परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
नवकार विधान
वर्धमान मंत्र
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*पूजन*
जय जय कार, जय जय कार ।
सहज विनीत ।
भवि अगणीत ।
भव जल पार ।
जय नवकार ।
जय जयकार, जय जयकार ।
ॐ ह्रीं श्री पंच परमेष्ठिन् !
अत्र अवतर ! अवतर ! संवौषट् !
इति आह्वाननम्
अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:!
इति स्थापनम्
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् !
इति सन्निधिकरणम्
सागर क्षीर ।
गागर नीर ॥
हित उद्धार ।
लाया द्वार ॥
ॐ ह्रीं श्री पंच परमेष्ठिन्
जन्म-जरा-मृत्यु विनाशनाय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥
चन्दन न्यार ।
कंचन झार ॥
लाया एक ।
हेत विवेक ॥
ॐ ह्रीं श्री पंच परमेष्ठिन्
संसारताप विनाशनाय
चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ॥
मोति समान ।
शालिक धान ॥
हेतु समाध ।
लाया साथ ॥
ॐ ह्रीं श्री पंच परमेष्ठिन्
अक्षयपद प्राप्तये
अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ॥
छव शशि पून ।
दिव्य प्रसून ॥
लिये पिटार |
हित अविकार ॥
ॐ ह्रीं श्री पंच परमेष्ठिन्
कामबाण-विध्वंसनाय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥
रस भरमार |
दिव मन-हार ॥
थाल नवेद ।
दिव-शिव हेत ॥
ॐ ह्रीं श्री पंच परमेष्ठिन्
क्षुधारोग-विनाशनाय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
गो घृत पूर ।
दिया अमूल ॥
हित संबोध ।
बालूँ ज्योत ॥
ॐ ह्रीं श्री पंच परमेष्ठिन्
मोहांधकार विनाशनाय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥
अगर कपूर ।
चन्दन चूर ॥
हट घट धूप ।
हित चिद्रूप ॥
ॐ ह्रीं श्री पंच परमेष्ठिन्
अष्टकर्म-दहनाय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥
फल सिर-मौर ।
श्रीफल और ॥
लाया थाल ।
हित ‘मत-बाल’ ॥
ॐ ह्रीं श्री पंच परमेष्ठिन्
महा मोक्षफल-प्राप्तये
फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥
जल फल आद ।
भेंट परात ॥
नम-तर नैन ।
हित सुख-चैन ॥
ॐ ह्रीं श्री पंच परमेष्ठिन्
अनर्घ्यपद-प्राप्तये
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
जयमाला
दोहा=
न सिर्फ मंगलकार ही,
महामन्त्र नवकार ।
एक अमंगलहार भी,
महा मन्त्र नवकार ॥
णमो अरि-हंता-णम् ।
सिद्धाणं, आ-यरि-याणम् ॥
णमो उवज्झा-याणम् ।
लोए सव्व साहू-णम् ॥
महिमा नवकार निराली ।
झोली मण-मोती वाली ॥
आतम अञ्जन अँधियारी ।
अविनश्वर ज्योती वाली ॥
मैं कहाँ कछू भी जाणं ।
कह सेठ वचन परमाणं ॥
झोली मण-मोती वाली ।
महिमा नवकार निराली ।।
मरणासन नागिन-नागा ।
सुन, पुण्य-सातिशय जागा ॥
भावी गति पञ्चम गामी ।
अध लोक हो चले स्वामी ।
झोली मण-मोती वाली ।
महिमा नवकार निराली ।।
नन्दी एक भोला भाला |
बन चाला राज कुमारा ॥
