परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 95
तॉंता लगा न रहता यूॅं ही,श्री गुरु के द्वारे ।
शरण सहारे,श्री गुरु देव चरण तारण हारे ।।
कहती दुनिया सारी है ।
राय न सिर्फ हमारी है ॥
नजर उठा दें श्री गुरुवर,मिट जाते अंधियारे ।।
।। स्थापना ।।
पाप कर्म की सह पाकर के,
कष्ट रोग देते सारे ।
राम बाण औषध ले आशा,
फिरता हा ! द्वारे-द्वारे ॥
मणि-मन्तर पर्याय-वाच हैं,
जग-जाहिर श्री गुरु चरणा ।
ऐसा कर श्रृद्धान अटल मैं,
आया अब श्री गुरु शरणा ।।जलं।।
कहो ऊपरी बाधायें कब,
बिन कर्मोदय आतीं हैं ।
ले अंखिंयाँ क्या शान्ति आश ना,
द्वार द्वार झुक जातीं हैं ।।
मणि-मन्तर पर्याय-वाच हैं,
जग-जाहिर श्री गुरु चरणा ।
ऐसा कर श्रृद्धान अटल मैं,
आया अब श्री गुरु शरणा ।।चंदन।।
हो सकता अपयश मेरा क्या,
पाप कर्म के बिन भाई ।
सिंह-प्रवृत्ति तज,वृत्ति-श्वान भज,
हा ! कब ना मुॅंह की खाई ।।
मणि-मन्तर पर्याय-वाच हैं,
जग-जाहिर श्री गुरु चरणा ।
ऐसा कर श्रृद्धान अटल मैं,
आया अब श्री गुरु शरणा ।।अक्षतम्।।
कर्म विपाक बिना क्या बाधा,
भूत-प्रेत टिक सकती है ।
हो विचलित पर परिणति मेरी,
मन्त्रवादि मुख तकती है ।।
मणि-मन्तर पर्याय-वाच हैं,
जग-जाहिर श्री गुरु चरणा ।
ऐसा कर श्रृद्धान अटल मैं,
आया अब श्री गुरु शरणा ।।पुष्पं।।
कहो, विषैले प्राणी देते,
बिन पापोदय कब पीड़ा ।
डर कर दर किस-किस ना देता,
ले श्री-फल रक्षा बीड़ा ।।
मणि-मन्तर पर्याय-वाच हैं,
जग-जाहिर श्री गुरु चरणा ।
ऐसा कर श्रृद्धान अटल मैं,
आया अब श्री गुरु शरणा ।।नैवेद्यं।।
कब कालीं विद्यायें सारीं,
बिन पापोदय तड़फातीं ।
समता धन विसरा नजरें हा !
किल्विष झाँसों में आतीं ।।
मणि-मन्तर पर्याय-वाच हैं,
जग-जाहिर श्री गुरु चरणा ।
ऐसा कर श्रृद्धान अटल मैं,
आया अब श्री गुरु शरणा ।।दीपं।।
हाय ! विघन व्यापार आदि सब,
पापोदय की माया है ।
झुटलाने विधि मंत्र-तंत्र हा !
क्या-क्या ना अपनाया है ॥
मणि-मन्तर पर्याय-वाच हैं,
जग-जाहिर श्री गुरु चरणा ।
ऐसा कर श्रृद्धान अटल मैं,
आया अब श्री गुरु शरणा ।।धूपं।।
पुर-परिजन कब पापोदय बिन,
बने अकारण दुखदाई ।
भूल ‘सिया’ बिच दोषारोपण,
जाने क्यूॅं मन भरमाई ।।
मणि-मन्तर पर्याय-वाच हैं,
जग-जाहिर श्री गुरु चरणा ।
ऐसा कर श्रृद्धान अटल मैं,
आया अब श्री गुरु शरणा ।।फलं।।
पूर्वो-पार्जित कर्मोदय बिन,
अल्प-मृत्यु कब आये है ।
जाने क्यूॅं भयभीत, हुआ मन,
दर-दर रोये गाये है ॥
मणि-मन्तर पर्याय-वाच हैं,
जग-जाहिर श्री गुरु चरणा ।
ऐसा कर श्रृद्धान अटल मैं,
आया अब श्री गुरु शरणा ।।अर्घं।।
दोहा=
नभ सदलगा सितार ओ,
नन्दन मॉं श्री मन्त ।
सन्त सन्त सिर-मौर ओ,
वन्दन सहज अनन्त ।।
“जयमाला”
लेते ही सद्-गुरु नाम ।
बन चलते बिगड़े काम ।।
गुरु नाम श्वास निश्वास ।
गुरु नाम दूज विश्वास ।।
प्राणन प्यारा गुरु नाम ।
तारण हारा गुरु नाम ।।
गुरु नाम दुक्ख हरतार ।
गुरु-नाम सौख्य करतार ॥
लेते ही सद्-गुरु नाम ।
बन चलते बिगड़े काम ।।
गुरु नाम श्वास निश्वास ।
गुरु नाम दूज विश्वास ।।
संकट मोचन गुरु नाम ।
भीतर लोचन गुरु नाम ॥
गुरु नाम अमंगल हार ।
गुरु नाम सुमंगल कार ।।
लेते ही सद्-गुरु नाम ।
बन चलते बिगड़े काम ।।
गुरु नाम श्वास निश्वास ।
गुरु नाम दूज विश्वास ।।
प्रद हंसी मत गुरु नाम ।
पद-वंशी प्रद गुरु नाम ।।
गुरु नाम सहाई एक ।
गुरु नाम सॉंच अभिलेख ।।
लेते ही सद्-गुरु नाम ।
बन चलते बिगड़े काम ।।
गुरु नाम श्वास निश्वास ।
गुरु नाम दूज विश्वास ।।
बढ़ मण पारस गुरु नाम |
पत-झड़ पावस गुरु नाम ॥
गुरु नाम समाधी शाम ।
गुरु नाम ‘निराकुल-धाम’ ।।
लेते ही सद्-गुरु नाम ।
बन चलते बिगड़े काम ।।
गुरु नाम श्वास निश्वास ।
गुरु नाम दूज विश्वास ।।जयमाला पूर्णार्घं।।
“दोहा”
गुरु गुण-कीर्तन में थका,
जब ज्ञानी अमरेश ।
मुझ जैसे की बात क्या,
जिस में मति लव-लेश ॥
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