साढ़े पांच करोड़
श्री इंद्रजीत कुम्भकर्णादि
मुनिराजों की पूजन
मुनि इंद्र जीत, मुनि कुम्भ करण ।
नुति साढ़े पॉंच करोड़ श्रमण ।।
श्रीफल पास न चावल पीले ।
जुड़े-हाथ, नत, नैन पनीले ।।
जो कुछ यही इसे स्वीकारो ।
और शीघ्र मम हृदय पधारो ।।
आ शबरी के राम गये हैं ।
मिल मीरा घनश्याम गये हैं ।।
मेरे राम न और रुलाओ ।
मेरे श्याम चले भी आओ ।।
ॐ ह्रीं श्री इन्द्रजीतकुम्भकर्णादि सार्धपञ्चकोटि मुनिगण अत्र अवतर अवतर संवोषट् इति आव्हानम्।
ॐ ह्रीं श्री इन्द्रजीतकुम्भकर्णादि सार्धपञ्चकोटि मुनिगण अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: इति स्थापनम्।
ॐ ह्रीं श्री इन्द्रजीतकुम्भकर्णादि सार्धपञ्चकोटि मुनिगण अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
पुष्पांजलि
करने, क्षीर-नीर मति हंसा ।
नीर क्षीर भर लाया कलशा ।।
मंसा-पूरण ! आप चरण में ।
भेंटूँ, ले लो मुझे शरण में ।।
मुनि इंद्रजीत मुनि कुम्भकरण ।
नुति साढ़े पॉंच करोड़ श्रमण ।।
ॐ ह्रीं श्री इन्द्रजीतकुम्भकर्णादि सार्धपञ्चकोटि मुनिवरेभ्यो जन्म जरा मृत्यु रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
करुँ न अब’ की वन क्रंदन मैं ।
घिस लाया बावन चंदन मैं ।।
मंसा-पूरण ! आप चरण में ।
भेंटूँ, ले लो मुझे शरण में ।।
मुनि इंद्रजीत मुनि कुम्भकरण ।
नुति साढ़े पॉंच करोड़ श्रमण ।।
ॐ ह्रीं श्री इन्द्रजीतकुम्भकर्णादि सार्धपञ्चकोटि मुनिवरेभ्य: संसार ताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
थमे ‘कि मन मृग भॉंत न दौड़े ।
अक्षत शाली-धान बटोरे ।।
मंसा-पूरण ! आप चरण में ।
भेंटूँ, ले लो मुझे शरण में ।।
मुनि इंद्रजीत मुनि कुम्भकरण ।
नुति साढ़े पॉंच करोड़ श्रमण ।।
ॐ ह्रीं श्री इन्द्रजीतकुम्भकर्णादि सार्धपञ्चकोटि मुनिवरेभ्योऽक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
जाल बुने खुद फँसे ‘कि माया ।
सुरभित फुल्ल-पुष्प चुन लाया ।।
मंसा-पूरण ! आप चरण में ।
भेंटूँ, ले लो मुझे शरण में ।।
मुनि इंद्रजीत मुनि कुम्भकरण ।
नुति साढ़े पॉंच करोड़ श्रमण ।।
ॐ ह्रीं श्री इन्द्रजीतकुम्भकर्णादि सार्धपञ्चकोटि मुनिवरेभ्य: काम-बाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
जड़ से मिटे क्षुधा बीमारी ।
घृत पकवान नयन-मन हारी ।।
मंसा-पूरण ! आप चरण में ।
भेंटूँ, ले लो मुझे शरण में ।।
मुनि इंद्रजीत मुनि कुम्भकरण ।
नुति साढ़े पॉंच करोड़ श्रमण ।।
ॐ ह्रीं श्री इन्द्रजीतकुम्भकर्णादि सार्धपञ्चकोटि मुनिवरेभ्य: क्षुधा-रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
खोय अँधेरा होय उजाला ।
अठपहरी घृत दीप प्रजाला ।।
मंसा-पूरण ! आप चरण में ।
भेंटूँ, ले लो मुझे शरण में ।।
मुनि इंद्रजीत मुनि कुम्भकरण ।
नुति साढ़े पॉंच करोड़ श्रमण ।।
