड़ा हाथी ।
आयु मुश्किल से काटी ।।
हाय ! दुख पराधीनता ।
स्वप्न भी सुख कभी न था ।।
नहीं है पता तुम्हें क्या ।
सर्व-विद् तुम इक लेखा ।।
पिण्ड छूटे कर्मों से ।
नाथ मैं आप भरोसे ॥
ॐ ह्रीं देवानां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
जिन देव सेवा ।
मान कुल देवा ॥
पर न की मन से ।
बँधा कर्मन से ।।
छुपा तुमसे क्या ?
जग आप देखा ।।।
‘धी’वर बना लो ।
शीघ्र अपना लो ।।
ॐ ह्रीं देवानां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
*नारकी*
गुम सुख साता ।
ग़म लग ताॅंता ।।
भव नारक का ।
हिस्से लिक्खा ।।
कुछ छुपता कब ।
तुम जानो सब ।।
अपना लो ना ।
सपना ओ’ ना ॥
ॐ ह्रीं नारकाणां प्रथम-लक्ष योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
नारत ।
स्वारथ ॥
मेंटो ।
भेंटो ॥
भा…रत ।
शाश्वत ।।
वसुधा ।
व-सुधा ।।
ॐ ह्रीं नारकाणां द्वितीय-लक्ष योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
सींग लगा रखता हूँ ।
आँख रँगा रखता हूँ ।।
छेड़ा, फिर न छोड़ा ।
रखूँ विवेक न थोडा ॥
व्यर्थ सुनाऊँ किस्से ।
पूर्ण ज्ञान तुम हिस्से ।।
जोन नारकी मेंटो ।
जैन भारती भेंटो ।।
ॐ ह्रीं नारकाणां तृतीय-लक्ष योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
करनी-भरनी ।
भव वैतरनी ।।
सार्थ नाम हैं ।
‘पीव’ धाम है ।।
खाने माटी ।
आँखिन पाटी ॥
मोहन हाला ।
क्रोध जुवाला ।।
जानो क्या ना ।
आप सुजाना ।।
गिरूँ संभालो ।
मुझे बचा लो ।।
ॐ ह्रीं नारकाणां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
*पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च*
चौ-पाया ।
भव पाया ॥
दुखी बड़ा ।
सुख बिछड़ा ॥
ज्ञाता तुम ।
घाता तम ॥
दिव घर दो ।
शिव कर दो ॥
ॐ ह्रीं पंचेन्द्रिय-तिरश्चां-प्रथम-लक्ष- योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
पर्याय पाय पशु ई ।
आ गले पड़ी रसरी ॥
भूखे-प्यासे रहना ।
सर्दी-गर्मी सहना ।।
क्या छुपा ? छुपा लूँ मैं ।
है केवल ज्ञान तुम्हें ।।
पाश्पत संज्ञा धारी ।
पशु-गत मेंटो म्हारी ।।
ॐ ही पंचेन्द्रिय-तिरश्चां-द्वितीय-लक्ष- योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
पशु ।
शिशु ।।
आँसु ।
आशु-तोष ।।
दोष हरो ।
करो ।।
शिशु ।
कछु ।।
ॐ ह्रीं पंचेन्द्रिय-तिरश्चां-तृतीय-लक्ष योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
जानवर संज्ञा अकेली ।
न कोई कीमत जान की ।।
काम के तब तक काम लिया ।
कत्ल-खाने फिर नाम किया ।।
खबर किसकी न तुम्हें स्वामी ।
नाम ही तुम अन्तर्यामी ।।
सहूँ कब तक दुख तिर्यंची ।
उड़ा लो पिंजरे से पंछी ।।
ॐ ह्रीं पंचेन्द्रिय-तिरश्चां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
मॉं ‘नव’ पाया ।
मानव काया ।।
भाया ‘सोना’ ।
माँ देखो ना ।।
रख लो ना माँ ।
दे कोना हॉं ।।
माहन नैय्या ।
पॉंवन छैय्या ।।
ॐ ह्रीं मनुष्याणां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
वन-मानुष ।
बन मानुष ॥
छल कुंकुम ।
करुणा गुम ।।
‘भोदू’ मैं ।
ज्ञान तुम्हें ॥
करुणा बुत ।
कर लो बुध ।।
ॐ ह्रीं मनुष्याणां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
मान ‘सी. आई. डी’ ।
मानसी ‘आई. डी’ ।।
बाद एक और अगली ।
चखी कहाँ, भखी चुगली ।।
चुक चला यूँ हीरा जनम |
हा ! आश भव तीरा खतम ।।
बुध तुम, तुम्हें हैं ही खबर ।
लख लो उठाकर इक नजर ।।