सुन, अन्त समय रख श्रृदा ॥
अन्तर्-मन लिये विशुद्धा ॥
झोली मण-मोती वाली
महिमा नवकार निराली ।।
सुन, पानी लिये दृगों में ।
जा सेज उठी स्वर्गों मे ॥
जीवन्धर पुण्य निधाना ।
पल अब तब करता श्वाना ॥
झोली मण-मोती वाली ।
महिमा नवकार निराली ।।
दोहा=
महामन्त्र नवकार की,
महिमा अपरम्बार ।
अनगिन बिन पतवार के,
सहज-निराकुल पार ॥
ॐ ह्रीं श्री पंच परमेष्ठिन्
अनर्घ्यपद-प्राप्तये
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
*अरिहन्त परमेष्ठिन् अर्घ*
मृग मग नापी ।
भरता हाँपी ॥
थारी मारी ।
मायाचारी ॥
अर ही करनी ।
अर थी कथनी ।
अँखिया मैली ।
बात विषैली ॥
चुगली खाता ।
मकड़ी नाता ॥
आलस हावी।
हा ! मायावी ॥
हाथ सुमरनी ।
जुवाँ कतरनी ॥
उदर चकारा ।
भू पर भारा ॥
गोरे काले ।
पैसे प्यारे ॥
चंचल काफी ।
मनवा पापी ॥
मावस वाला ।
स्याही काला ॥
हा ! अँधियारा ।
सिर्फ तुम्हारा ।
एक सहारा ॥
जय-जयकारा जयजयकारा ।।
दोहा=
भगवन् श्री अरहन कृपा,
सूरज की सी धूप ।
भेद-भाव बिन पड़ चली,
निर्धन ‘घर-अर’ भूप ॥
ॐ ह्रीं श्री अरिहंत परमेष्ठिन्
अनर्घ्यपद-प्राप्तये
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
*सिद्ध परमेष्ठिन् अर्घ*
श्वास श्वास स्वारध ।
यहाँ सत् नदारद ॥
देखो ना
रंग बदले क्षण में ।
यहाँ पाप मन में ॥
देखो ना
दाब लगा, दाबा ।
यहाँ खूँ-खराबा ॥
देखो ना
यहाँ बिका पानी ।
बिगुल, बगुल ध्यानी ॥
देखो ना
बाहर कुछ अन्दर ।
यहाँ बाँट-बन्दर ॥
देखो ना
अश्रु मगर माछी ।
यहाँ वैर जाती ॥
देखो ना
हित पाई पाई ।
यहाँ लड़ें भाई ॥
देखो ना
माँ-माथे शूनर ।
यहाँ उड़ी चूनर ॥
देखो ना
नशा वय जबाँ में ।
यहाँ विष हवा में ।
देखो ना
अवशेष न सब सपने ।
जा लगे देश अपने ॥
मुझको भी बुला लो ना ।
आसरा एक तेरा ।
तुम सिवा कौन मेरा ॥
जा जहाँ रोऊँ रोना ।
दोहा=
हंस विवेकी बन चलें,
भले कूप मण्डूक ।
सिद्धों की कर वन्दना,
बन्धन हों, दो टूक ॥
ॐ ह्रीं श्री सिद्ध परमेष्ठिन्
अनर्घ्यपद-प्राप्तये
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
*आचार्य परमेष्ठिन् अर्घ*
जल घट कंचन ।
सुरभित चन्दन ।
अक्षत कण-कण ।
गुल वन-नन्दन ।
षट् रस व्यञ्जन ।
कुल दीप रतन ।
कण सुगंध अन ।
फल अपहर मन ।
जल फलाद धन ।
चरणन अर्पण ।
हित पल-सुमरण ।
आचार्य नमन, आचार्य नमन ।
कर पात्री, नगन ।
पद-यात्री, श्रमण |
धारी तीन रतन ।
आचार्य नमन, आचार्य नमन ।
चाहूँ चरण शरण ।
लगी तुमसे लगन ।
दोहा=
कृपा देव आचार्य की,
नदिया की सी धार ।
प्यास बुझाने बढ़ चली,
किये बिना व्यापार ।।
ॐ ह्रीं श्री आचार्य परमेष्ठिन्
अनर्घ्यपद-प्राप्तये
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*उपाध्याय परमेष्ठिन् अर्घ*
माथ सलवट नाहीं ।
आत्म सर अवगाहीं ॥
बला न रुला पाई ।
कला कछुआ भाई ॥
कान के काचे ना ।
अगुँलियन नाँचे ना ॥
नारियल माथा ना ।
