- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 988
भाग्य विधाता है
तू किमिच्छ दाता है
और मेरा माँगने से नाता है
तू मेरा भाग्य विधाता है ।।स्थापना।।
मेरे पास और ज्यादा तो कुछ नहीं
बस ये दृग्-जल है,
लो स्वीकार यही
तुझे एक का सवाया,
लौटाना खूब आता है
और मेरा माँगने से नाता है
तू मेरा भाग्य विधाता है ।।जलं।।
मेरे पास और ज्यादा तो कुछ नहीं
बस ये महकता किरदार है,
लो स्वीकार यही
तुझे एक का सवाया,
लौटाना खूब आता है
और मेरा माँगने से नाता है
तू मेरा भाग्य विधाता है ।।चन्दनं।।
मेरे पास और ज्यादा तो कुछ नहीं
बस ये अक्षत विश्वास है,
लो स्वीकार यही
तुझे एक का सवाया,
लौटाना खूब आता है
और मेरा माँगने से नाता है
तू मेरा भाग्य विधाता है ।।अक्षतं।।
मेरे पास और ज्यादा तो कुछ नहीं
बस ये श्रद्धा सुमन हैं,
लो स्वीकार यही
तुझे एक का सवाया,
लौटाना खूब आता है
और मेरा माँगने से नाता है
तू मेरा भाग्य विधाता है ।।पुष्पं।।
मेरे पास और ज्यादा तो कुछ नहीं
बस ये व्यंजन स्वर हैं,
लो स्वीकार यही
तुझे एक का सवाया,
लौटाना खूब आता है
और मेरा माँगने से नाता है
तू मेरा भाग्य विधाता है ।।नैवेद्यं।।
मेरे पास और ज्यादा तो कुछ नहीं
बस ये अनबुझ लौं है,
लो स्वीकार यही
तुझे एक का सवाया,
लौटाना खूब आता है
और मेरा माँगने से नाता है
तू मेरा भाग्य विधाता है ।।दीपं।।
मेरे पास और ज्यादा तो कुछ नहीं
बस ये सुर’भी श्वास है,
लो स्वीकार यही
तुझे एक का सवाया,
लौटाना खूब आता है
और मेरा माँगने से नाता है
तू मेरा भाग्य विधाता है ।।धूपं।।
मेरे पास और ज्यादा तो कुछ नहीं
बस ये हाथों का श्रीफल है,
लो स्वीकार यही
तुझे एक का सवाया,
लौटाना खूब आता है
और मेरा माँगने से नाता है
तू मेरा भाग्य विधाता है ।।फलं।।
मेरे पास और ज्यादा तो कुछ नहीं
बस ये भाव शबरी हैं,
लो स्वीकार यही
तुझे एक का सवाया,
लौटाना खूब आता है
और मेरा माँगने से नाता है
तू मेरा भाग्य विधाता है ।।अर्घ्यं।।
=कीर्तन=
आचार्य श्री जी जय
जय आचार्य श्री जी जय
जय जय
जय जय
आचार्य श्री जी जय
जय आचार्य श्री जी जय
जयमाला
कहीं और न जाऊँगा
लेकर के के अपना रोना
और जाऊँ भी तो कहाँ
तुम अकेले ही जो मेरे हो ना
कृपा बरसा भी दो ना
हो चला कुन्द-कुन्द भगवन्
करने वाला गायों का पालन
मेरी भी चाँदी मचले होने सोना
कृपा बरसा भी दो ना
कहीं और न जाऊँगा
लेकर के के अपना रोना
और जाऊँ भी तो कहाँ
तुम अकेले ही जो मेरे हो ना
कृपा बरसा भी दो ना
छूके जटायु गन्धोदक
पा गया कुछ हटके की चमक
जानते ही होगे कुछ जादू टोना
कृपा बरसा भी दो ना
कहीं और न जाऊँगा
लेकर के के अपना रोना
और जाऊँ भी तो कहाँ
तुम अकेले ही जो मेरे हो ना
कृपा बरसा भी दो ना
नाग नकुल कपि ‘दिया’ पा गये
पार वैतरणी नदिया पा गये
देत दो मुझे अपने चरणों का एक कोना
कृपा बरसा भी दो ना
कहीं और न जाऊँगा
लेकर के के अपना रोना
और जाऊँ भी तो कहाँ
तुम अकेले ही जो मेरे हो ना
कृपा बरसा भी दो ना
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
कृपा तुमरी बरसती रहे यूँ ही,
‘जि गुरु जी
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