ॐ ह्रीं मनुष्याणां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
क्षय मानो ।
वय मानौ ।।
सुख वाली ।
खुश हाली ।।
अन्तक जय ।
अन्त-समय ॥
हित सु’मरण ।
सतत नमन ।।
ॐ ह्रीं मनुष्याणां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
बिन्ना जनम |
बिना ‘ना’ यम ।
यानि समान ।।
मकॉं मशान ॥
समझा कहाँ ।
उलझा अतः ॥
पता तुमको |
पताका ओ ।।
ज्ञान एका ।
ज्ञान-रेखा ॥
खींच ही दो ।
जीत ‘कि हो ।।
ॐ ह्रीं मनुष्याणां पंचम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
हा ! धागा पाने ।
तोड़े मण दाने ॥
विरला भव मानौ ।
विरथा भवि ! मानो ॥
कहानी पता तुम्हें ।
कहा ही बुधा तुम्हें ॥
उडा़ऊॅं काग न मण ।
भिंटाऊँ जाग नमन ।।
ॐ ह्रीं मनुष्याणां षष्ठ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
मा-रुष ।
मा-तुष ॥
शिव-भूत |
शिव-कूट ॥
पर हम |
जड़ रम ॥
गरब छुये ।
कब हुये ।।
मरहम |
मर…हम ॥
ॐ ह्रीं मनुष्याणां सप्तम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
भव मानस पाया ।
बगुला जश गाया ॥
नम ना दृग् ज्योती ।
कम ना मण-मोती ॥
हाय ! न चुग पाया ।
काल धमक आया ॥
ज्ञात तुम्हें स्वामी |
ओ !अन्तर्यामी ।।
ॐ ह्रीं मनुष्याणां अष्टम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
रस हिंसा में लीना ।
मैंने कौन पाप कीना ॥
मुड़ी तिजोड़ी ।
कीनी चोरी ॥
दृग् जोड़ी, की
तोरी मोरी ।।
भव मानव नश दीना ।
मैंने कौन पाप ना कीना ।।
ॐ ह्रीं मनुष्याणां नवम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
मद हावी सारे ।
किल्विष जयकारे ॥
ज्ञान न तप सिद्धि ।
जाति न कुल रिद्धि ॥
पूजा न प्रतिष्ठा ।
बल, छव न विशिष्टा ॥
पर सर उठा चलूॅं ।
वर दो सुराह लूँ ।।
ॐ ह्रीं मनुष्याणां दशम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
आँख रखी लाली ।
नाक रखी भारी ॥
मायाचारी हा !
साख रखी काली ।।
पाप बीज बोया ।
‘आप’ बीच रोया ।।
बनकर सोया हा !
भव मानव खोया ।।
ॐ ह्रीं मनुष्याणां एकादश-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
आदमी बना ।
ना दमी बना ॥
इक दन्त पुन: ।
ना ग्रन्थ सुना ।।
क्या अनजानी ।
तुम संज्ञानी ॥
पाॅंवन रख लो ।।
पावन कर दो ।।
ॐ ह्रीं मनुष्याणां द्वादश-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
बालपन साथ माटी ।
जवॉंपन साथ साथी ।।
हो चला हवाले हवा ।
वृद्धपन साथ लाठी ।।
पाटी न खुली अंखियन ।
माटी न घुली अंखियन ।।
विद हो, बुध ओ ! रख लो ।
सृष्टि तु झली अंखियन ।।
ॐ ह्रीं मनुष्याणां त्रयोदश-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
हा ! इन सा बना ।
या उन सा बना ।।
हा ! हन्त ! हहा !
ना इंसा बना ।।
तुम जानो सब ।
पत राखो अब ।।
भाया सु-मरण ।
आया चरणन ।।
ॐ ह्रीं मनुष्याणां चतु्दश-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-
विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
दोहा*
मौन रखा ,या आपने,
की पर निन्दा गौण ।
दो बतला कैसे हनी,
लख चौरासी जोन ।।
वृषभ जी कहो ।
अजित जी अहो ।।
मटकी न फँसाया हाथ ।
मकरी न निभाया साथ ॥
जिन संभव ओ !
अभिनन्द कहो ।
श्रीफल न बनाया माथ ॥
सुमत जी कहो ।
पदम जी अहो !
नाहक न रबर घोरी ।
लग पाँत न मृग दौड़ी ।।
जिन सुपार्श्व ओ !
प्रभ चन्द्र कहो ।
मन स्लेट रखी कोरी ।।
सुविध जी कहो ।
जिन शीतल ओ !
