परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 90
गुरु से लगन लगाई मैंने,
गुरु से लगन लगाई ।
गुरु दूजे जिनराई मैंने,
गुरु से लगन लगाई ।।
अब ना स्वर्ग सुदूर दूर ना,
मुझसे शिव ठकुराई ।
गुरु से लगन लगाई मैंने,
गुरु से लगन लगाई ।। स्थापना।।
आया गुरु दरबार लिये जल,
निज अन्तर् मल धोने ।
पाद-मूल गुरु-देव-शास्त्र-भू ,
सम्यक् दर्शन बोने ।।जलं।।
ले सुरभित चन्दन मैं गुरुवर,
द्वार आपके आया ।
अपना बनकर ठगे जा रही,
मृग मरीचिका माया ।।चंदन।।
पाने पद अखण्ड,अक्षत में,
लाया दर पर तेरे ।
तुझे भुला कर लगे हाथ,
गति लख चौरासी फेरे ।।अक्षतम्।।
चुन-चुन पुष्प सुकोमल सुरभित,
लाया चरण चढ़ाने ।
रहे धधकती पहर पहर जो,
वो कामाग्नि बुझाने।। पुष्पं ।।
घृत निर्मित नैवेद्य लिये मैं ,
आया तेरे द्वारे ।
क्षुधा रोग संतापित मुझको,
कलि तुम एक सहारे ।। नैवेद्यं।।
मण दीपक ले गुरु चरणन में,
मैंने किया निवासा ।
स्वर्ण सुगंध ‘दर्श’ तुम पा,
जागी नव जीवन आशा ।।दीपं ।।
धूप सुगन्धित ले हाथों में ,
आया चरणन खेने ।
आप दया से वसु-विध कर्मन,
मात पलक में देने ।।धूपं ।।
आया द्वारे लिये दिव्य,
ऋत-ऋत फल मधुर रसीले ।
दो वरदान मुक्ति-राधा सॅंग,
गाऊँ गान सुरीले।।फलं।।
दिव्य द्रव्य ले आया गुरु पद,
पूजन सहज रचाने ।
तुम बिन नट-सा नचा,कर्म वश,
अब तिस नाच नचाने।। अर्घं।।
दोहा-
कौन बाद प्रभु ! मोक्ष के,
जग-जन संबल रूप ।
गुरु मूरत सो थाप दी,
बुध,प्रभु सदृश अनूप ॥
॥ जयमाला ॥
गिल्ली लेने गुफा द्वार इक,
आया बाल सलोना ।
मुखड़ा टुकड़ा चाँद जिसे लख,
कौन चाहता खोना ।।
झुका उठाने गिल्ली ‘कि मुनि,
दीखे सम-रस-सानी ।
आत्म ध्यान संलीन दिगम्बर,
निस्पृह अद्भुत ज्ञानी ॥
जिन्हें माटि-मरकत-मण इक-सी ,
इक नमकीन अलोना ।
गिल्ली लेने गुफा द्वार इक,
आया बाल सलोना ।।1।।
पहुँच निकट उसने प्रदक्षिणायें,
गुरु की त्रय कीनी ।
हाथ लिये गिल्ली बैठा मुनि,
चरणन दृष्टि दीनी ॥
टूटा ध्यान,जहाँ बालक,
मुनि ने निरखा वो कोना ।
गिल्ली लेने गुफा-द्वार इक ,
आया बाल सलोना ||2||
पास बुला मुनि ने पूछा,
‘रे ! भविक नाम क्या तेरा ।
क्या बस खेले ही,या करता,
अध्ययन निकट बसेरा ||
मैं कुछ दिन हूँ यहाँ,सीख ले,
थुति,तू बिसर खिलोना ।
गिल्ली लेने गुफा-द्वार इक,
आया बाल सलोना ||3||
नाम हमारा विद्याधर,
माँ रोज धर्म सिखलाती ।
सिर्फ नहीं खेलूँ ,विद्या,
विद्यालय मेरा साथी ॥
कृपया कह दीजे किस थुति से,
चाहें हृदय भिगोना ।
गिल्ली लेने गुफा-द्वार इक,
आया बाल सलोना ||4||
भक्तामर का पाठ सिखाना,
चाहूँ कल से आना ।
पाठ सिखाऊँ,कल आ पुनि वो,
करके याद सुनाना ||
बालक बोला कल क्या आज,
अभी थुति सिखला दो ना ।
गिल्ली लेने गुफा-द्वार इक ,
