सानौधा के
पारस बाबा की पूजन
एक बनाने वाले बिगड़ी,
करुणा-दया-निधान ।
अतिशय-कारी सानौधा के,
पार्श्व-नाथ भगवान ।।
आओ आओ आन पधारो,
सूना हृदयस्थान ।
भव-दुख-हारी सानौधा के,
पार्श्वनाथ भगवान ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (इति सन्निधिकरणम्)
कहना नहीं, सहन वश करना,
शिक्षा गुरुकुल दूज ।
इक तरफा, दश-भव बैरी तब,
रहा सम-शरण पूज ।।
प्रासुक जल भर कर लाया,
करने समता-रस पान ।
अतिशय-कारी सानौधा के,
पार्श्व-नाथ भगवान ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।
भाँत श्वान लाठी न भूसना,
शिक्षा गुरुकुल दूज ।
इक तरफा, दश-भव बैरी तब,
रहा सम-शरण पूज ।।
घिस कर रस-चन्दन लाया,
करने ‘कर’ स्वाभिमान ।
अतिशय-कारी सानौधा के,
पार्श्व-नाथ भगवान ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।।
दोष पूर्व-कृत कर्म मानना,
शिक्षा गुरुकुल दूज ।
इक तरफा, दश-भव बैरी तब,
रहा सम-शरण पूज ।।
अछत अछत अक्षत लाया,
करने ‘कर’ अक्षय थान ।
अतिशय-कारी सानौधा के,
पार्श्व-नाथ भगवान ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।।
माँ-निगोद, हम सभी सहोदर,
शिक्षा गुरुकुल दूज ।
इक तरफा, दश-भव बैरी तब,
रहा सम-शरण पूज ।।
सुरभित दिव्य-पुष्प लाया,
करने मन्मथ अवसान ।
अतिशय-कारी सानौधा के,
पार्श्व-नाथ भगवान ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।।
कौन नहीं भावी शिव-ठाकुर,
शिक्षा गुरुकुल दूज ।
इक तरफा, दश-भव बैरी तब,
रहा सम-शरण पूज ।।
चरु षट्-रस मिश्रित लाया,
करने क्षुध् आमय हान ।
अतिशय-कारी सानौधा के,
पार्श्व-नाथ भगवान ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
लाजवाब, देना जबाब ना,
शिक्षा गुरुकुल दूज ।
इक तरफा, दश-भव बैरी तब,
रहा सम-शरण पूज ।।
दीप गाय-गिर-घृत लाया,
करने ‘कर’ भीतर ज्ञान ।
अतिशय-कारी सानौधा के,
पार्श्व-नाथ भगवान ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।।
जल शीतल हो चला बाद पल,
शिक्षा गुरुकुल दूज ।
इक तरफा, दश-भव बैरी तब,
रहा सम-शरण पूज ।।
सरस सुगंधित फल लाया,
करने ‘कर’ फल-निर्वाण ।
अतिशय-कारी सानौधा के,
पार्श्व-नाथ भगवान ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।।
आठ-शत्रु इक और अछत फिर,
शिक्षा गुरुकुल दूज ।
इक तरफा, दश-भव बैरी तब,
रहा सम-शरण पूज ।।
दश-विध गन्ध धूप लाया,
करने अरि-कर्म मशान ।
अतिशय-कारी सानौधा के,
पार्श्व-नाथ भगवान ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये-फलं निर्वपामीति स्वाहा।।
‘बुरा’ बड़ा-ऊ ‘कर’ लौटाते,
शिक्षा गुरुकुल दूज ।
इक तरफा, दश-भव बैरी तब,
रहा सम-शरण पूज ।।
वसु-विद्य द्रव्य मिला लाया,
करने सम्यक् श्रद्धान ।
अतिशय-कारी सानौधा के,
पार्श्व-नाथ भगवान ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
