- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 909
दृग् सजल
सजग पल-पल
गुरु कुन्द-कुन्द जैसा
तू बिलकुल हूबहू कुन्दन जैसा
सौ टंच खरा
दृग् मन-हरा
गुरु कुन्द-कुन्द जैसा ।।स्थापना।।
श्रद्धा सुमन समेत
आया हूँ
मैं लाया हूँ
जल गंग-भेंट
श्रद्धा सुमन समेत ।।जलं।।
श्रद्धा सुमन समेत
आया हूँ
मैं लाया हूँ
घट गंध भेंट
श्रद्धा सुमन समेत ।।चन्दनं।।
श्रद्धा सुमन समेत
आया हूँ
मैं लाया हूँ
धाँ पुञ्ज भेंट
श्रद्धा सुमन समेत ।।अक्षतं।।
श्रद्धा सुमन समेत
आया हूँ
मैं लाया हूँ
गुल नन्द भेंट
श्रद्धा सुमन समेत ।।पुष्पं।।
श्रद्धा सुमन समेत
आया हूँ
मैं लाया हूँ
गुल-कंद भेंट
श्रद्धा सुमन समेत ।।नैवेद्यं।।
श्रद्धा सुमन समेत
आया हूँ
मैं लाया हूँ
लौं नन्द भेंट
श्रद्धा सुमन समेत ।।दीपं।।
श्रद्धा सुमन समेत
आया हूँ
मैं लाया हूँ
दश गंध भेंट
श्रद्धा सुमन समेत ।।धूपं।।
श्रद्धा सुमन समेत
आया हूँ
मैं लाया हूँ
नारंग भेंट
श्रद्धा सुमन समेत ।।फलं।।
श्रद्धा सुमन समेत
आया हूँ
मैं लाया हूँ
सा’मन्त’ भेंट
श्रद्धा सुमन समेत ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
लो पाप ‘धी’ से बचा,
आपकी पूजा मैं रहा रचा
जयमाला
नहीं दूजा,
नहीं दूजा,
नहीं दूजा…
विद्या सागर जैसा सन्त, नहीं दूजा
दिग्-दिगन्त
गगन पर्यन्त
विद्या सागर जैसा सन्त, नहीं दूजा
उतर कर स्वर्गों से,
जिसे देवों ने पूजा
विद्या सागर जैसा सन्त, नहीं दूजा
काल चतुर्थ तपस्या से,
एक जिसका रिश्ता है
चेहरे से जिसके तेज टपकता है
काल चतुर्थ तपस्या से,
एक जिसका रिश्ता है
ग्रन्थ गुरु कुन्द-कुन्द जीवन्त
दिग्-दिगन्त
गगन पर्यन्त
विद्या सागर जैसा सन्त, नहीं दूजा
उतर कर स्वर्गों से,
जिसे देवों ने पूजा
विद्या सागर जैसा सन्त, नहीं दूजा
देख पराई पीर,
हृदय जिसका सिसकता है
नहीं दूजा,
नहीं दूजा,
नहीं दूजा…
विद्या सागर जैसा सन्त, नहीं दूजा
दिग्-दिगन्त
गगन पर्यन्त
विद्या सागर जैसा सन्त, नहीं दूजा
उतर कर स्वर्गों से,
जिसे देवों ने पूजा
विद्या सागर जैसा सन्त, नहीं दूजा
काल चतुर्थ तपस्या से,
एक जिसका रिश्ता है
चेहरे से जिसके तेज टपकता है
काल चतुर्थ तपस्या से,
एक जिसका रिश्ता है
ग्रन्थ गुरु कुन्द-कुन्द जीवन्त
दिग्-दिगन्त
गगन पर्यन्त
विद्या सागर जैसा सन्त, नहीं दूजा
उतर कर स्वर्गों से,
जिसे देवों ने पूजा
विद्या सागर जैसा सन्त, नहीं दूजा
पुल पर प्रशंस बाँधते
मन जिसका न थकता हैं
नहीं दूजा,
नहीं दूजा,
नहीं दूजा…
विद्या सागर जैसा सन्त, नहीं दूजा
दिग्-दिगन्त
गगन पर्यन्त
विद्या सागर जैसा सन्त, नहीं दूजा
उतर कर स्वर्गों से,
जिसे देवों ने पूजा
विद्या सागर जैसा सन्त, नहीं दूजा
काल चतुर्थ तपस्या से,
एक जिसका रिश्ता है
चेहरे से जिसके तेज टपकता है
काल चतुर्थ तपस्या से,
एक जिसका रिश्ता है
ग्रन्थ गुरु कुन्द-कुन्द जीवन्त
दिग्-दिगन्त
गगन पर्यन्त
विद्या सागर जैसा सन्त, नहीं दूजा
उतर कर स्वर्गों से,
जिसे देवों ने पूजा
विद्या सागर जैसा सन्त, नहीं दूजा
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
रख चरणों में, यहीं कहीं लो
‘जि गुरु जी सुनो
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