नारियन नाता ना ॥
दवा… खाना समझे ।
दबा खा… ना सुलझे ॥
सहज भीतर आये ।
महज ‘ही’ तर आये ॥
कूर्म उन्नत पाँवा ।
जगत् शाश्वत छावा ।
साँझ बनके पहरी ।
साँस भरते गहरी ।
पृष्ठ दिखलाते ना ।
‘पृष्ठ-पल’ खाते ना ॥
भेंट संपुट द्रव्यन ।
हेत समकित सुमरण ॥
नाक रखते नयना ।
आँख गंगा जमना ॥
जिया, फिर बातों में ।
दिया श्रुत हाथों में ॥
उवझाय मुनिगणा ।
वन्दना… वन्दना ।
दोहा=
कृपा देव उवझाय की,
तरुवर की सी छाह |
कब देखे पलकें बिछा,
अपनों की ही राह ॥
ॐ ह्रीं श्री उपाध्याय परमेष्ठिन्
अनर्घ्यपद-प्राप्तये
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
*साधु परमेष्ठिन् अर्घ*
मुनि वे धन्य हैं ।
ज्ञान,ध्यान, तप ।
णमोकार जप ।
जिन के चिन्ह हैं ॥
बीच कमल दल ।
पीछि कमण्डल ।
कूप-धी झरी ।
डूब भी तरी ।
इन्द्रियन विजय ।
दयामय हृदय ।
नैन पनीले ।
वैन सुरीले ।
थिर तरंग मन ।
शील शिरोमण ।
मुख प्रसाद धन ।
गुम प्रमाद क्षण ।
सहज निराकुल ।
पर प्रशंस पुल ।
नाक नजरिया ।
पाक नजरिया ।
मरहम मर हम ।
सर गम सरगम ।
सब कुछ सहना ।
कुछ ना कहना ।
जिन के चिन्ह हैं ॥
मुनि वे धन्य हैं ।
भेंट दिव अरध ।
हेत शिव सुरग ।
मैं भी लाया उन्हें ।
मुनि वे धन्य हैं ।
दोहा=
ताताँ भक्तों का कहे,
साँचा इक गुरु द्वार ।
नाग, नकुल, कपि तर गये,
आज हमारी बार ॥
ॐ ह्रीं श्री साधु परमेष्ठिन्
अनर्घ्यपद-प्राप्तये
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
विधान प्रारंभ
*प्रथम वलय…जय अरिहन्त जय*
ओम् नमः ।
नमो जिना ॥
मोह विगत ।
अरहत पद ॥
रजस विहँस ।
हन्त रहस ॥
नम दृग् द्वय ।
ता-नस दय ॥
नमन नमन ।
मन वच तन ॥१।।
ॐ नमो अरिहंताणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् जय मन ।
नमो अरहन ॥
मोख शिविका ।
अमृत दिव का ॥
रक्षक मन्त्र ।
हरि बासन्त ॥
नन्द प्रसाद ।
तान समाध ॥
नव-निध द्वार ।
मङ्गल कार ॥२।।
ॐ नमो अरिहंताणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् नमो अरहन ।
नरकन-गत पशु हन ॥
मोख हेत सुरगन ।
अरहन इक सुमरण ॥
रटना जय-अरहन ।
हरण-हार उलझन ॥
नमो नमः अरिहन ।
तारण-तरण भुवन ॥
नमस्कार अरहन ।
महिमा अगम धरण ॥३।।
ॐ नमो अरिहंताणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् अरहत भगवन् ।
नमो भगवन् अरहन ॥
मोक्ष देती धुन तुम ।
अरज लेते सुन तुम ॥
रक्त धारा धौरी ।
हवाला मति गौ ‘री ॥
नहीं दूजी शरणा ।
तान छेड़ी करुणा ॥
नरञ्जन जय अञ्जन ।
मनसि-वच-तन वन्दन ॥४।।
ॐ नमो अरिहंताणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् नमो अरिहन्ता ।
नमो नन्त सुख वन्ता ॥
मोख राधिका कन्ता ।
अरिहन्ता बल नन्ता ॥
रत्नत्रय सामन्ता ।
हरि हर बह्म महन्ता ॥
नम-दृग् सभ सद् पन्था ।
तारण-तरण भदन्ता ॥
नन्त ज्ञान, निर्ग्रन्था ।
मनसा प्रनुत अनन्ता ॥५।।