कल्याणक-अर्घ
रतन बरसने लागे नभ से,
पूर्व गर्भ नव-मास ।
नहिं इकाध देखे माँ ने,
सपने सोलह सुख-राश ।।
सपरिवार सौधर्म मनाये,
प्रथम गर्भ कल्याण ।
अतिशय-कारी सानौधा के,
पार्श्व-नाथ भगवान ।।
ॐ ह्रीं श्री वैशाख-कृष्ण-द्वितीयायां गर्भ-कल्याणक-प्राप्ताय बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जन्म जान द्यु उतर आ चले,
देव बनारस भूम ।
रचा मेर अभिषेक,
नृत्य ताण्डव विरचा झुक-झूम ।।
सपरिवार सौधर्म मनाये,
द्वितिय जन्म कल्याण ।
अतिशय-कारी सानौधा के,
पार्श्व-नाथ भगवान ।।
ॐ ह्रीं पौष-कृष्ण-एकादश्यां जन्म-कल्याणक-प्राप्ताय बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
विषय भोग ना लुभा सके,
आ वन बैठे तरु-मूल ।
वस्त्र उतार, उखाड़ लिये कच,
पाने चारित-चूल ।।
सपरिवार सौधर्म मनाये,
तृतिय त्याग कल्याण ।
अतिशय-कारी सानौधा के,
पार्श्व-नाथ भगवान ।।
ॐ ह्रीं पौष-कृष्ण-एकादश्यां तप-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
घात घातिया-कर्म उठ गये,
भू-से अंगुल चार ।
मोर-साँप सम-शरण हिरण-सिंह,
बैठे वैर विडार ।।
सपरिवार सौधर्म मनाये,
तुरिय ज्ञान कल्याण ।।
अतिशय-कारी सानौधा के,
पार्श्व-नाथ भगवान ।।
ॐ ह्रीं चैत्र-कृष्ण-चतुर्थ्यां ज्ञान-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
बाद विदग्ध शुक्ल ध्यानानल,
बाकी कर्म अशेष ।
समय-मात्र में ऋजु-गति से जा,
पहुँचे अपने देश ।।
सपरिवार सौधर्म मनाये,
और मोक्ष कल्याण ।
अतिशय-कारी सानौधा के,
पार्श्व-नाथ भगवान ।।
ॐ ह्रीं श्रावण-शुक्ल-सप्तम्यां मोक्ष-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
बाबा के दरबार की,
क्या बतलाऊँ बात ।
बिन माँगे सब लग चले,
बात-बात में हाथ ।।
बाबा सानौधा वाले
भुवन तीन इक रखखाले
छू पारस, लोहा सोना ।
करते से जादू टोना ।।
दर्श मात्र वारे न्यारे ।
टकते चुनर चाँद-तारे ।।
बाबा सानौधा वाले
भुवन तीन इक रखखाले
शूूल सिंहासन में बदली ।
नाग घड़े माला निकली ।।
नाग विषैले थे काले ।
फूँँक मिटाते भव छाले ।।
बाबा सानौधा वाले
भुवन तीन इक रखखाले
बदली पानी में अगनी ।
अश्रु खुशी पाई भगनी ।।
धागे आखर बन चाले ।।
चाबी इक अनेक ताले ।।
बाबा सानौधा वाले
भुवन तीन इक रखखाले
जश बजरंगी शिशु पल्ले ।
पाँव छुवाया पट खुल्ले ।।
लगे शील सति जयकारे ।
आशुतोष भाले-भाले ।।
बाबा सानौधा वाले
भुवन तीन इक रखखाले
इन्द्र नाग, नागन पद्मा ।
कहूँ कहाँ तक जिन महिमा ।।
कौन गिन सका नभ तारे ।
बिच घन बिजुरी उजियारे ।।
बाबा सानौधा वाले
भुवन तीन इक रखखाले
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
दोहा
राखी रख लेना सदा,
बाबा मेरी लाज ।
रोज बुला लेना मुझे,
पाँव पखारन काज ।।
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