- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 989
मेरा मन विराजे तुम चरण में
तुम चरण विराजें मेरे मन में
उम्र भर
जन्म हर
और न बस, इतना कर दो मेरे गुरुवर
‘के तुम चरण विराजें मेरे मन में
मेरा मन विराजे तुम चरण में ।।स्थापना।।
मैं लाया हूँ दृग-जल तुम चरण में
आया हूँ समेत श्रद्धा सुमन मैं
बस गुजारिश
न और ख्वाहिश
मैं जब तक रहूँ इस नश्वर तन में
तुम चरण विराजें मेरे मन में
मेरा मन विराजे तुम चरण में ।।जलं।।
मैं लाया हूँ चन्दन तुम चरण में
आया हूँ समेत श्रद्धा सुमन मैं
बस गुजारिश
न और ख्वाहिश
मैं जब तक रहूँ इस नश्वर तन में
तुम चरण विराजें मेरे मन में
मेरा मन विराजे तुम चरण में ।।चन्दनं।।
मैं लाया हूँ अक्षत तुम चरण में
आया हूँ समेत श्रद्धा सुमन मैं
बस गुजारिश
न और ख्वाहिश
मैं जब तक रहूँ इस नश्वर तन में
तुम चरण विराजें मेरे मन में
मेरा मन विराजे तुम चरण में ।।अक्षतं।।
मैं लाया हूँ लर-गुल तुम चरण में
आया हूँ समेत श्रद्धा सुमन मैं
बस गुजारिश
न और ख्वाहिश
मैं जब तक रहूँ इस नश्वर तन में
तुम चरण विराजें मेरे मन में
मेरा मन विराजे तुम चरण में ।।पुष्पं।।
मैं लाया हूँ व्यंजन तुम चरण में
आया हूँ समेत श्रद्धा सुमन मैं
बस गुजारिश
न और ख्वाहिश
मैं जब तक रहूँ इस नश्वर तन में
तुम चरण विराजें मेरे मन में
मेरा मन विराजे तुम चरण में ।।नैवेद्यं।।
मैं लाया हूँ दीपक तुम चरण में
आया हूँ समेत श्रद्धा सुमन मैं
बस गुजारिश
न और ख्वाहिश
मैं जब तक रहूँ इस नश्वर तन में
तुम चरण विराजें मेरे मन में
मेरा मन विराजे तुम चरण में ।।दीपं।।
मैं लाया हूँ सुर’भी तुम चरण में
आया हूँ समेत श्रद्धा सुमन मैं
बस गुजारिश
न और ख्वाहिश
मैं जब तक रहूँ इस नश्वर तन में
तुम चरण विराजें मेरे मन में
मेरा मन विराजे तुम चरण में ।।धूपं।।
मैं लाया हूँ श्री फल तुम चरण में
आया हूँ समेत श्रद्धा सुमन मैं
बस गुजारिश
न और ख्वाहिश
मैं जब तक रहूँ इस नश्वर तन में
तुम चरण विराजें मेरे मन में
मेरा मन विराजे तुम चरण में ।।फलं।।
मैं लाया हूँ जल, फल तुम चरण में
आया हूँ समेत श्रद्धा सुमन मैं
बस गुजारिश
न और ख्वाहिश
मैं जब तक रहूँ इस नश्वर तन में
तुम चरण विराजें मेरे मन में
मेरा मन विराजे तुम चरण में ।।अर्घ्यं।।
=कीर्तन=
लघु नन्दन पुरु देव
जय जय जय जय गुरु देव
जयतु जय लघु नन्दन पुरु देव
जयमाला
नेकी का रास्ता दिखा हो
गुरु जी ढ़ाई आखर सिखा दो
दुनिया का दुनिया कुछ हटके है
एक को दूसरा यहाँ खटके है
जायका मानवता चखा दो
गुरु जी ढ़ाई आखर सिखा दो
नेकी का रास्ता दिखा हो
गुरु जी ढ़ाई आखर सिखा दो
छोटी मछली, बड़ी परेशाँ है
सर चढ़ के बोलता आज पैसा है
लकीरों में सहजता लिखा दो
गुरु जी ढ़ाई आखर सिखा दो
नेकी का रास्ता दिखा हो
गुरु जी ढ़ाई आखर सिखा दो
अत्त फिर ढ़ाने लगी हिंसा है
संवेदना शून कलजुग इन्साँ है
शरमो-हया लाज रखा दो
गुरु जी ढ़ाई आखर सिखा दो
नेकी का रास्ता दिखा हो
गुरु जी ढ़ाई आखर सिखा दो
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
दो तकदीर बना
बनाया नीर को क्षीर सुना
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