ॐ नमो अरिहंताणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् अरहन ओम् अरहन ।
नमो अरहन, जपो ‘रे मन ॥
मोख दर्शन, मोह निरसन ।
अमृत हर क्षण, जपो ‘रे मन ॥
रत्न वर्षण, दर्श दर्पण ।
हर्ष पर्शन, जपो ‘रे मन ॥
नन्त सुख धन, अन्त सुमरण ।
तान स्वर क्षण, जपो ‘रे मन ॥
नशत ‘अवगुण’ भजत भगवन् ।
महत सिरमण, जपो ‘रे मन ॥६।।
ॐ नमो अरिहंताणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् भगवन् अरहन अरहन ।
नमो अरहन अरहन भगवन् ॥
मोति सीपी ज्योती दीवा ।
अपर ‘जप अरहन’ संजीवा ॥
रहन दे काम और जप मन ।
हरे जन्मातप जप अरहन ॥
न किसने जप अरिहन्त चुना ।
तारता भव-संसार, सुना ॥
नयन होवें भींजे खाली ॥
मने जप अरहन दीवाली ॥७।।
ॐ नमो अरिहंताणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
*द्वितीय वलय…जय सिद्ध जय*
ओम् निध ।
नमो सिध ॥
मोर घन ।
सिरोमण ॥
दर्श दृग ।
धाम मृग ॥
नन्द क्षण ।
मन्त्र धन ॥१।।
ॐ नमो सिद्धाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् ओम् ।
नखत व्योम ॥
मोती नाम ।
सिद्ध धाम ॥
दया वन्त ।
धाम नन्त ॥
नमो सिद्ध ।
मन्त्र मुग्ध ॥२।।
ॐ नमो सिद्धाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् रिद्ध वन्ता ।
नमो सिद्ध नन्ता ॥
मोख नार कन्ता ।
सिरोमन महन्ता ॥
दर्श सुख-समंता ।
धाम शिव वसन्ता ॥
नन्त सिरी मन्ता ।
‘मन्त्र आ’ज पन्ता’ ॥३।।
ॐ नमो सिद्धाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् णमो सिद्धाणं ।
नमो णमो सिद्धाणं ॥
मोक्ष णमो सिद्धाणं |
सिवा णमो सिद्धाणं ॥
दर्श णमो सिद्धाणं ।
धर्म णमो सिद्धाणं ॥
नन्त णमो सिद्धाणं |
महत् णमो सिद्धाणं ॥४।।
ॐ नमो सिद्धाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् भगवन् सिद्ध वन्दन ।
नमो अनगन सिद्ध भगवन् ॥
मोर-भवि घन, तोड़ उलझन ।
सिद्ध सु-मरण, शुद्ध-तर मन ॥
दरश दर्शन, दरद निरसन ।
धाम सुरगन, नाम-सुर धन ॥
नखत दिनमण, सुरत भगवन् ।
मन्त्र सिद्-धन, जपो ‘ओ मन ॥५।।
ॐ नमो सिद्धाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
*तृतीय वलय…जय आचार्य जय*
णमो सूर ।
मोह चूर ॥
आप भाँत ।
यत्न हाथ ॥
रिद्ध सौख ।
यान मोख ॥
नगन भेष ।
मत जिनेश ॥१।।
ॐ नमो आयरियाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
णमो सूरिन ।
मोख पूरिन ॥
आदिम पन्थ ।
यति निर्ग्रन्थ ॥
रिक्त उपाध ।
याद समाध ॥
नमतर नैन ।
मधुकर वैन ॥२।।
ॐ नमो आयरियाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
नख-शिख दर्पण ।
मोहन दर्शन ॥
आचार्य नमन ।
यति न्यार भुवन ॥
रिश्ता गुण गण ।
यावत् सु-मरण ॥
नवकार रटन ।
मम कार घटन ॥३।।
ॐ नमो आयरियाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
नम दृग् अभिनन्दन ।
मोख स्वर्ग स्यन्दन ॥
आचारज वन्दन ।
यतियन वन चन्दन ॥
रिक्त मनोरंजन ।
याम-याम नन्दन ॥
नया न अब बन्धन ।
