- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 990
बन के लहू मेरी रगों में बहते हो
सिर्फ एक तुम
मेरे मन में रहते हो
है फक्र मुझे इस बात का
‘के गली गली जिक्र इस बात का
बन के लहू मेरी रगों में बहते हो
सिर्फ एक तुम
मेरे मन में रहते हो ।।स्थापना।।
आँसू इन आँखों में,
लिये आया मैं जल कंचन हाथों में
है फक्र मुझे इस बात का
‘के गली गली जिक्र इस बात का
बन के लहू मेरी रगों में बहते हो
सिर्फ एक तुम
मेरे मन में रहते हो ।।जलं।।
आँसू इन आँखों में,
लिये आया मैं चन्दन इन हाथों में
है फक्र मुझे इस बात का
‘के गली गली जिक्र इस बात का
बन के लहू मेरी रगों में बहते हो
सिर्फ एक तुम
मेरे मन में रहते हो ।।चन्दनं।।
आँसू इन आँखों में,
लिये आया मैं अक्षत कण हाथों में
है फक्र मुझे इस बात का
‘के गली गली जिक्र इस बात का
बन के लहू मेरी रगों में बहते हो
सिर्फ एक तुम
मेरे मन में रहते हो ।।अक्षतं।।
आँसू इन आँखों में,
लिये आया मैं गुल नन्दन हाथों में
है फक्र मुझे इस बात का
‘के गली गली जिक्र इस बात का
बन के लहू मेरी रगों में बहते हो
सिर्फ एक तुम
मेरे मन में रहते हो ।।पुष्पं।।
आँसू इन आँखों में,
लिये आया मैं घृत व्यंजन हाथों में
है फक्र मुझे इस बात का
‘के गली गली जिक्र इस बात का
बन के लहू मेरी रगों में बहते हो
सिर्फ एक तुम
मेरे मन में रहते हो ।।नैवेद्यं।।
आँसू इन आँखों में,
लिये आया मैं लौं अनगिन हाथों में
है फक्र मुझे इस बात का
‘के गली गली जिक्र इस बात का
बन के लहू मेरी रगों में बहते हो
सिर्फ एक तुम
मेरे मन में रहते हो ।।दीपं।।
आँसू इन आँखों में,
लिये आया मैं सुगंध अन हाथों में
है फक्र मुझे इस बात का
‘के गली गली जिक्र इस बात का
बन के लहू मेरी रगों में बहते हो
सिर्फ एक तुम
मेरे मन में रहते हो ।।धूपं।।
आँसू इन आँखों में,
लिये आया मैं फल सुरगन हाथों में
है फक्र मुझे इस बात का
‘के गली गली जिक्र इस बात का
बन के लहू मेरी रगों में बहते हो
सिर्फ एक तुम
मेरे मन में रहते हो ।।फलं।।
आँसू इन आँखों में,
लिये आया मैं जल चन्दन हाथों में
है फक्र मुझे इस बात का
‘के गली गली जिक्र इस बात का
बन के लहू मेरी रगों में बहते हो
सिर्फ एक तुम
मेरे मन में रहते हो ।।अर्घ्यं।।
=कीर्तन=
वन्दनम् वन्दनम्
जय श्री मन्त नन्दनम्
विद्या-सिन्ध वन्दनम्
वन्दनम् वन्दनम्
जयमाला
मेरा मन विराजे तुम चरण में
तुम चरण विराजें मेरे मन से
बस गुजारिश,
न और ख्वाहिश
मैं जब तक रहूँ इस नश्वर तन में
मन ये मेरा चंचल बड़ा
पाप करते रहता खड़ा
इसे अपनी छाह में दे दो जगह जरा
करके कृपा
बस गुजारिश,
न और ख्वाहिश
मैं जब तक रहूँ इस नश्वर तन में
मेरा मन विराजे तुम चरण में
तुम चरण विराजें मेरे मन से
बस गुजारिश,
न और ख्वाहिश
मैं जब तक रहूँ इस नश्वर तन में
जब देखो तब मिले खाते चुगली
जब देखो तब छाने औरन गली
इसे सच्ची राह पे लगा दो जरा
मन ये मेरा चंचल बड़ा
पाप करते रहता खड़ा
इसे अपनी छाह में दे दो जगह जरा
करके कृपा
बस गुजारिश,
न और ख्वाहिश
मैं जब तक रहूँ इस नश्वर तन में
मेरा मन विराजे तुम चरण में
तुम चरण विराजें मेरे मन से
बस गुजारिश,
न और ख्वाहिश
मैं जब तक रहूँ इस नश्वर तन में
बन बन के सोने की हा ! आदत इसे
रुचती अंधेरे की इबादत इसे
हुई सुबह कहके, इसे जगा दो जरा
मन ये मेरा चंचल बड़ा
पाप करते रहता खड़ा
इसे अपनी छाह में दे दो जगह जरा
करके कृपा
बस गुजारिश,
न और ख्वाहिश
मैं जब तक रहूँ इस नश्वर तन में
मेरा मन विराजे तुम चरण में
तुम चरण विराजें मेरे मन से
बस गुजारिश,
न और ख्वाहिश
मैं जब तक रहूँ इस नश्वर तन में
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
चाल सुलह की चालें
कृपया वो मुझे सँभालें
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