ॐ ह्रीं श्री इन्द्रजीतकुम्भकर्णादि सार्धपञ्चकोटि मुनिवरेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
करने अपनी अपनी-पूंजी ।
धूप दशांग महकती दूजी ।।
मंसा-पूरण ! आप चरण में ।
भेंटूँ, ले लो मुझे शरण में ।।
मुनि इंद्रजीत मुनि कुम्भकरण ।
नुति साढ़े पॉंच करोड़ श्रमण ।।
ॐ ह्रीं श्री इन्द्रजीतकुम्भकर्णादि सार्धपञ्चकोटि मुनिवरेभ्योऽष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
करने झोली चॉंद सितारे ।
मधुर रसीले ऋतु फल न्यारे ।।
मंसा-पूरण ! आप चरण में ।
भेंटूँ, ले लो मुझे शरण में ।।
मुनि इंद्रजीत मुनि कुम्भकरण ।
नुति साढ़े पॉंच करोड़ श्रमण ।।
ॐ ह्रीं श्री इन्द्रजीतकुम्भकर्णादि सार्धपञ्चकोटि मुनिवरेभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रासुक जल, घिस बावन चंदन ।
अक्षत अछत, पुष्प वन-नंदन ।।
पकवां घृत-अठपहरी दीवा ।
धूप-नूप फल मधुर अतीवा ।।
मिला सभी को द्रव्य बनाया ।
सदा बनी यूॅं रहे ‘कि छाया ।।
मंसा-पूरण ! आप चरण में ।
भेंटूँ, ले लो मुझे शरण में ।।
मुनि इंद्रजीत मुनि कुम्भकरण ।
नुति साढ़े पॉंच करोड़ श्रमण ।।
ॐ ह्रीं श्री इन्द्रजीतकुम्भकर्णादि सार्धपञ्चकोटि मुनिवरेभ्योऽनर्घ्य पद प्राप्तयेऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
दोहा
कुम्भकर्ण मुनि और भी,
साढ़े पॉंच करोड़ ।
इंद्र-जीत मुनि और-धी,
यह सब बंधन तोड़ ।।१।।
नाम चूलगिरी क्षेत्र से,
जा पहुॅंचे शिव धाम । ।
रोम-रोम पुलकित तिन्हें,
गद-गद हृदय प्रणाम ।।२।।
साथी ! हम निगोद से निकले ।
पहुॅंचे तुम शिव कैसे पहले ।।
भूल-चूक क्या खता हमारी ।
कसम तुझे दे-बता हमारी ।।
क्या अंगुली न उठाते थे तुम ।
क्या चुगली नहिं खाते थे तुम ।
क्या तितली न उड़ाते थे तुम ।
जानूँ कौन नचाने वाला ।
बिना जवाब न जाने वाला ।।
भूल-चूक क्या खता हमारी ।
कसम तुझे दे-बता हमारी ।।
क्या दिल नहीं दुखाते थे तुम ।
क्या मिल कदम बढ़ाते थे तुम ।
क्या सिल आते थे नाते तुम ।
रह-रह कौन रुलाने वाला ।
जानूँ कौन नचाने वाला ।
बिना जवाब न जाने वाला ।।
भूल-चूक क्या खता हमारी ।
कसम तुझे दे-बता हमारी ।।
क्या नहिं बुने जाल मकरी से ।
क्या नहिं बने काल मछरी से ।
क्या नहिं चुने चाल बदरी से ।
गोटे कौन खिलाने वाला ।।
जानूँ कौन नचाने वाला ।
बिना जवाब न जाने वाला ।।
भूल-चूक क्या खता हमारी ।
कसम तुझे दे-बता हमारी ।।
थे क्या तपो-वृद्ध परिपाटी ।
थे क्या ज्ञान-वृद्ध सहपाठी ।
थे क्या वयो वृद्ध की लाठी ।
फँदे कौन फसाने वाला ।।
जानूँ कौन नचाने वाला ।
बिना जवाब न जाने वाला ।।
भूल-चूक क्या खता हमारी ।
कसम तुझे दे-बता हमारी ।।
धड़कन सु-मरण साज रखी थी ।
क्या धीमी आवाज रखी थी ।
बात और क्या राज रखी थी ।
छाले कौन दुखाने वाला ।।
जानूँ कौन नचाने वाला ।
बिना जवाब न जाने वाला ।।
भूल-चूक क्या खता हमारी ।
कसम तुझे दे-बता हमारी ।।
दामन क्या बेदाग रखा था ।