मद माया भंजन ॥४।।
ॐ नमो आयरियाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
नमत नन्त आचारज ।
मोह हन्त चरणारज ॥
आचारज सदय-हृदय ।
यम-संयम-नियम निलय ॥
रिख स्वाति मोति भवि जल ।
यानी ‘पुन’ भव-भव फल ॥
नम दृग् आचारज जय ।
मन वच काया रज क्षय ॥५।।
ॐ नमो आयरियाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
नव भा-रत नमो नमः ।
मोक्षिक रथ नमो नमः ॥
आचारज नमो नमः ।
यक दिग्गज नमो नमः ॥
रिश्ता दिव नमो नमः ।
यात्री शिव नमो नमः ॥
‘नव’ मात्रिक नमो नमः ।
मन माणिक नमो नमः ॥६।।
ॐ नमो आयरियाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
नयना विजयी आचार्य श्री ।
मोहारि जयी आचार्य श्री ॥
आगमिक लेख आचार्य श्री ।
यशवन्त एक आचार्य श्री ॥
रिजुता प्रसून आचार्य श्री ।
याचना शून आचार्य श्री ॥
नक्शा निज-निध आचार्य श्री |
मन्शा खुद सिध आचार्य श्री ॥७।।
ॐ नमो आयरियाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
*चतुर्थ वलय…जय उपाध्याय जय*
ओम् साध ।
नमो पाठ ॥
मोख दाय ।
उपाध्याय ॥
बजर लेख ।
जगत एक ॥
झाग-राग ।
याग त्याग ॥
नन्त-बुद्ध ।
मन्त्र-सिद्ध ॥१।।
ॐ नमो उवज्झायाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् जपत ।
नगन शपथ ॥
मोहित जग ।
उपकृत मग ॥
वर प्रद नुत ।
जय श्रुत सुत ॥
झाञ्झर धुन ।
यानि शुगुन ॥
नमन सतत ।
मराल मत ॥२।।
ॐ नमो उवज्झायाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् मानक ।
नमन पाठक ॥
मोख साधक ।
उदित तारक ॥
वरत-मां यक ।
जगत पालक ॥
झाण ज्ञायक ।
याचना धिक् ॥
नन्त दायक ।
मन्त्र नायक ॥३।।
ॐ नमो उवज्झायाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् स्वाती जलकण ।
नमो पाठी भगवन् ॥
मोह पाटी गुम, धन ।
उर्ध्व साथी सुमरण ॥
वन्श थाती सरगम ।
जम-अराती सर गम ॥
झाग ख्याती खोकर ।
याचना दी ठोकर ॥
नयन बाती अनबुझ ।
मन लुभाती कुछ कुछ ॥४।।
ॐ नमो उवज्झायाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओं पाठिन नमो नमः ।
नम आँखिन् नमो नमः ॥
मोहन इक नमो नम: ।
उपदेशक नमो नम : ॥
वचनामृत नमो नम: ।
जन-जागृत नमो नमः ॥
झापन-दृग नमो नमः ।
यादृश मग नमो नमः ॥
नख-छव शश नमो नमः ।
मन मन-शिशु नमो नमः ॥५।।
ॐ नमो उवज्झायाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् नमो उवज्झायाणं ।
नमो नमो उवज्झायाणं ॥
मोक्ष नमो उवज्झायाणं ।
उषा नमो उवज्झायाणं ॥
वरद नमो उवज्झायाणं ।
जगत नमो उवज्झायाणं ॥
झाण नमो उवज्झायाणं ।
यान नमो उवज्झायाणं ॥
नन्त नमो उवज्झायाणं ।
मन्त्र नमो उवज्झायाणं ॥६।।
ॐ नमो उवज्झायाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओं जयतु जयतु जय पाठी जय ।
नव पुरा करम परिपाठी क्षय ॥
मोहान्धासुर सह साथी क्षय ।
उवझाय जयतु जय, पाठी जय ॥
वञ्चन मञ्चन दृग्-पाती क्षय ।
