- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 952
सागर-सागर खारा पानी
विद्या-सागर अमरित वाणी
जग कल्याणी
औघड़-दानी
विद्या-सागर अमरित वाणी
सागर-सागर खारा पानी
विद्या-सागर अमरित वाणी ।।स्थापना।।
कंचन कलशे
भर के जल से
भेंट, विहरने गफलत श्वानी
विद्या-सागर अमरित वाणी
सागर-सागर खारा पानी
विद्या-सागर अमरित वाणी ।।जलं।।
मलय पहाड़ी
चन्दन झारी
भेंट, बन सकूँ सम-रससानी
विद्या-सागर अमरित वाणी
सागर-सागर खारा पानी
विद्या-सागर अमरित वाणी ।।चन्दनं।।
सार्थक नामा
‘अज’ अभिरामा
भेंट, अपूरब बनने ध्यानी
विद्या-सागर अमरित वाणी
सागर-सागर खारा पानी
विद्या-सागर अमरित वाणी ।।अक्षतं।।
पुष्प सुहाने
भ्रमर दिवाने
भेंट, विहँसने मदन कहानी
विद्या-सागर अमरित वाणी
सागर-सागर खारा पानी
विद्या-सागर अमरित वाणी ।।पुष्पं।।
गो-घृत वाली
चरु मनहारी
भेंट, निरखने निध लासानी
विद्या-सागर अमरित वाणी
सागर-सागर खारा पानी
विद्या-सागर अमरित वाणी ।।नैवेद्यं।।
मण रत्नों के
दीप अनोखे
भेंट, भीतरी बनने ज्ञानी
विद्या-सागर अमरित वाणी
सागर-सागर खारा पानी
विद्या-सागर अमरित वाणी ।।दीपं।।
नन्दन क्यारी
सुगंध न्यारी
भेंट, हेत कल पातर-पाणी
विद्या-सागर अमरित वाणी
सागर-सागर खारा पानी
विद्या-सागर अमरित वाणी ।।धूपं।।
नन्द बगाना
फल रित नाना
भेंट, हेत दिव-शिव रजधानी
विद्या-सागर अमरित वाणी
सागर-सागर खारा पानी
विद्या-सागर अमरित वाणी ।।फलं।।
खुशबू फूटे
द्रव्य अनूठे
भेंट, विनशने आनी-जानी
विद्या-सागर अमरित वाणी
सागर-सागर खारा पानी
विद्या-सागर अमरित वाणी ।।अर्घ्यं।।
*हाईकू*
सौंपी जिसने गुरु ड़ोरी
दिवाली उसकी होली
…जयमाला…
ऐसी रत्न-दीप की ज्योती ही नहीं
सागर के पास ऐसा मोति ही नहीं
जैसे हो तुम
जाने, कैसे हो तुम
तुम्हें किसी से भी जलन होती ही नहीं
सागर के पास ऐसा मोति ही नहीं
पास आसमाँ ऐसा तारा ही नहीं
धौरी ऐसी दरिया की धारा ही नहीं
जैसे हो तुम
जाने, कैसे हो तुम
पास तुम्हारे पापों की बपौती ही नहीं
सागर के पास ऐसा मोति ही नहीं
ऐसी रत्न-दीप की ज्योती ही नहीं
सागर के पास ऐसा मोति ही नहीं
जैसे हो तुम
जाने, कैसे हो तुम
तुम्हें किसी से भी जलन होती ही नहीं
सागर के पास ऐसा मोति ही नहीं
महकता यूं बगिया का फूल ही नहीं
चन्दन सी और पैरों की धूल ही नहीं
कोई तुम सा है दूसरा इस दुनिया में
ये मुझे क्या ?
इस दुनिया को भी कबूल ही नहीं
पास आसमाँ ऐसा तारा ही नहीं
धौरी ऐसी दरिया की धारा ही नहीं
जैसे हो तुम
जाने, कैसे हो तुम
पास तुम्हारे पापों की बपौती ही नहीं
सागर के पास ऐसा मोति ही नहीं
ऐसी रत्न-दीप की ज्योती ही नहीं
सागर के पास ऐसा मोति ही नहीं
जैसे हो तुम
जाने, कैसे हो तुम
तुम्हें किसी से भी जलन होती ही नहीं
सागर के पास ऐसा मोति ही नहीं
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
*हाईकू*
बहुत अच्छे
होते गुरु जी
जैसे
निश्छल बच्चे
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