क्या मनवा वैराग रखा था ।
क्या तन-मंडन त्याग रखा था ।
छलिया कौन छकाने वाला ।।
जानूँ कौन नचाने वाला ।
बिना जवाब न जाने वाला ।।
भूल-चूक क्या खता हमारी ।
कसम तुझे दे-बता हमारी ।।
थी राखीं क्या नजरें भीजीं ।
थी राखीं क्या नजरें तीजीं ।
थी राखी क्या नजरें नीचीं ।
डोर कौन उलझाने वाला ।।
जानूँ कौन नचाने वाला ।
बिना जवाब न जाने वाला ।।
भूल-चूक क्या खता हमारी ।
कसम तुझे दे-बता हमारी ।।
जंग न ठग लेता, बन-कर्कट ।
रंग न बदले था बन गिरगट ।
क्या नहिं मचले था मन मर्कट ।
नीचा कौन दिखाने वाला ।।
जानूँ कौन नचाने वाला ।
बिना जवाब न जाने वाला ।।
भूल-चूक क्या खता हमारी ।
कसम तुझे दे-बता हमारी ।।
क्या शैतान न दीठ मिलाई ।
क्या मैदान न पीठ दिखाई ।
क्या मैं-जानन धी अपनाई ।
पट्टी कौन पढ़ाने वाला ।।
जानूँ कौन नचाने वाला ।
बिना जवाब न जाने वाला ।।
भूल-चूक क्या खता हमारी ।
कसम तुझे दे-बता हमारी ।।
हाट न लाल दुकान लगाये ।
क्या दीवाल न कान लगाये ।
क्या न पुष्प के बाण चलाये ।
गड्ढे कौन धकाने वाला ।।
जानूँ कौन नचाने वाला ।
बिना जवाब न जाने वाला ।।
भूल-चूक क्या खता हमारी ।
कसम तुझे दे-बता हमारी ।।
दौड़ भलाई तन-मन जोड़ी ।
और बुराई तत्क्षण छोड़ी ।
बेजोड़ी तुम और न जोड़ी ।
अपना, तुम्हें बनाने वाला ।।
मैं भी पीछे आने वाला।
साथी ! हम निगोद से निकले ।
पहुँचे तुम शिव कैसे पहले ।
भूल-चूक क्या खता हमारी ।
कसम तुझे दे-बता हमारी ।।
ॐ ह्रीं श्री इन्द्रजीतकुम्भकर्णादि सार्धपञ्चकोटि मुनिवरेभ्यो जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा
चरण चिन्ह तुम मिल गये,
अब न लगेगी देर ।
बदल रंग खरबूज ले,
पल लेता क्या हेर ।।
इत्याशीर्वाद: पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि।
आरती
कुम्भ करण मुनि मुनि आभरणा
इन्द्र-जीत मुनि तारण-तरणा
साढ़े पॉंच करोड़ मुनिन्दा
करूँ आरती सन्ध्या सन्ध्या
ढ़ोल मॅंजीरे ताल बजा के
दीपक घी के थाल सजा-के
गद-गद ‘जी’ ले आँख भिंजा के
भक्ति में हो करके अन्धा
करूँ आरती सन्ध्या सन्ध्या
तानसेन सी तान साध के
घुॅंघरू दोनों पैर बाँध के
नाच आज सर-हदे फाँद के
छोड़ और-सब गोरख धंधा
आरती सन्ध्या सन्ध्या
कुम्भ करण मुनि मुनि आभरणा
इन्द्र-जीत मुनि तारण-तरणा
साढ़े पॉंच करोड़ मुनिन्दा
करूँ आरती सन्ध्या सन्ध्या
रंग बिरंग गुलाल उड़ा के
ऊपर दोनों हाथ उठा के
प्रभु चरणों से नजर टिका के
जीवन ‘मानौ’ स्वर्ण सुगंधा
छोड़-और सब गोरख धंधा
भक्ति में हो कर-के अंधा
करूँ आरती सन्ध्या सन्ध्या
कुम्भ करण मुनि मुनि आभरणा
इन्द्र-जीत मुनि तारण-तरणा
साढ़े पॉंच करोड़ मुनिन्दा
करूँ आरती सन्ध्या सन्ध्या
ढ़ोल मॅंजीरे ताल बजा के
दीपक घी के थाल सजा-के
गद-गद ‘जी’ ले आँख भिंजा के
भक्ति में हो करके अन्धा
करूँ आरती सन्ध्या सन्ध्या
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