आया बाल सलोना ||5||
चलो,सिखाता भक्तामर,
कुछ काव्य ध्यान तुम देना ।
अब जाओ हो चली देर पर,
इसे याद कर लेना ॥
शिशु बोला चाहूॅं मैं अभी,
परीक्षा सम्मुख होना ।
गिल्ली लेने गुफा द्वार इक ,
आया बाल सलोना ॥6॥
वाह ! परीक्षा में शत्-प्रतिशत ,
तुमने अंक कमाये ।
प्रखर बुद्धि हे ! देख भाग्य तुम,
मन मेरा हरषाये ॥
है आशीष सुराही बनना,
अबकि न सलिल बिलोना ।
गिल्ली लेने गुफा द्वार इक,
आया बाल सलोना || 7 ||
फलित हुआ आशीष,देश-
भूषण-मुनि नगर पधारे ।
बाल यही बन युवा,पहुँच-
उसने गुरु चरण पखारे ॥
कहा आप दर्शन,सम्यक्-भू ,
चाहूँ ब्रमचर बोना ।
गिल्ली लेने गुफा-द्वार इक ,
आया बाल सलोना || 8 ||
ज्ञान-लगन ने सिन्धु ज्ञान गुरु,
चरण समर्पित कीना ।
मुनि-बोले क्या नाम ? भला क्यों,
मेरा आश्रय लीना ॥
विद्याधर है नाम,चाहता,
अब ना निर्जन रोना ।
गिल्ली लेने गुफा द्वार इक,
आया बाल सलोना ॥9॥
विद्याधर विद्या लेकर कल,
उड़ तो ना जाओगे ।
छोड़े घोड़े गाड़ी प्रभु ! अब,
तो ना ठुकराओगे ।।
धन ! धन ! भो ! देता चारित पर,
सिर्फ काग ना धोना ।
गिल्ली लेने गुफा द्वार इक,
आया बाल सलोना ||10||
इक दिन बोले ज्ञान-गुरु,
दक्षिणा चाहता तुमसे ।
नजर झुकाकर कहा इन्होंने ,
लो चाहो जो हमसे ॥
क्षपक बना लो, ले लो पद अब,
ना हो,बोझा ढोना ।
गिल्ली लेने गुफा-द्वार इक,
आया बाल सलोना ॥11॥
ना ना अभी बाल मैं पद की ,
कहाँ योग्यता धरता ।
मुझे नहीं सुनना कुछ भी,
निज-पद तेरे ‘कर’ करता ॥
भव-भव खाई मुँह की अब ,
सन्मृत्यु सजग सजोना ।
गिल्ली लेने गुफा-द्वार इक ,
आया बाल सलोना ॥12॥
अब जाने को हूँ सो बॉंधो ,
गाँठ न छल अपनाना ।
वचन न देना,देना प्रवचन ,
गुरुकुल संघ बनाना ॥
इक थिर जप नवकार मन्त्र,
तिन तजा शरीर घिनौना ।
गिल्ली लेने गुफा-द्वार इक ,
आया बाल सलोना ||13||
विहर-विहर विद्या गुरु ने जग,
माहन अलख जगाया ।
‘देह जीव है भिन्न’ कहा ना,
करके अलग दिखाया ॥
दे मुस्कान एक,जन-बुध-जन,
कीना जादू टोना ।
गिल्ली लेने गुफा-द्वार इक,
आया बाल सलोना ॥14॥
श्रमण किये अर्जिका बनाईं ,
किये व्रति दृग-धारी ।
एक एक कविता है इनकी,
सपने से भी प्यारी।।
काव्य जगत इन मूक-माटी,
बुध संस्तुत चोखा सोना ।
गिल्ली लेने गुफा-द्वार इक,
आया बाल सलोना ॥15॥
ज्ञानोदय भाग्योदय सर्वो-
दय पर,इनकी छाया ।
कौन पुरा,नव वो जिन-बिम्ब,
नहीं जो इन मन भाया ॥
कहूँ कहाँ तक ‘नन्त-गुणी’ ये,
सो चाहूँ अब मोना ।
गिल्ली लेने गुफा-द्वार इक,
आया बाल सलोना |।
मुखड़ा टुकड़ा चाँद जिसे लख,
कौन चाहता खोना ।।
गिल्ली लेने गुफा द्वार इक,
आया बाल सलोना ॥16॥
।। जयमाला पूर्णार्घं।।
दोहा-
भव-जल गहरा थाम लो,
करुणा कर पतवार ।
काग उड़ाते जा रहा,
विथा रत्न भंडार ||
Sharing is caring!