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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 899

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 899

क्षीर ने नीर को समझने में,
देर कब की
गुरुदेव ने पीर को समझने में,
देर कब की

कहो कभी बादलों को,
कुछ लेते देखा
जब देखा गुरुदेव को,
दिल खोल के देते देखा
जब देखा गुरुदेव को,
दिल खोल के देते देखा ।।स्थापना।।

गंग जल
दृग् सजल !
नजर एक डाल दो
जिन्दगी संवार दो,
मेरी जिन्दगी संवार दो ।।जलं।।

रज-मलय
सदय हृदय !
नजर एक डाल दो
जिन्दगी संवार दो,
मेरी जिन्दगी संवार दो ।।चन्दनं।।

शाली धाँ
कृपा निधाँ !
नजर एक डाल दो
जिन्दगी संवार दो,
मेरी जिन्दगी संवार दो ।।अक्षतं।।

नन्द गुल
निरा-कुल !
नजर एक डाल दो
जिन्दगी संवार दो,
मेरी जिन्दगी संवार दो ।।पुष्पं।।

घृत नवेद
ऊर्ध्व रेत !
नजर एक डाल दो
जिन्दगी संवार दो,
मेरी जिन्दगी संवार दो ।।नैवेद्यं।।

दीप घृत
‘गिर’ अमृत !
नजर एक डाल दो
जिन्दगी संवार दो,
मेरी जिन्दगी संवार दो ।।दीपं।।

धूप घट
सूरि भट !
नजर एक डाल दो
जिन्दगी संवार दो,
मेरी जिन्दगी संवार दो ।।धूपं।।

फल सरस
प्रभु सदृश !
नजर एक डाल दो
जिन्दगी संवार दो,
मेरी जिन्दगी संवार दो ।।फलं।।

सब दरब
वृष-गरब !
नजर एक डाल दो
जिन्दगी संवार दो,
मेरी जिन्दगी संवार दो ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
ठानी माया ने माया सकोचनी,
श्री गुरु रोशनी

जयमाला
जयतु जयतु जय गुरु-वाणी
जय जयतु जयतु जय गुरु-वाणी

गुड़ से मीठी गुरु-वाणी
अमृत मिश्री गुरु-वाणी
कान्हा मुरली गुरु-वाणी
गुरु-वाणी गंगा-पानी

दे मत हंसी
सन्मत वंशी
सित मुनि मन सी
गुरु-वाणी कलि कल्याणी
गुरु-वाणी गंगा-पानी

गुड़ से मीठी गुरु-वाणी
अमृत मिश्री गुरु-वाणी
कान्हा मुरली गुरु-वाणी
गुरु-वाणी गंगा-पानी

जयतु जयतु जय गुरु-वाणी
जय जयतु जयतु जय गुरु-वाणी

गुड़ से मीठी गुरु-वाणी
अमृत मिश्री गुरु-वाणी
कान्हा मुरली गुरु-वाणी
गुरु-वाणी गंगा-पानी

सहज निराकुल
सुरग धरा पुल
मोक्ष, मिला-कुल
गुरु-वाणी औघड़ दानी
गुरु-वाणी कलि कल्याणी
गुरु-वाणी गंगा पानी

गुड़ से मीठी गुरु-वाणी
अमृत मिश्री गुरु-वाणी
कान्हा मुरली गुरु-वाणी
गुरु-वाणी गंगा-पानी

जयतु जयतु जय गुरु-वाणी
जय जयतु जयतु जय गुरु-वाणी

गुड़ से मीठी गुरु-वाणी
अमृत मिश्री गुरु-वाणी
कान्हा मुरली गुरु-वाणी
गुरु-वाणी गंगा-पानी

जयतु जयतु जय गुरु-वाणी
जय जयतु जयतु जय गुरु-वाणी
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
भले जर्रा,
है बहुत
गुरु मुख दिया अमृत

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