जय उपाध्याय, जय पाठी जय ॥
झाञ्झर स्वर जय जय पाठी जय ।
याञ्चा-परिषह, अरि घाती क्षय ॥
नम-दृग् जप मन ! जय पाठी जय ।
मद माया मान अराती क्षय ॥७।।
ॐ नमो उवज्झायाणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
*पंचम वलय…जय साधु जय*
ओं जय ।
नम हृदय ॥
मोख रथ ।
लोक पत ॥
एक सुध ।
सहज बुध ॥
वन रमण ।
वश-करण ॥
‘सा’ प्रभू ।
हू बहू ॥
नत विनत ।
मत सुमत ॥१।।
ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् नमः ।
नन्त क्षमा ॥
मोख यत्न ।
लोक रत्न ॥
एक लक्ष ।
सहज अक्ष ॥
वर्तमान ।
वर्धमान ॥
साध सूर ।
हूर दूर ॥
नकल वीर ।
महज तीर ॥२।।
ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् साधो ।
नयन भाँदो ॥
मोख नाता ।
लोक ज्ञाता ॥
एक ज्ञानी ।
सहज ध्यानी ॥
वचन नंदा ।
वदन चंदा ॥
सान भू माँ ।
हूबहू माँ ॥
नगन श्रमणा ।
मगन श्रम ना ॥३।।
ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् निशंक ।
नखत मयंक ॥
मोहन एक ।
लोचन नेक ॥
एक मुराद ।
सहज समाध ॥
वत्सल गैर ।
वजह वगैर ॥
सारल ध्येय ।
हूर अजेय ॥
नम दृग् ढ़ोक ।
मग दिव मोख ॥४।।
ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् निर्ग्रंथा ।
नमो भगवन्ता ॥
मोति मुख सीपी ।
लोक रुख भीती ॥
एक सद्-राही ।
सरस अवगाही ॥
वचन इक जादू ।
वपन समता भू ॥
सॉंच शिव सुन्दर ।
हूबहू जिनवर ॥
नन्त सुखवाँ कल ।
मन्त्र माँ आँचल ॥५।।
ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् साहू ‘सा’ ।
नमो आउ सा ॥
मोख समीपा ।
लोक प्रदीपा ॥
एक प्रशंसा ।
सत्य अहिंसा ॥
व्यसन निशाँ ना ।
वसन न शाना ॥
साख आसमाँ ।
हूबहू क्षमा ॥
नमन अनन्ता ।
महत् भदन्त्ता ॥६।।
ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् णमो साहूणं ।
नमो सव्व साहूणं ॥
मोख णमो साहूणं ।
लोक णमो साहूणं ॥
एक णमो साहूणं ।
सत्य णमो साहूणं ॥
वरद णमो साहूणं ।
वचन णमो साहूणं ॥
साध णमो साहूणं ।
हूम् णमो साहूणं ॥
नन्त णमो साहूणं ।
मन्त्र णमो साहूणं ॥७।।
ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओं जित-दृग् नमो नम: ।
नम दृग्-जुग नमो नम: ॥
मोखन रत नमो नम: ।
लोचन नत नमो नम: ॥
एषण क्षण नमो नम: ।
समिती धन नमो नम: ॥
वन इक घर नमो नम: ।
वपु वज्जर नमो नम: ॥
सा साधु नमो नम: ।
हू ‘या हू’ नमो नम: ॥
नख शिख सुध नमो नम: ।
मन अवहित नमो नम: ॥८।।
ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
ओम् नन्त शरणा श्रमणा ।
नगन सन्त चरणा शरण ॥
मोख पन्थ चरणा श्रमणा ।
लोभ हन्त श्रमणा शरणा ॥
एक चन्द्र वदना श्रमणा ।
सहज नन्द नयना श्रमणा ॥
वन रमन्त श्रमणा शरणा ।
वचन मन्त्र भ्रमणा हरणा ॥
साख वन्त चरणा श्रमणा ।
हूक अन्त श्रम ना श्रमणा ॥
नभ सुगंध करुणा श्रमणा ।
मनन ‘ग्रन्थ-चरणा’ श्रमणा ॥९।।
ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
समुच्चय जयमाला
