सवाल
आचार्य भगवन् !
एक रोज आप,
किसी चाप-नास्ते की दुकान पर,
विहार के समय पल भर के लिये,
क्या बैठ गये थे
पत्थर के दाम आसमान छूने लगे थे
भगवन् !
और फिर उस गरीब ने किसी भी कीमत पर
वो पत्थर नहीं दिया था,
ये क्या माजरा है
सब आपकी ही माया लगती है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सच
सुनते समय मन को बड़ा भाया है
‘के सब आपकी ही माया है
पर है क्या सच्चाई
सच भाई
किसने पाई
बिन खोले ‘थर्ड-आई’
खोल अंतरंग
सुनो,
सुनाता हूँ मैं,
फिर के यही प्रसंग
था मैं धका हारा,
दिया पत्थर ने सहारा,
माया मेरी, या उसकी
आई साँस में साँस मेरी
एक एक करके श्रम-बिन्दु दबा दुम जो भागा
धृत समदर्शन प्रभावित प्रभावना अंग,
किसी अंतरंग कौतुक जागा
माया मेरी, या उसकी
मैं तो माध्यस्थ
कोई दाम पर दाम लगाये
और ग्राम भर भी,
किसी का श्रद्धा विश्वास न खरीद पाये
तो माया मेरी, या उसकी
भाई आप लोग 21वीं सदी के होके भी
बातों में आ जाते हैं ‘किस-किस की’
सुनिये,
उठाया गया छोटे-से छोटा कदम,
न कम रिस्की
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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