शश लाञ्छन न मान दिया ।
शश आँखन न कान किया ॥
श्रेय जी कहो ।
पूज्य जी अहो !
विकथावन न ध्यान दिया ।।
विमल जी कहो |
नन्त जी अहो !
न काँचुली बिष भी छोड़ा |
न पाँखुड़ी रस भी छोड़ा ।।
धर्म जी कहो |
शान्ति जी अहो !
न पाप ही, जश भी छोड़ा ॥
कुन्थ जी कहो ।
नाथ अर अहो !
जी नेका विरथ समझा |
जीने का अरथ समझा ।।
मल्लि जी कहो |
मुनि-सुव्रत ओ !
‘सीने’ का अरथ समझा ।॥
नमी जी कहो ।
नेम जी अहो !
सहजो निरा-कुल रहे |
सहजो निराकुल रहे |।
पार्श्व जी कहो |
महावीर ओ !
सह जोनि-‘रा’-कुल रहे |।
तीर्थक कहो ।
नन्त सिद्ध ओ !
दोहा*
मौन भी रखा आपने,
की पर निन्दा गौण ।
सहज-निराकुल यूँ हनी,
लख चौरासी जोन ।।
ॐ ह्रीं चतु-रशीति-लक्षयोनि
परिभ्रमण-विनाशनाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने
जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
*आरती*
पार संसार उतारती ।
आरती आरती आरती ।।
अनगिनत सिद्धों की ।
बुद्ध अरिहन्तों की ।।
सन्त निर्ग्रन्थों की ।
आरती आरती आरती ।।
पार संसार उतारती ।
आरती आरती आरती ।।
बल पुरुषार्थ विनाशीं ।
जोन लख चौरासीं ॥
आद बीजाक्षर राशी ।
अतः बढ़ कावा-काशी ।
पीर संसार निवारती ।
आरती आरती आरती ।।
पार संसार उतारती ।
आरती आरती आरती ।।
उछल कर गोद निगोद ।
पार थावर, मन रोध ।।
लोभ, मद, माया, क्रोध ।
छोड़ कर, वैर-विरोध ।।
पीर संसार निवारती ।
आरती आरती आरती ।।
पार संसार उतारती ।
आरती आरती आरती ।।
उछल कर गोद निगोद ।
पार थावर, मन रोध ।।
पाप हिंसादिक पोट ।
छोड़, तज अन्दर खोट ।।
पीर संसार निवारती ।
आरती आरती आरती ।।
पार संसार उतारती ।
आरती आरती आरती ।।
उछल कर गोद निगोद ।
पार थावर, मन रोध ।।
नाम, ‘अन’-तराय, गोत्र ।
घात कर,पा संबोध ।।
पीर संसार निवारती ।
आरती आरती आरती ।।
पार संसार उतारती ।
आरती आरती आरती ।।
*मंत्र*
1.ॐ ह्रीं नित्य-निगोद-जीवानां
प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
2. ॐ हीं नित्य-निगोद-जीवानां
द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
3.ॐ ह्रीं नित्य-निगोद-जीवानां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
4.ॐ ह्रीं नित्य-निगोद-जीवानां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
5. ॐ ह्रीं नित्य-निगोद-जीवानां पंचम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
6.ॐ ह्रीं नित्यनिगोदजीवानां षष्ठ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
7.ॐ ह्रीं नित्यनिगोदजीवानां सप्तम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
*इतर निगोद*
8.ॐ ह्रीं इतरनिगोदजीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
9.ॐ ह्रीं इतरनिगोदजीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
10.ॐ ह्रीं इतरनिगोदजीवानां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
11.ॐ ह्रीं इतरनिगोदजीवानां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
12.ॐ ह्रीं इतरनिगोदजीवानां पंचम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
13. ॐ ह्रीं इतरनिगोदजीवानां षष्ठ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
14.ॐ ह्रीं इतरनिगोदजीवानां सप्तम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
*पृथ्वी कायिक*
15.ॐ ह्रीं पृथ्वीकायिकजीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
16. ॐ ह्रीं पृथ्वीकायिकजीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
17. ॐ ह्रीं पृथ्वीकायिकजीवानां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
18. ॐ ह्रीं पृथ्वीकायिकजीवानां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
19. ॐ ह्रीं पृथ्वीकायिकजीवानां पंचम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
20. ॐ ह्रीं पृथ्वीकायिकजीवानां षष्ठ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
21. ॐ ह्रीं पृथ्वीकायिकजीवानां सप्तम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
*जल कायिक*
22. ॐ ह्रीं अप्कायिकजीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
23. ॐ ह्रीं अप्कायिकजीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
24. ॐ ह्रीं अप्कायिकजीवानां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
25. ॐ ह्रीं अप्कायिकजीवानां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
26. ॐ ह्रीं अप्कायिकजीवानां पंचम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
27. ॐ ह्रीं अप्कायिकजीवानां षष्ठ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
28. ॐ ह्रीं अप्कायिकजीवानां सप्तम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
*अग्नि कायिक*
29.ॐ ह्रीं अग्निकायिकजीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
30.ॐ ह्रीं अग्निकायिकजीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
31.ॐ ह्रीं अग्निकायिकजीवानां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
32.ॐ ह्रीं अग्निकायिकजीवानां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
33.ॐ ह्रीं अग्निकायिकजीवानां पंचम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
34.ॐ ह्रीं अग्निकायिकजीवानां षष्ठ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
