सवाल
आचार्य भगवन् !
अपनी संध्याओं का समय होता है,
भक्ति-पाठ और वन्दना का समय होता है
तभी कान फोड़ ध्वनि में
‘अल्लाह हु अकबर’ होने लगता है
माथे पे शिकन नहीं चाहते हुये भी,
आ टिकती है वह,
वैसे कोई क्या देखेगा,
मेरा मन स्वयम्
देखता है ‘कि मैं समता नहीं रख पाता हूँ
भगवान्, अनेकांत तो सबका हल
जानता है, कृपया
करुणा कीजिये भगवन् !
मैं राहतगढ़ का रहवासी हूँ ।
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
अरे सुनो तो राहत-गढ़ में रहते हैं,
इसलिये ऐसा होता है
‘अरहत-गढ़’ के बनिये
यदि पूछते हैं, कैसे ?
तो ऐसे…
प्रचलित शब्द,
जो आपके गॉंव में चल ही नहीं रहा,
बखूबी दौड़ रहा है
वह शब्द है, हाथ…करघा
हथ… करघा
आप आप ही बिछुड़ जाता है
‘अ’
आप-आप ही जुड़ जाता है
जैसे ऽनन्त
अनंत
सो राहत से रहत बना लो
फिर आगे ‘अ’ लगा के
बना लो अपना लो
अरहत-गढ़
है ना संजोग कांचन…मण
सो…
बढ़ाये वाल्यूम,
जब वो लूम-लूम,
आप अपने चेहरे की मुस्कान
बरकरार रखिये
माथे पर शिकन आ सके,
‘कि न दरार रखिये
न तकरार रखिये
इस कान
न सिर्फ उस कान
अंगुलिंयों से कहिये,
‘कि जा गहरे आखर सुनहरे
ढ़ाई पढ़ायें
वो भी, ले अदा मासूम
और अद्भुत चमत्कार रखने वाले है शब्द,
बस पूरे अक्षर दूर-दूर पढ़ना हैं
श…ब…द
मतलब सब कुछ देने वाली है शब्द
शब्द अल्लाह भी
पीछे नहीं
‘अ’ यानि ‘कि ‘अ’ से लेकर के,
‘ह’ यानि ‘कि ‘ह’ तक के अक्षर
मतलब
सीधा साधा है
अक्षर यानी अविनाशी
सिद्धालय वासी
अनंत
सदैव रहें जयवन्त
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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