- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 1000
भक्तों के ऊपर
गुरु कृपा बरसती है, छप्पर फाड़-कर
दिन-दिन, रात-रात भर
भक्तों के ऊपर
गुरु कृपा बरसती है,
छप्पर फाड़-कर ।।स्थापना।।
जो भक्त होगा
वो क्यूँ न चढ़ायेगा
भरकर जल गागर
भक्तों के ऊपर
गुरु कृपा बरसती है,
छप्पर फाड़-कर ।।जलं।।
जो भक्त होगा
वो क्यूँ न चढ़ायेगा
गंध मलय घिसकर
भक्तों के ऊपर
गुरु कृपा बरसती है,
छप्पर फाड़-कर ।।चन्दनं।।
जो भक्त होगा
वो क्यूँ न चढ़ायेगा
शालि धान पातर
भक्तों के ऊपर
गुरु कृपा बरसती है,
छप्पर फाड़-कर ।।अक्षतं।।
जो भक्त होगा
वो क्यूँ न चढ़ायेगा
गुल नमेर सुन्दर
भक्तों के ऊपर
गुरु कृपा बरसती है,
छप्पर फाड़-कर ।।पुष्पं।।
जो भक्त होगा
वो क्यूँ न चढ़ायेगा
घृत व्यंजन रचकर
भक्तों के ऊपर
गुरु कृपा बरसती है,
छप्पर फाड़-कर ।।नैवेद्यं।।
जो भक्त होगा
वो क्यूँ न चढ़ायेगा
दीवा घी भर कर
भक्तों के ऊपर
गुरु कृपा बरसती है,
छप्पर फाड़-कर ।।दीपं।।
जो भक्त होगा
वो क्यूँ न चढ़ायेगा
सार्थक नाम इतर
भक्तों के ऊपर
गुरु कृपा बरसती है,
छप्पर फाड़-कर ।।धूपं।।
जो भक्त होगा
वो क्यूँ न चढ़ायेगा
फल वन नन्दन ‘तर’
भक्तों के ऊपर
गुरु कृपा बरसती है,
छप्पर फाड़-कर ।।फलं।।
जो भक्त होगा
वो क्यूँ न चढ़ायेगा
जल गंधाक्षत चर
भक्तों के ऊपर
गुरु कृपा बरसती है,
छप्पर फाड़-कर ।।अर्घ्यं।।
=कीर्तन=
गुरु-सा जय, जयतु गुरु-सा
जय जय, जयतु जयतु गुरु-सा
जय जय, जयतु जयतु गुरु-सा
गुरु-सा जय, जयतु गुरु-सा
जय जय, जयतु जयतु गुरु-सा
जयमाला
तुम करुणा हस्ताक्षर हो
संक्षिप्त ढ़ाई-आखर हो
भींगे रखते हो नयना
सचमुच, तुम्हारा क्या कहना
मीठे रखते हो वयना
सचमुच, तुम्हारा क्या कहना
मर…हम, बनें मरहम
जाप तुम देते रहते हो हरदम
जाप तुम देते रहते हो हरदम
मर…हम, बनें मरहम
जाप तुम देते रहते हो हरदम
सचमुच, तुम्हारा क्या कहना
तुम करुणा हस्ताक्षर हो
संक्षिप्त ढ़ाई-आखर हो
भींगे रखते हो नयना
सचमुच, तुम्हारा क्या कहना
मीठे रखते हो वयना
सचमुच, तुम्हारा क्या कहना
औरों के नाम करके सरगम
अपने सर, गम औरों के रख लेते हो तुम
अपने सर, गम औरों के रख लेते हो तुम
औरों के नाम करके सरगम
अपने सर, गम औरों के रख लेते हो तुम
सचमुच, तुम्हारा क्या कहना
तुम करुणा हस्ताक्षर हो
संक्षिप्त ढ़ाई-आखर हो
भींगे रखते हो नयना
सचमुच, तुम्हारा क्या कहना
मीठे रखते हो वयना
सचमुच, तुम्हारा क्या कहना
खूब जानते,
बखूब जानते शब्द जनम
रक्खे सहेज-कर आखर ‘जम’
रक्खे सहेज-कर आखर ‘जम’
खूब जानते,
बखूब जानते शब्द जनम
रक्खे सहेज-कर आखर ‘जम’
सचमुच, तुम्हारा क्या कहना
तुम करुणा हस्ताक्षर हो
संक्षिप्त ढ़ाई-आखर हो
भींगे रखते हो नयना
सचमुच, तुम्हारा क्या कहना
मीठे रखते हो वयना
सचमुच, तुम्हारा क्या कहना
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
उगलता न कज्जल
गुरु ‘मण’ दीप अचल
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