35.ॐ ह्रीं अग्निकायिकजीवानां सप्तम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
36.ॐ ह्रीं वायुकायिकजीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
37.ॐ ह्रीं वायुकायिकजीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
38.ॐ ह्रीं वायुकायिकजीवानां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
39.ॐ ह्रीं वायुकायिकजीवानां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
40.ॐ ह्रीं वायुकायिकजीवानां पंचम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
41.ॐ ह्रीं वायुकायिकजीवानां षष्ठ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
42.ॐ ह्रीं वायुकायिकजीवानां सप्तम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
43.ॐ ह्रीं वनस्पतिकायिकजीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
44.ॐ ह्रीं वनस्पतिकायिकजीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
45.ॐ ह्रीं वनस्पतिकायिकजीवानां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
46.ॐ ह्रीं वनस्पतिकायिकजीवानां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
47.ॐ ह्रीं वनस्पतिकायिकजीवानां पंचम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
48.ॐ ह्रीं वनस्पतिकायिकजीवानां षष्ठ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
49.ॐ ह्रीं वनस्पतिकायिकजीवानां सप्तम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
50.ॐ ह्रीं वनस्पतिकायिकजीवानां अष्टम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
51.ॐ ह्रीं वनस्पतिकायिकजीवानां नवम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
52.ॐ ह्रीं वनस्पतिकायिकजीवानां दशम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
53.ॐ ह्रीं द्वीन्द्रियजीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
54.ॐ ह्रीं द्वीन्द्रियजीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिनेनमः ।
55.ॐ ह्रीं त्रीन्द्रियजीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
56.ॐ ह्रीं त्रीन्द्रियजीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
57.ॐ ह्रीं चतुरिन्द्रियजीवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
58.ॐ ह्रीं चतुरिन्द्रियजीवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
59.ॐ ह्रीं देवानां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
60.ॐ ह्रीं देवानां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
61.ॐ ह्रीं देवानां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
62.ॐ ह्रीं देवानां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
63.ॐ ह्रीं नारकाणां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
64.ॐ ह्रीं नारकाणां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
65.ॐ ह्रीं नारकाणां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
66.ॐ ह्रीं नारकाणां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
67.ॐ ह्रीं पंचेन्द्रियतिरश्चां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
68.ॐ ही पंचेन्द्रियतिरश्चां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
69.ॐ ह्रीं पंचेन्द्रियतिरश्चां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
70. ॐ ह्रीं पंचेन्द्रियतिरश्चां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
71.ॐ ह्रीं मनुष्याणां प्रथम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः ।
72.ॐ ह्रीं मनुष्याणां द्वितीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
73.ॐ ह्रीं मनुष्याणां तृतीय-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
74.ॐ ह्रीं मनुष्याणां चतुर्थ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
75.ॐ ह्रीं मनुष्याणां पंचम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
76.ॐ ह्रीं मनुष्याणां षष्ठ-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
77.ॐ ह्रीं मनुष्याणां सप्तम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
78.ॐ ह्रीं मनुष्याणां अष्टम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
79.ॐ ह्रीं मनुष्याणां नवम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
80.ॐ ह्रीं मनुष्याणां दशम-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
81.ॐ ह्रीं मनुष्याणां एकादश-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
82.ॐ ह्रीं मनुष्याणां द्वादश-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
83.ॐ ह्रीं मनुष्याणां त्रयोदश-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
84.ॐ ह्रीं मनुष्याणां चतुर्दश-लक्ष-योनि-परिभ्रमण-विनाशकाय
श्री सिद्ध परमेष्ठिने नमः।
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करि
श्रुत(ग्)-ज्ञानज्-ज्वाला
सहस-स्र(प्) प्रज-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत श्री सरस्वति-देव्यै जलादि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।
नुति-प्रनुति…
माँ-सरसुति
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