- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 940
नहीं दूजा, नहीं दूजा, नहीं दूजा
विद्या सागर जैसा सन्त नहीं दूजा
दिग्-दिगन्त
गगन पर्यन्त
नहीं दूजा
उतर कर स्वर्गों से, जिसे देवों ने पूजा
विद्या सागर जैसा सन्त नहीं दूजा ।।स्थापना।।
निर्मल अंतरंग
हम लाये जल गंग
दिग्-दिगन्त
गगन पर्यन्त
नहीं दूजा
उतर कर स्वर्गों से, जिसे देवों ने पूजा
विद्या सागर जैसा सन्त नहीं दूजा ।।जलं।।
निर्मल अंतरंग
हम लाये घट गंध
दिग्-दिगन्त
गगन पर्यन्त
नहीं दूजा
उतर कर स्वर्गों से, जिसे देवों ने पूजा
विद्या सागर जैसा सन्त नहीं दूजा ।।चन्दनं।।
निर्मल अंतरंग
हम लाये धाँ ‘नन्द’
दिग्-दिगन्त
गगन पर्यन्त
नहीं दूजा
उतर कर स्वर्गों से, जिसे देवों ने पूजा
विद्या सागर जैसा सन्त नहीं दूजा ।।अक्षतं।।
निर्मल अंतरंग
हम लाये निशिगंध
दिग्-दिगन्त
गगन पर्यन्त
नहीं दूजा
उतर कर स्वर्गों से, जिसे देवों ने पूजा
विद्या सागर जैसा सन्त नहीं दूजा ।।पुष्पं।।
निर्मल अंतरंग
हम लाये गुलकंद
दिग्-दिगन्त
गगन पर्यन्त
नहीं दूजा
उतर कर स्वर्गों से, जिसे देवों ने पूजा
विद्या सागर जैसा सन्त नहीं दूजा ।।नैवेद्यं।।
निर्मल अंतरंग
हम लाये लौं नन्त
दिग्-दिगन्त
गगन पर्यन्त
नहीं दूजा
उतर कर स्वर्गों से, जिसे देवों ने पूजा
विद्या सागर जैसा सन्त नहीं दूजा ।।दीपं।।
निर्मल अंतरंग
हम लाये दश-गंध
दिग्-दिगन्त
गगन पर्यन्त
नहीं दूजा
उतर कर स्वर्गों से, जिसे देवों ने पूजा
विद्या सागर जैसा सन्त नहीं दूजा ।।धूपं।।
निर्मल अंतरंग
हम लाये नारंग
दिग्-दिगन्त
गगन पर्यन्त
नहीं दूजा
उतर कर स्वर्गों से, जिसे देवों ने पूजा
विद्या सागर जैसा सन्त नहीं दूजा ।।फलं।।
निर्मल अंतरंग
हम लाये जल-गंध
दिग्-दिगन्त
गगन पर्यन्त
नहीं दूजा
उतर कर स्वर्गों से, जिसे देवों ने पूजा
विद्या सागर जैसा सन्त नहीं दूजा ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
गुरु जी दिखें आसमां में,
चूँकि ले भार न घूमें
जयमाला
गुरु ज्ञान सिन्धु उपवन
पा विद्या सिन्ध सुमन
आया सुर्ख़ियों में
चूँकि छू रहा गगन
न सिर्फ दूर तक
सुदूर तक
जा रही है उड़ी-उड़ी खुशबू
‘के सिर्फ तुझ जैसा ही तू
घनी छाया गर्मियों में
आया सुर्ख़ियों में
गुरु ज्ञान सिन्धु उपवन
पा विद्या सिन्ध सुमन
आया सुर्ख़ियों में
चूँकि छू रहा गगन
न सिर्फ़ नज़र तक
जिगर तक
जा के बस रही है कुछ धस के
छठे नूर
‘के तुझ जैसा न कोई तलक दूर
न सिर्फ दूर तक
सुदूर तक
जा रही है उड़ी-उड़ी खुशबू
‘के सिर्फ तुझ जैसा ही तू
घनी छाया गर्मियों में
आया सुर्ख़ियों में
गुरु ज्ञान सिन्धु उपवन
पा विद्या सिन्ध सुमन
आया सुर्ख़ियों में
चूँकि छू रहा गगन
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
डरूँ,
मैं सुई
कहीं जाऊँ न खो
दे गुरु-सूत्र दो
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