दोहा=
हटके एक सुकून सा,
दे, गुरु गौरव गाथ ।
आ सुनते पल भर सही,
सिर रख मुकलित हाथ ॥
णमोकार णमोकार ।
मंत्र राज णमोकार ॥
शिव जहाज णमोकार ।
हुये सुन, अनेक पार ॥
जपो मन लगा कतार ।
णमोकार णमोकार ।
नाद मन्त्र णमोकार ।
पाप हन्त णमोकार ॥
णमोकार णमोकार ।
श्वान जन्म सुर विमान ।
बैल जन्म रज-घरान ॥
हुये चुन, अनेक पार ॥
जपो मन लगा कतार ।
णमोकार णमोकार ।
नाद मन्त्र णमोकार ।
पाप हन्त णमोकार ॥
णमोकार णमोकार ।
नाग नागिन निहाल ।
सूर कुन्द-कुन्द ग्वाल ॥
हुये गुन, अनेक पार ॥
जपो मन लगा कतार ।
णमोकार णमोकार ।
नाद मन्त्र णमोकार ।
पाप हन्त णमोकार ॥
णमोकार णमोकार ।
सार्थ नाम अज-भिषेक ।
चोर निरञ्जन-भिलेख ॥
हुये धुन, अनेक पार ॥
जपो मन लगा कतार ।
णमोकार णमोकार ।
नाद मन्त्र णमोकार ।
पाप हन्त णमोकार ॥
णमोकार णमोकार ।
दोहा=
बड़ी और कोई नहीं,
एक यही अरदास ।
भक्त बना करके मुझे,
रख लो चरणन पास ॥
ॐ ह्रीं श्री पंच परमेष्ठिन्
अनर्घ्यपद-प्राप्तये
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।५।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
=दोहा=
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
बनी रहे यूँ ही कृपा,
सिर ‘सहजो’ निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
*आरती*
बाती कपूर सोने का दिया ।
चमचमाती चाँदी की थरिया ॥
णवकार मंत्र की ।
पञ्च निर्ग्रन्थ की ॥
मैं उताएँ आरतिया ।
प्रथम निर्ग्रन्थ ।
घाति-अरि हन्त ॥
चतुष्ट्य नन्त ।
अनादि अनन्त ॥
अपराजित मन्त्र ।
और नहीं, देखी सारी दुनिया ॥
बाती कपूर सोने का दिया ।
चमचमाती चाँदी की थरिया ॥
णवकार मंत्र की ।
पञ्च निर्ग्रन्थ की ॥
मैं उताएँ आरतिया ।
द्वितिय निर्ग्रन्थ ।
मुक्ति वधु कन्त ।
सिद्ध अगणन्त ॥
अनादि अनन्त ॥
अपराजित मन्त्र ।
और नहीं, देखी सारी दुनिया ॥
बाती कपूर सोने का दिया ।
चमचमाती चाँदी की थरिया ॥
णवकार मंत्र की ।
पञ्च निर्ग्रन्थ की ॥
मैं उताएँ आरतिया ।
तृतिय निर्ग्रन्थ ।
शिरोमण सन्त ।
आचार वन्त ॥
अनादि अनन्त ॥
अपराजित मन्त्र ।
और नहीं, देखी सारी दुनिया ॥
बाती कपूर सोने का दिया ।
चमचमाती चाँदी की थरिया ॥
णवकार मंत्र की ।
पञ्च निर्ग्रन्थ की ॥
मैं उताएँ आरतिया ।
तुरिय निर्ग्रन्थ ।
चल श्रुतस्-कंध ।
शिव स्वर्ग स्यन्द ॥
अनादि अनन्त ॥
अपराजित मन्त्र ।
और नहीं, देखी सारी दुनिया ॥
बाती कपूर सोने का दिया ।
चमचमाती चाँदी की थरिया ॥
णवकार मंत्र की ।
पञ्च निर्ग्रन्थ की ॥
मैं उताएँ आरतिया ।
साध निर्ग्रन्थ ।
निजात्म वसन्त ।
‘निराकुल’ पन्थ ॥
अनादि अनन्त ॥
अपराजित मन्त्र ।
और नहीं, देखी सारी दुनिया ॥
बाती कपूर सोने का दिया ।
चमचमाती चाँदी की थरिया ॥
णवकार मंत्र की ।
पञ्च निर्ग्रन्थ की ॥
मैं उताएँ आरतिया ।
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