सवाल
आचार्य भगवन् !
सुनते हैं,
देखते भी हैं,
‘कि आप जल्दी ही बात को घुमा देते हैं
और एक हल्की सी मधुर मुस्कान दे करके
सामने वाले को चुप करा लेते हैं ?
या ये कहें, चित्त चुरा लेते हैं
भगवन् ! चोरी करना ‘अपने ही बताया’
अच्छी बात नहीं
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनो
‘गुमा’ तो नहीं देते ना
घुमाना तो अच्छा रहता है
सिक्के का दूसरा पहलू ‘भी’ दिख जाता है
प्रायश: जो अनदेखा रह जाता है
चित्र लिखित से,
तांकते रह गये राजे, महाराजे
सिरफ काकराज
सार्थ ‘वा…यश’
एक सुर से गये नवाजे
खिताब-ए-एकाक्ष
सच एकाक्ष बनना, बड़ा कठिन
आँख की पुतली को अलटना,
पलटना पड़ता छिन-छिन
और घुमाना
बार… हजार तो जायज
द्वादशांग पढ़ा
बन सहस्राक्ष खड़ा
‘के न सिर्फ सौ’धरम
औ’ धरम, जानना हो जाये सहज
महज ही
बस छोटा सा राज यही
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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