- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 923
रात ख्वाब देखूँ तो, मुझे तुम चाहिये
जो सुबहो जागूँ तो, मुझे तुम चाहिये
यही उससे गुजारिश मेरी
कोई और न ख्वाहिश मेरी
दुनिया से बिदा लूँ तो,
मुझे सिर्फ तुम चाहिये ।।स्थापना।।
भेंटूँ जल अय ! सूरी तुझे
मृग न कस्तूरी,
उतने तुम जरूरी मुझे
यही उससे गुजारिश मेरी
कोई और न ख्वाहिश मेरी
दुनिया से बिदा लूँ तो,
मुझे सिर्फ तुम चाहिये ।।जलं।।
भेंटूँ चन्दन चूरी तुझे
मृग न कस्तूरी,
उतने तुम जरूरी मुझे
यही उससे गुजारिश मेरी
कोई और न ख्वाहिश मेरी
दुनिया से बिदा लूँ तो,
मुझे सिर्फ तुम चाहिये ।।चन्दनं।।
भेंटूँ धान भूरी तुझे
मृग न कस्तूरी,
उतने तुम जरूरी मुझे
यही उससे गुजारिश मेरी
कोई और न ख्वाहिश मेरी
दुनिया से बिदा लूँ तो,
मुझे सिर्फ तुम चाहिये ।।अक्षतं।।
भेंटूँ लर-गुल जूही तुझे
मृग न कस्तूरी,
उतने तुम जरूरी मुझे
यही उससे गुजारिश मेरी
कोई और न ख्वाहिश मेरी
दुनिया से बिदा लूँ तो,
मुझे सिर्फ तुम चाहिये ।।पुष्पं।।
भेंटूँ चरु खजूरी तुझे
मृग न कस्तूरी,
उतने तुम जरूरी मुझे
यही उससे गुजारिश मेरी
कोई और न ख्वाहिश मेरी
दुनिया से बिदा लूँ तो,
मुझे सिर्फ तुम चाहिये ।।नैवेद्यं।।
भेंटूँ ज्योत कपूरी तुझे
मृग न कस्तूरी,
उतने तुम जरूरी मुझे
यही उससे गुजारिश मेरी
कोई और न ख्वाहिश मेरी
दुनिया से बिदा लूँ तो,
मुझे सिर्फ तुम चाहिये ।।दीपं।।
भेंटूँ अर खुशबू ई तुझे
मृग न कस्तूरी,
उतने तुम जरूरी मुझे
यही उससे गुजारिश मेरी
कोई और न ख्वाहिश मेरी
दुनिया से बिदा लूँ तो,
मुझे सिर्फ तुम चाहिये ।।धूपं।।
भेंटूँ फल छव नूरी तुझे
मृग न कस्तूरी,
उतने तुम जरूरी मुझे
यही उससे गुजारिश मेरी
कोई और न ख्वाहिश मेरी
दुनिया से बिदा लूँ तो,
मुझे सिर्फ तुम चाहिये ।।फलं।।
भेंटूँ द्रव्य पूरी तुझे
मृग न कस्तूरी,
उतने तुम जरूरी मुझे
यही उससे गुजारिश मेरी
कोई और न ख्वाहिश मेरी
दुनिया से बिदा लूँ तो,
मुझे सिर्फ तुम चाहिये ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
भरे न मन,
आँख से
हाथ से
लो छुवा चरण
जयमाला
मुझे विश्वास है
रहता तू मेरे आस-पास है
अहमीयत अहसासों की
बन करके खुशबू सासों की
रहता तू मेरे आस-पास है
मुझे विश्वास है
रहता तू मेरे आस-पास है
सरगम हल्की हल्की
बन करके धड़कन दिल की
रहता तू मेरे आस-पास है
मुझे विश्वास है
रहता तू मेरे आस-पास है
जिस्म भले जुदा एक रूह
बन करने रग-रग में लहू
रहता तू मेरे आस-पास है
मुझे विश्वास है
रहता तू मेरे आस-पास है
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
गुरु जी,
दूजी मूरत रब की,
जो सोचे सब की
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